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ICU में सतना के सरकारी स्कूल, रसातल में जा रहा देश का 'भविष्य'

सतना जिले के सरकारी स्कूलों की हालत खस्ता है. ये स्कूल बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. वहीं प्रशासन जिम्मेदारी के नाम पर अपना पल्ला झाड़ने में लगा है.

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सरकारी स्कूलों की हालत खस्ता
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Published : Feb 13, 2020, 8:09 AM IST

सतना। स्कूल ज्ञान का वो झरना है, जहां ज्यादातर छात्र-छात्राओं की ज्ञान पिपासा शांत हो जाती है, पर जरूरी है कि इसके लिए इन झरनों को सुरक्षित व संरक्षित किया जाए, जिसके लिए सरकारें प्रयास भी कर रही हैं, पर उसका असर जमीन पर न के बराबर दिखता है, सतना जिले के ज्यादातर स्कूल अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं, कहीं दीवारें रोशनदान बन चुकी हैं तो कहीं जर्जर भवन में स्कूल लग रहा है तो कहीं पेड़ की छांव में तालीम मिल रही है. इसके अलावा कहीं शिक्षक ही नहीं तो कहीं आते ही नहीं, जबकि कहीं आते हैं पर पढ़ाते ही नहीं, यही वजह है कि यहां बच्चों के ज्ञान पर अज्ञानता ज्यादा हावी है.

सरकारी स्कूलों की हालत खस्ता

कहने के लिए जिले में प्राथमिक विद्यालयों की संख्या दो हजार छह सौ चालीस है, माध्यमिक विद्यालय 941, हाई स्कूल 155 और हायर सेकेंड्री स्कूल 146 हैं. जिनमें से ज्यादातर स्कूलों में बिजली-पानी की व्यवस्था तक नहीं है, जबकि 20 स्कूलों के पास खुद की बिल्डिंग नहीं है, कई स्कूल भवनों की हालत जर्जर है. जिसके चलते लोग अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजना चाहते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें आर्थिक तंगी का सामना क्यों न करना पड़े.

हकीकत देखकर मुंह फेर लेने वाला प्रशासन अब भी इस बात को मानने को तैयार नहीं है, जिला शिक्षा अधिकारी स्कूलों में सुधार के लिए प्रशासन के तमाम प्रयासों को गिना रहे हैं. सरकारी दावे पर दावे और आंकड़ों की बाजीगरी में उलझते देश के भविष्य पर लगा ये ग्रहण कब इन्हें रास्ता देगा, ये किसी को पता नहीं है. हां खुश होने के लिए सरकारी आंकड़े और नेताओं के बयान के अलावा अधिकारियों के आश्वासन काफी है, लेकिन देश के उज्जवल भविष्य के लिए ये बिल्कुल नाकाफी हैं.

सतना। स्कूल ज्ञान का वो झरना है, जहां ज्यादातर छात्र-छात्राओं की ज्ञान पिपासा शांत हो जाती है, पर जरूरी है कि इसके लिए इन झरनों को सुरक्षित व संरक्षित किया जाए, जिसके लिए सरकारें प्रयास भी कर रही हैं, पर उसका असर जमीन पर न के बराबर दिखता है, सतना जिले के ज्यादातर स्कूल अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं, कहीं दीवारें रोशनदान बन चुकी हैं तो कहीं जर्जर भवन में स्कूल लग रहा है तो कहीं पेड़ की छांव में तालीम मिल रही है. इसके अलावा कहीं शिक्षक ही नहीं तो कहीं आते ही नहीं, जबकि कहीं आते हैं पर पढ़ाते ही नहीं, यही वजह है कि यहां बच्चों के ज्ञान पर अज्ञानता ज्यादा हावी है.

सरकारी स्कूलों की हालत खस्ता

कहने के लिए जिले में प्राथमिक विद्यालयों की संख्या दो हजार छह सौ चालीस है, माध्यमिक विद्यालय 941, हाई स्कूल 155 और हायर सेकेंड्री स्कूल 146 हैं. जिनमें से ज्यादातर स्कूलों में बिजली-पानी की व्यवस्था तक नहीं है, जबकि 20 स्कूलों के पास खुद की बिल्डिंग नहीं है, कई स्कूल भवनों की हालत जर्जर है. जिसके चलते लोग अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजना चाहते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें आर्थिक तंगी का सामना क्यों न करना पड़े.

हकीकत देखकर मुंह फेर लेने वाला प्रशासन अब भी इस बात को मानने को तैयार नहीं है, जिला शिक्षा अधिकारी स्कूलों में सुधार के लिए प्रशासन के तमाम प्रयासों को गिना रहे हैं. सरकारी दावे पर दावे और आंकड़ों की बाजीगरी में उलझते देश के भविष्य पर लगा ये ग्रहण कब इन्हें रास्ता देगा, ये किसी को पता नहीं है. हां खुश होने के लिए सरकारी आंकड़े और नेताओं के बयान के अलावा अधिकारियों के आश्वासन काफी है, लेकिन देश के उज्जवल भविष्य के लिए ये बिल्कुल नाकाफी हैं.

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