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यहां की जाती है रावण की पूजा, 40 साल से चली आ रही है परम्परा

जहां पूरे देश मे राम की पूजा की जाती है और रावण का दहन, वहीं सतना के कोठी में रावण की पूजा की जाती है.

रावण की पूजा
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Published : Oct 9, 2019, 10:10 AM IST

सतना। जहां पूरे देश में दशहरा के दिन रावण को बुराई का प्रतीक मान उसके दहन किया जातै है और राम की पूजा कर बुराई पर सच्चाई की जीत का जश्न मनाया जाता है, वहीं सतना जिले में कोठी कस्बे से कुछ दूर रनेही गांव है, जहां रावण की पूजा की जाती है.

रावण की पूजा

पिछले 40 सालों से कोठी थाने परिसर में बनी वर्षो पुरानी रावण के प्रतिमा पर रनेही निवासी रमेश मिश्रा और उनका परिवार पूजा करता चला आ रहा है. रमेश मिश्रा और उनके परिवार का कहना है कि वह सभी रावण के वंसज है, इस लिए उनकी पूजा करते है. इनके अलावा भी गांव के काफी लोग खुद को रावण का रिस्तेदार मानते हैं.

रमेश मिश्रा ने कहा कि रावण सबसे ज्ञानी थे, जिन्होंने ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों देवताओं को अपनी तपस्या से खुश किया था. उन्हींके लिए रामजी की लीला रची गई और रावण का अंत किया गया. रावण में अहंकार भले रहा हो पर उनकी भक्ती, तप और ज्ञान पूजने लायक है.

सतना। जहां पूरे देश में दशहरा के दिन रावण को बुराई का प्रतीक मान उसके दहन किया जातै है और राम की पूजा कर बुराई पर सच्चाई की जीत का जश्न मनाया जाता है, वहीं सतना जिले में कोठी कस्बे से कुछ दूर रनेही गांव है, जहां रावण की पूजा की जाती है.

रावण की पूजा

पिछले 40 सालों से कोठी थाने परिसर में बनी वर्षो पुरानी रावण के प्रतिमा पर रनेही निवासी रमेश मिश्रा और उनका परिवार पूजा करता चला आ रहा है. रमेश मिश्रा और उनके परिवार का कहना है कि वह सभी रावण के वंसज है, इस लिए उनकी पूजा करते है. इनके अलावा भी गांव के काफी लोग खुद को रावण का रिस्तेदार मानते हैं.

रमेश मिश्रा ने कहा कि रावण सबसे ज्ञानी थे, जिन्होंने ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों देवताओं को अपनी तपस्या से खुश किया था. उन्हींके लिए रामजी की लीला रची गई और रावण का अंत किया गया. रावण में अहंकार भले रहा हो पर उनकी भक्ती, तप और ज्ञान पूजने लायक है.

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दशहरे के पावन पर्व पर जहां बुराई और सच्चाई जीत स्वरूप रावण का पुतला दहन किया जाता है. लेकिन आज भी कुछ ऐसे ही स्थान है जहां रावण दहन नहीं बल्कि पूजा जाता है. सतना जिले के कोठी कस्बे में रनेही ग्राम निवासी रमेश मिश्रा जो रावण कुल से जुड़े हुए हैं.उनके द्वारा आज कोठी थाना परिसर में बनी वर्षों पुरानी रावण की प्रतिमा में हर वर्ष दशहरे में पावन पर्व पर रावण की पूजा करते हैं. यह पूजा रमेश मिश्रा 40 वर्षो से करते चले आ रहे हैं ।


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भारत सचमुच अद्भुत परंपराओं और संस्कृति भरा देश है. यहां पूरे देश में दशहरा पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. बुराई पर सच्चाई की जीत का स्वरूप रावण का पुतला दहन किया जाता है. लेकिन कुछ ऐसे भी स्थान है जहां रावण का दहन नहीं बल्कि उसकी पूजा की जाती है. रावण को अपना रिश्तेदार मारने वाले लोग आज भी रावण की पूजा करते हैं. पुराणों में किए गए उल्लेख के अनुसार रावण महाज्ञानी पंडित था. जिसकी वजह से भी उसका पूजन किया जाता है. सतना जिले के कोठी थाने परिसर में बनी वर्षों पुरानी रावण के प्रतिमा जिसकी पूजा कोठी कस्बे के रनेही ग्राम निवासी रमेश मिश्रा विगत 40 वर्षों से रावण की पूजा करते चले आ रहे हैं. यह बात अपने आप में एक अद्भुत से लगती है. रमेश मिश्रा ने बताया कि राम और उनके कुल देवता है और रावण सबसे ज्ञानी थे जिन्होंने ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों देवताओं को अपनी तपस्या से खुश किया था. जो तीनों लोकों में सबसे ज्यादा महाज्ञानी माने जाते हैं. जिनकी वजह से रामजी की लीला रची गई और रावण का अंत किया गया. रावण में अहंकार की वजह से रावण का अंत हुआ. लेकिन रावण ने रामलीला की वजह से यह रचना रची थी.और रावण का उद्धार श्री राम भगवान ने किया था. जिसकी वजह से आज रामलीला की जाती हैं.यही वजह की आज सतना जिले के कोठी में रावण की पूजा की जाती हैं. और रमेश मिश्रा ने यह भी बताया कि उनके बाद उनकी पीढ़ी रावण की पूजा करती रहेगी ।


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रमेश मिश्रा -- रावण पुजारी कोठी सतना ।
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