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लॉकडाउन की पीड़ा: रास्ते में हुई डिलीवरी, 2 घंटे बाद पैदल तय करना पड़ा 150 किमी. दर्द का सफर

लॉकडाउन के चलते पैदल अपने घर को आ रही एक आदिवासी मजदूर महिला ने गर्भावस्था के नौवें महीनें मे 70 किलोमीटर पैदल चलने के बाद बीच रास्ते में एक नवजात को जन्म दिया और जन्म के महज दो-तीन घंटे बाद ही 150 किलोमीटर का सफर पैदल तय कर एमपी-महाराष्ट्र के बिजासन बॉर्डर पहुंची.

pregnant women birth child on way
प्रसव के बाद 150 किलोमीटर का सफर
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Published : May 13, 2020, 12:07 PM IST

Updated : May 13, 2020, 2:05 PM IST

सतना। कोरोना वायरस से जारी जंग में पूरे देश में लगातार लॉकडाउन बढ़ाया जा रहा है. ऐसे में दूसरे राज्यों से अपने राज्यों के लिए पैदल ही सफर तय कर रहे मजदूरों की कहानियां इन दिनों सुर्खियों में हैं. इस दौरान उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करते हुए भूखे-प्यासे हजारों मील का सफर तय करना पड़ रहा हैं. लेकिन अब एक नजर सतना के उचेहरा स्वास्थ्य केंद्र के वॉर्ड में नवजात के साथ लेटी इस महिला पर भी डालिए, जिसकी कहानी सिहरन पैदा करती है.

प्रसव के बाद 150 किलोमीटर का सफर

सतना के उचेहरा तहसील के खोखर्रा वेलहाई की रहने वाली आदिवासी महिला शकुंतला गर्भावस्था में भी अपने घर के लिए परिवार संग पैदल ही रवाना हो गई. करीब 70 किलोमीटर पैदल सफर तय करने के बाद शकुंतला ने रास्ते में ही बच्चे को जन्म दिया. जिसके बाद भी शकुंतला ने हार नहीं मानी और महज दो-तीन घंटे आराम करने के बाद एक फिर हिम्मत जुटाकर अपने परिवार के साथ पैदल ही 150 किलोमीटर का सफर तय कर महाराष्ट्र के बिजासन बॉर्डर पर पहुंची.

ये भी पढ़ें- कोरोना वॉरियर दंपति, संकट काल में कर रहे देश की सेवा

सरकारी दावों की पोल खोलती सतना से एक प्रवासी दंपति की कहानी सामने आई हैं. ये मजदूर दंपति काम के सिलसिले में नासिक गए थे. लेकिन लॉकडाउन के कारण वहीं फंसे रह गए और वापस आने के लिए कोई साधन नहीं मिलने पर गर्भावस्था के नौंवे महीने में भी नासिक से घर के लिए पैदल निकल पड़ी. बता दें, महिला को लगभग 70 किलोमीटर चलने के बाद रास्ते में मुंबई-आगरा हाइवे पर स्थित पिंपलगांव पर प्रसव पीड़ा शुरू हो गई, जिसके बाद रास्ते मे ही चार साथी महिलाओं की मदद से शकुंतला ने नवजात बच्ची को जन्म दिया.

ये भी पढ़ें- इंदौर के बाईपास पर दिखी पलायन की दर्दनाक तस्वीरें, बैल के साथ इंसान खींच रहा गाड़ी

डिलीवरी के बाद नवजात को लेकर शकुंतला को 150 किलोमीटर का पैदल लंबा सफर तय करना पड़ा. जानकारी के मुताबिक बीते शनिवार को शकुंतला बिजासन बॉर्डर पर पहुंची थी. उसके गोद में नवजात बच्चे को देख चेक-पोस्ट की इंचार्ज कविता कनेश उसके पास जांच के लिए पहुंची. जहांं महिला ने कहा कि अब वो पैदल नहीं चल सकती है. इसके बाद शकुंतला और उसके साथ के सभी लोगों को एक कॉलेज में रोका गया.

शकुंतला ने बताया कि उसे बॉर्डर पर महाराष्ट्र शासन-प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली. MP बॉर्डर पहुंचते ही उन्हें वाहन उपलब्ध कराया गया और उनके गृह जिले के लिए रवाना किया गया.

ये भी पढ़ें- सरकारी दावों की खुली पोल, घर लौटने की कीमत चुका रहे मजदूर

शकुंतला के पति राकेश कोल ने बताया कि ये यात्रा बेहद कठिन थी, लेकिन रास्ते में मददगार भी मिले. एक सरदार परिवार ने नवजात शिशु के लिए कपड़े और आवश्यक सामान दिए. राकेश ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से नासिक में उद्योग धंधे बंद हैं, इस वजह से नौकरी चली गई. सतना जिले स्थित उचेहरा गांव तक पहुंचने के लिए पैदल जाने के सिवा उनके पास कोई और चारा नहीं था. उनके पास खाने के लिए भी कुछ नहीं बचा था. इसिलए घर की ओर पैदल चल दिए. वो सभी जैसे ही पिंपलगांव पहुंचे, वहां पत्नी को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई. जिसके बाद रास्ते में ही उनके साथ आ रही महिलाओं ने उसकी डिलीवरी कराई.

