सतना। कुपोषण यानी एक ऐसा कंलक, जो देश के दिल यानी मध्यप्रदेश पर इस तरह लगा कि इसके दूर होने के आसार दूर-दूर नजर नहीं आते. राज्य का कोई भी अंचल कुपोषण के कहर से बच नहीं पाया. बात अगर विंध्य की करें तो यहां कुपोषण के गाल में हजारों नौनिहाल समाए हुए हैं. सतना के मझगवां में कुपोषण को दूर करने वाली सरकारी योजनाएं धूल फांकती नजर आती हैं. यहां के बाशिंदे बताते हैं कि उन्हें पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं मिलता, लिहाजा बच्चों को बीमारियां घेर लेती हैं. सड़क नहीं होने से एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंचती. ग्रामीणों का दर्द न तो सरकारी नुमाइंदों को दिखता है और न ही सिसासत के हुक्मरानों को.
सरकार बदली लेकिन यहां के हालात नहीं
सूबे में चाहे बीजेपी की सत्ता रही हो या फिर कांग्रेस की, कुपोषण को दूर करने के लिए किसी ने अब तक ऐसे ठोस कदम नहीं उठाए, जिसके परिणाम सार्थक आए हों. यही वजह है कि कुपोषण घटने की बजाए उल्टा बढ़ता गया. शासन प्रशासन की उदासीनता के चलते हालात कितने बदतर हैं, सुनिए मंझगावं के बाशिदों की जुबानी.तो सुना आपने सरकारी योजनाओं के लाभ का इंतजार कर रहे ये लोग कितने मजबूर हैं. पूरे सतना जिले में कुपोषण के आंकड़े हैरान करने वाले हैं. सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो
⦁ अकेले सतना में 41 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.
⦁ इसमें 36 हजार 221 बच्चे मध्यम कुपोषित हैं
⦁ जबकि 5 हजार 491 बच्चे अतिकुपोषित की श्रेणी में आते हैं.
⦁ पूरे सतना जिले में मझगवां ब्लॉक के हालात बद से बदतर हैं.
⦁ मझगवां में कुल 96 ग्राम पंचायत आती हैं.
⦁ इनमें 4 हजार 662 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं
⦁ जबकि अतिकुपोषित बच्चों की संख्या 913 है.
रेड जोन में शामिल है मझगवां
यह आंकड़े स्वास्थ्य विभाग और महिला बाल विकास के साझा अभियान की पोल खोल रहे हैं. मध्यप्रदेश शासन ने कुपोषण के मामले में मझगवां क्षेत्र को रेड जोन में रखा है. यहां के हर घर में एक बच्चा कुपोषित है. हालात ये हैं कि हर साल 400 बच्चों को एनआरसी में भर्ती किया जाता है. इसके बाद भी हालत सुधरने की बजाय उल्टे बदतर होते जा रहे हैं. मझगवां बीएमओ ने कुपोषण फैलने की वजहें बताई हैं.
सरकारी आंकड़े बता रहे हकीकत
एक तरफ सरकारी आंकड़े कुपोषण के मामले में सतना जिले की हकीकत उजागर कर रहे हैं तो वहीं अधिकारी अपना-अपना राग अलापने से नहीं चूक रहे. सतना के मुख्य चिकित्सा अधिकारी का दावा है कि कुपोषण को दूर करने के लिए पूरी कोशिश की जा रही है.
कब मिटेगा कुपोषण का कलंक?
अधिकारी भले ही कुछ भी कहें लेकिन सरकार के तमाम दावे मझगवां की तस्वीर के सामने फीके पड़ रहे हैं. अब शासन-प्रशासन को चाहिए की आदिवासी बाहुल्य मझगवां को कुपोषित से सुपोषित बनाने ऐसे ठोस कदम उठाए जाएं, जिससे कुपोषण के कहर से यहां के बारिदों को राहत मिल सके.