चित्रकूट। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की तपोभूमि चित्रकूट जहां का कण-कण भगवान की गौरव गाथा कहता है, जिसमें बहने वाली नदियां कभी श्रीराम के चरण पखारा करती थी, लेकिन दोनों नदियां अब प्रदूषण का शिकार होकर अस्तित्व के संकट से जूझ रही है. पयस्वनी और सरयू नदी देखते ही देखते नाले में तब्दील होते जा रही है, लेकिन प्रशासन मूक दर्शक बन कर बैठा है.
चित्रकूट कभी तीन नदियों का संगम स्थल कहा जाता था. यहां मंदाकिनी, सरयू और पयस्वनी तीन नदियां बहती थी. जो कभी लोगों की आस्था का प्रतीक थी लेकिन प्रदूषण के कारण यहां मंदाकिनी ही शेष बची है और बाकि दो नदियां नालों में बदल गई हैं.
यहां से होता था इन नदियों का उद्गम
ऐसी मान्यता है कि मंदाकिनी में मिलने वाली सरयू नदी का उद्गम कामदगिरि पर्वत के पूर्वी तट पर स्थित प्राचीन ब्रह्म कुंड से एक धारा के रूप हुआ था. वहीं दूसरी ओर श्री कामदगिरि पर्वत से दूर ब्रह्मकुंड से पयस्वनी नदी का उद्गम हुआ था. दोनों नदियां मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की सीमा पर स्थित राघवघाट पर आकर मंदाकिनी में मिलती हैं.
राघवघाट पर हुआ था दशरथ का श्राद्ध और तर्पण
मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के मुताबिक चित्रकूट के राघवघाट पर वनवासी भगवान राम ने अपने पिता दशरथ की मृत्यु के बाद श्राद्ध और तर्पण किया था.
सरयू और पयस्वनी का अस्तित्व खतरें में
ऐसी पवित्र नदियां आज नालों में तब्दील हो गई है. लेकिन शासन और प्रशासन ने दोनों मूक दर्शक बन कर बैठे हैं. लोगों का कहना है कि इस बारे में केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक सबको अवगत कराया जा चुका है, लेकिन आज तक इस ओर कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए गए. वहीं प्रशासन का कहना है कि जल्दी ही इस ओर प्रयास किए जाएंगे और दोनों नदियों के अस्तित्व को बचाया जाएगा.