सतना। पद्मश्री अवार्ड से नवाजे जा चुके सतना के किसान बाबूलाल दाहिया किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. दाहिया ने देसी बीज और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अपनी उम्र गुजार दी और आज भी वह इसके लिए प्रयासरत हैं. बाबूलाल ने धान के करीब 200 किस्मों के बीजों के अलावा अनेकों प्रकार के देसी बीज एकत्र कर एक म्यूजियम बनाया है, जिसे देशी म्यूजियम नाम दिया है. बाबूलाल दाहिया किसान के साथ एक अच्छे लेखक भी हैं. पद्मश्री बाबूलाल की राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री भी सराहना कर चुके हैं.
300 देसी बीजों का संग्रह: मध्यप्रदेश के सतना जिला मुख्यालय से महज 25 किलोमीटर दूर उचेहरा तहसील के पिथौराबाद गांव के निवासी 80 वर्षीय किसान बाबूलाल दाहिया ने अपने जीवन में वह कर दिखाया जो किसानों के लिए एक प्रेरणा स्वरूप है. किसान बाबूलाल दाहिया ने अपने घर में एक अनोखा देसी म्यूजियम बनाया है, इस म्यूजियम के अंदर उन्होंने लगभग 300 प्रकार के देसी बीज का संग्रह किया है, जिसमें धान के 200 प्रकार के देसी बीज, 18 प्रकार के मोटे गेंहू के बीज के अलावा अनेकों प्रकार के देसी बीज को इकट्ठा कर रखा है. इस देसी बीज के म्यूजियम के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा जा चुका है.
पद्मश्री बाबूलाल देसी म्यूजियम के अंदर धान के देसी बीजों को इकट्ठा करने के लिए 40 से अधिक जिलों की यात्राएं कर चुके हैं. बाबूलाल किसान के साथ-साथ लेखक भी हैं, वह लेख, कविताएं, मुहावरे लोकोक्तियां भी लिखते हैं. बाबूलाल दाहिया की मानें तो वह देसी बीजों के बारे में या उनसे जुड़ी बातों का उल्लेख अपनी कविताओं और लेखों में करते हैं.
कई फसलों के बीजों का संग्रह: पद्मश्री बाबूलाल दाहिया ने बताया कि उनके पास एक बीज बैंक है, जिसमें लगभग 300 प्रकार के बीज संग्रहित हैं, जिनमें 200 प्रकार के देसी धान हैं, 18 प्रकार के देसी गेहूं हैं, मोटे अनाज कोदो, कुटकी, सांभा, कांदव, ज्वार, मक्का आदि के देसी बीज है, और दलहन एवं तिलहन फसलों के बीज भी हैं लेकिन यह सभी परंपरागत है इनमें से कुछ सब्जियां भी है जो परंपरागत हैं. दाहिया ने कहा कि 70 के दशक में जब हरित क्रांति आई थी तो हमने देखा कि पहले परंपरागत हमारे पास सभी अनाज थे, लेकिन हरित क्रांति आने से यह नुकसान हुआ कि जितने हमारे परंपरागत अनाज है वह चलन से बाहर हो गए.
धान की 22 हजार किस्में: बाबूलाल दाहिया ने बताया कि 80 के दशक के हमारे बड़े वैज्ञानिक डॉक्टर राधेलाल रिछारिया ने मध्यप्रदेश में लगभग 22 हजार 8 सौ प्रजातियां धान की अकेले संग्रहित किया था, लेकिन आज यह स्थिति है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में धान की 800 प्रजातियां भी नहीं बची, 22 हजार पूरी समाप्त हो गईं. दाहिया ने बताया कि ऐसी स्थिति में हमने महसूस किया कि इनको बचाना जरूरी है, क्योंकि यह हमारे पूर्वजों की धरोहर है, इसलिए इनको बचाना जरूरी है, इसलिए हम इसे बचा रहे हैं, जब तक जीवित हैं तब तक बचाते रहेंगे.