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गणेश चतुर्थी स्पेशल: दो हजार साल पुराना चिंतामन गणेश मंदिर, जानिए विशेषता

सीहोर जिले के सिद्धपुर में भगवान चिंतामन गणेश मंदिर देशभर में अपनी ख्याति और भक्तों की अटूट आस्था को लेकर विश्व प्रसिद्ध है. मंदिर का जीर्णोद्धार एवं सभा मंडप का निर्माण बाजीराव पेशवा प्रथम ने मराठा काल में कराया था.

Chintaman Ganesh Temple
चिंतामन गणेश मंदिर
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Published : Aug 20, 2020, 5:13 PM IST

Updated : Aug 20, 2020, 9:11 PM IST

सीहोर। जिला मुख्यालय से करीब 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित चिंतामन गणेश मंदिर देश भर में अपनी ख्याति और भक्तों की अटूट आस्था को लेकर पहचाना जाता है.
चिंतामन सिद्ध भगवान गणेश की देश में चार स्वयंभू प्रतिमाएं हैं.

दो हजार साल पुराना चिंतामन गणेश मंदिर

इनमें से एक सवाई माधोपुर राजस्थान, दूसरी उज्जैन में स्थित अवंतिका, तीसरी गुजरात में सिद्धपुर और चौथी सीहोर में चिंतामन गणेश मंदिर में विराजित है. यहां साल भर लाखों श्रद्धालु भगवान गणेश के दर्शन करने आते हैं.

मंदिर से जुड़े लोगों के मुताबिक मंदिर का जीर्णोद्धार एवं सभा मंडप का निर्माण बाजीराव पेशवा प्रथम ने कराया था. शालिवाहन शक राजा भोज कृष्णा राय तथा गोंड राजा नवल ने मंदिर की व्यवस्थाओं में सहयोग किया, इसके साथ ही नानाजी पेशवा बिठूर के समय मंदिर की ख्याति व प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई थी.

मन्नत के लिए दीवार पर बनाते हैं उल्टा स्वास्तिक

मान्यता के मुताबिक श्रद्धालु भगवान गणेश के सामने अपनी मन्नत के लिए मंदिर की दीवार पर उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं और मन्नत पूर्ण होने के बाद सीधा स्वास्तिक बनाते हैं. चिंतामन गणेश मंदिर पर हर साल गणेश चतुर्थी के दौरान 10 दिवसीय भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर भगवान गणेश के दर्शन करते हैं. लेकिन इस साल लॉकडाउन की वजह से मेला नहीं लगेगा. सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क लगाकर ही भक्त दर्शन कर सकेंगे.

2000 साल पुराना है मंदिर का इतिहास

सीवन नदी के कमल पुष्प से बने हैं. प्राचीन चिंतामन गणेश को लेकर प्रामणिक इतिहास है कि इस मंदिर का इतिहास करीब 2000 साल पुराना है. सम्राट विक्रमादित्य सीवन नदी से कमल पुष्प के रूप में प्रकट हुए, भगवान गणेश को रथ में बैठाकर ले जा रहे थे, जब सुबह हुई जो कमल पुष्प जमीन में धंस गया और रात में यही कमल पुष्प गणेश प्रतिमा में परिवर्तित होने लगा. जिसके बाद प्रतिमा जमीन में धंसने लगी. बाद में इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया. आज भी यह प्रतिमा जमीन में आदि धंसी हुई है.

गणेश चतुर्थी के दिन होता है भंडारा

यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के पिछले हिस्से में उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत रखते हैं और पूरी हो जाने पर दोबारा आकर उसे सीधा करते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि बहुत साल पहले यहां पर एक बीमारी फैल गई थी और यहां पर एक भक्त ने बीमारी खत्म करने के लिए मंदिर में भंडारा कराने का संकल्प लिया था.

मन्नत पूरी होने के बाद क्षेत्र में बीमारी खत्म हो गई. उसके बाद से ही गणेश चतुर्थी के दिन यहां पर हर साल भंडारा किया जाता है, लेकिन इस साल कोरोना के चलते सीमित स्तर पर ही यहां भंडारा किया जाएगा.

सीहोर। जिला मुख्यालय से करीब 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित चिंतामन गणेश मंदिर देश भर में अपनी ख्याति और भक्तों की अटूट आस्था को लेकर पहचाना जाता है.
चिंतामन सिद्ध भगवान गणेश की देश में चार स्वयंभू प्रतिमाएं हैं.

दो हजार साल पुराना चिंतामन गणेश मंदिर

इनमें से एक सवाई माधोपुर राजस्थान, दूसरी उज्जैन में स्थित अवंतिका, तीसरी गुजरात में सिद्धपुर और चौथी सीहोर में चिंतामन गणेश मंदिर में विराजित है. यहां साल भर लाखों श्रद्धालु भगवान गणेश के दर्शन करने आते हैं.

मंदिर से जुड़े लोगों के मुताबिक मंदिर का जीर्णोद्धार एवं सभा मंडप का निर्माण बाजीराव पेशवा प्रथम ने कराया था. शालिवाहन शक राजा भोज कृष्णा राय तथा गोंड राजा नवल ने मंदिर की व्यवस्थाओं में सहयोग किया, इसके साथ ही नानाजी पेशवा बिठूर के समय मंदिर की ख्याति व प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई थी.

मन्नत के लिए दीवार पर बनाते हैं उल्टा स्वास्तिक

मान्यता के मुताबिक श्रद्धालु भगवान गणेश के सामने अपनी मन्नत के लिए मंदिर की दीवार पर उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं और मन्नत पूर्ण होने के बाद सीधा स्वास्तिक बनाते हैं. चिंतामन गणेश मंदिर पर हर साल गणेश चतुर्थी के दौरान 10 दिवसीय भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर भगवान गणेश के दर्शन करते हैं. लेकिन इस साल लॉकडाउन की वजह से मेला नहीं लगेगा. सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क लगाकर ही भक्त दर्शन कर सकेंगे.

2000 साल पुराना है मंदिर का इतिहास

सीवन नदी के कमल पुष्प से बने हैं. प्राचीन चिंतामन गणेश को लेकर प्रामणिक इतिहास है कि इस मंदिर का इतिहास करीब 2000 साल पुराना है. सम्राट विक्रमादित्य सीवन नदी से कमल पुष्प के रूप में प्रकट हुए, भगवान गणेश को रथ में बैठाकर ले जा रहे थे, जब सुबह हुई जो कमल पुष्प जमीन में धंस गया और रात में यही कमल पुष्प गणेश प्रतिमा में परिवर्तित होने लगा. जिसके बाद प्रतिमा जमीन में धंसने लगी. बाद में इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया. आज भी यह प्रतिमा जमीन में आदि धंसी हुई है.

गणेश चतुर्थी के दिन होता है भंडारा

यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के पिछले हिस्से में उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत रखते हैं और पूरी हो जाने पर दोबारा आकर उसे सीधा करते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि बहुत साल पहले यहां पर एक बीमारी फैल गई थी और यहां पर एक भक्त ने बीमारी खत्म करने के लिए मंदिर में भंडारा कराने का संकल्प लिया था.

मन्नत पूरी होने के बाद क्षेत्र में बीमारी खत्म हो गई. उसके बाद से ही गणेश चतुर्थी के दिन यहां पर हर साल भंडारा किया जाता है, लेकिन इस साल कोरोना के चलते सीमित स्तर पर ही यहां भंडारा किया जाएगा.

Last Updated : Aug 20, 2020, 9:11 PM IST
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