सतना। प्रदेश सरकार राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन योजना के तहत बच्चों में एनीमिया के खिलाफ मुहिम चला रही है. इसके लिए सरकार करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है. लेकिन इसके बाद भी इसका असर देखने को नहीं मिल रहा है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक सतना में 70 फीसदी बच्चें एनीमिया की चपेट में हैं. जिले में हर दूसरा बच्चा इस बीमारी का प्रकोप झेल रहा है. यह बीमारी जन्म से 5 वर्ष तक के बच्चों को ज्यादा होती है.
रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों के साथ गर्भवती महिलाओं में भी एनीमिया का प्रकोप पाया गया है, जो स्वास्थ्य विभाग के लिए बड़ी चुनौती है. एनीमिया को लेकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने भी चिंता जताई है. बता दें कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट चौकने वाली है. नेशनल रिपोर्ट में यह खुलासा किया है कि, वर्तमान में सतना जिले में 15 से 49 वर्ष की लगभग 48 फीसदी किशोरियों और सामान्य महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं. जिसमें गर्भवती महिलाओं का प्रतिशत सामान्य महिलाओं से भी ज्यादा है.
ऐसा नहीं है कि, अकेले बच्चे और महिलाएं खून की कमी से परेशान हैं. बल्कि जिले में लगभग 24 प्रतिशत पुरुषों भी रक्त अल्पता की कमी से जूझ रहे है. जिले में सर्वाधिक 70 फीसदी एनीमिया 6 माह से 5 वर्ष तक के बच्चों में देखा जा रहा है. रिपोर्ट के मुताबित सतना जिले में हर दूसरा बच्चा इस बीमारी का शिकार होता जा रहा है.
सरकार के दावों की हकीकत
बता दें कि, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन योजना के तहत जागरूकता अभियान की जिम्मेदारी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को दी गई है. इस योजना के तहत हर दूसरे बच्चे पर नजर रखी जा रही है और इस अभियान का फोकस किशोरी और गर्भवती महिलाओं पर भी किया जा रहा है. जिले से लेकर ब्लॉकों तक सभी स्कूलों आंगनबाड़ी केंद्रों में आयरन टेबलेट, फोलिक एसिड सिरप बांटने के निर्देश जारी किए गए हैं. लेकिन दिए गए निर्देश कागजों तक ही सीमित होकर रह गए. जमीनी स्तर पर शासन की योजनाओं का लाभ अब नहीं पहुंच पा रहा है. सतना जिले में महिला बाल विकास और स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के चलते हर दूसरा बच्चा एनीमिया का शिकार होता जा रहा है. जिसका वर्तमान आंकड़ा 70 फीसदी पहुंच चुका है. अब ऐसे में महिला बाल विकास अधिकारी हमेशा की तरह रटा रटाया बयान देकर अपनी दलीलों से पल्ला झाड़ रहे हैं.