हालांकि, अब ये परिवार अपने जिले एक नए मेहमान के साथ पहुंच गया है. फिलहाल महिला और नवजात दोनों अस्पताल में हैं. लॉकडाउन में ऐसी कई तस्वीरें सामने आ रही हैं, जो कहीं न कहीं प्रशासन की व्यवस्थाओं और दावों पर सवाल खड़े करती है. साथ ही ये सवाल भी कि क्या इन गरीबों के हाथों में हमेशा वादों की पुलिंदा ही थमाया जाएगा.

सतना। कोरोना वायरस से जारी जंग में पूरे देश में लगातार लॉकडाउन बढ़ाया जा रहा है. ऐसे में दूसरे राज्यों से अपने राज्यों के लिए पैदल ही सफर तय कर रहे मजदूरों की कहानियां इन दिनों सुर्खियों में हैं. इस दौरान उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करते हुए भूखे-प्यासे हजारों मील का सफर तय करना पड़ रहा हैं. लेकिन अब एक नजर सतना के उचेहरा स्वास्थ्य केंद्र के वॉर्ड में नवजात के साथ लेटी इस महिला पर भी डालिए, जिसकी कहानी सिहरन पैदा करती है.

प्रसव के बाद 150 किलोमीटर का सफर

सतना के उचेहरा तहसील के खोखर्रा वेलहाई की रहने वाली आदिवासी महिला शकुंतला गर्भावस्था में भी अपने घर के लिए परिवार संग पैदल ही रवाना हो गई. करीब 70 किलोमीटर पैदल सफर तय करने के बाद शकुंतला ने रास्ते में ही बच्चे को जन्म दिया. जिसके बाद भी शकुंतला ने हार नहीं मानी और महज दो-तीन घंटे आराम करने के बाद एक फिर हिम्मत जुटाकर अपने परिवार के साथ पैदल ही 150 किलोमीटर का सफर तय कर महाराष्ट्र के बिजासन बॉर्डर पर पहुंची.

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सरकारी दावों की पोल खोलती सतना से एक प्रवासी दंपति की कहानी सामने आई हैं. ये मजदूर दंपति काम के सिलसिले में नासिक गए थे. लेकिन लॉकडाउन के कारण वहीं फंसे रह गए और वापस आने के लिए कोई साधन नहीं मिलने पर गर्भावस्था के नौंवे महीने में भी नासिक से घर के लिए पैदल निकल पड़ी. बता दें, महिला को लगभग 70 किलोमीटर चलने के बाद रास्ते में मुंबई-आगरा हाइवे पर स्थित पिंपलगांव पर प्रसव पीड़ा शुरू हो गई, जिसके बाद रास्ते मे ही चार साथी महिलाओं की मदद से शकुंतला ने नवजात बच्ची को जन्म दिया.

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डिलीवरी के बाद नवजात को लेकर शकुंतला को 150 किलोमीटर का पैदल लंबा सफर तय करना पड़ा. जानकारी के मुताबिक बीते शनिवार को शकुंतला बिजासन बॉर्डर पर पहुंची थी. उसके गोद में नवजात बच्चे को देख चेक-पोस्ट की इंचार्ज कविता कनेश उसके पास जांच के लिए पहुंची. जहांं महिला ने कहा कि अब वो पैदल नहीं चल सकती है. इसके बाद शकुंतला और उसके साथ के सभी लोगों को एक कॉलेज में रोका गया.

शकुंतला ने बताया कि उसे बॉर्डर पर महाराष्ट्र शासन-प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली. MP बॉर्डर पहुंचते ही उन्हें वाहन उपलब्ध कराया गया और उनके गृह जिले के लिए रवाना किया गया.

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शकुंतला के पति राकेश कोल ने बताया कि ये यात्रा बेहद कठिन थी, लेकिन रास्ते में मददगार भी मिले. एक सरदार परिवार ने नवजात शिशु के लिए कपड़े और आवश्यक सामान दिए. राकेश ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से नासिक में उद्योग धंधे बंद हैं, इस वजह से नौकरी चली गई. सतना जिले स्थित उचेहरा गांव तक पहुंचने के लिए पैदल जाने के सिवा उनके पास कोई और चारा नहीं था. उनके पास खाने के लिए भी कुछ नहीं बचा था. इसिलए घर की ओर पैदल चल दिए. वो सभी जैसे ही पिंपलगांव पहुंचे, वहां पत्नी को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई. जिसके बाद रास्ते में ही उनके साथ आ रही महिलाओं ने उसकी डिलीवरी कराई.

हालांकि, अब ये परिवार अपने जिले एक नए मेहमान के साथ पहुंच गया है. फिलहाल महिला और नवजात दोनों अस्पताल में हैं. लॉकडाउन में ऐसी कई तस्वीरें सामने आ रही हैं, जो कहीं न कहीं प्रशासन की व्यवस्थाओं और दावों पर सवाल खड़े करती है. साथ ही ये सवाल भी कि क्या इन गरीबों के हाथों में हमेशा वादों की पुलिंदा ही थमाया जाएगा.

Last Updated : May 13, 2020, 2:05 PM IST
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