सागर। मध्यप्रदेश को सोयाबीन प्रदेश का तमगा हासिल है, लेकिन पिछले कुछ सालों से सोयाबीन की फसल किसानों को धोखा दे रही है और खरीफ सीजन में कभी कीट व्याधि, तो कभी कम-ज्यादा बारिश के कारण बर्बाद हो रही है. ज्यादा लागत की फसल होने के कारण किसानों को नुकसान सहना पड़ रहा है. खासकर खेती पर निर्भर बुंदेलखंड इलाके में सोयाबीन के बर्बाद होने या कम उत्पादन के कारण किसान काफी परेशान है. ऐसे में जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के निर्देश पर सागर के बिजोरा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रयोग के तौर पर गर्मियों में सोयाबीन की फसल की बोवनी की गई और उन किसानों को भी प्रयोग में शामिल किया गया. जिनके पास सिंचाई के अच्छे इंतजाम है. इस प्रयोग के काफी अच्छे परिणाम आए हैं और प्रयोग की सफलता के बाद खरीफ सीजन की फसल का गर्मी में उत्पादन किया जा सकता है.
अनियमित बारिश के चलते किया प्रयोग: जिले के कृषि विज्ञान केंद्र बिजोरा के कृषि वैज्ञानिक आशीष त्रिपाठी बताते हैं कि खरीफ सीजन की सोयाबीन और उड़द की फसलें पिछले 4-5 साल से मौसम की अनियमितता और कम-ज्यादा बारिश के चलते प्रभावित हो रही थी. जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर से निर्देश मिले और बीज की उपलब्धता होने पर गर्मियों में सोयााबीन और थोडे़ से रकबे में उड़द की खेती के साथ ही प्रदर्शन के तौर पर किसाानों के यहां सोयाबीन का करीब 10 हेक्टेयर में उत्पादन किया. इन दोनों फसलों के लिए किए गए प्रयोग के काफी अच्छे परिणाम मिले हैं. उडद का 5 क्विटंल प्रति एकड़ के मान से उत्पादन हुआ. जबकि सागर जिले की उत्पादकता 5-6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसके अलावा क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र सागर और कृषि विज्ञान केंद्र बिजोरा में सोयाबीन की फसल के उत्पादन के काफी अच्छे परिणाम आए. इनमें उत्पादन 16-17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हुआ. ये ऐसी फसलें है, जिनके लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती है. ऐसे किसान जिनके पास तीसरी फसल के लिए सिंचाई की व्यवस्था है, जो सब्जी और मूंग की खेती करते हैं. अगर वो गर्मियों में उड़द या कम अवधि वाले सोयाबीन का उत्पादन करतें हैं, तो निश्चित रूप से अच्छा लाभ होगा. इस बार देवरी, केसली, गौरझामर, रहली और सागर के आसपास के किसानों ने गर्मियों में सोयाबीन का उत्पादन किया. किसानों के यहां 6- 8 क्विंटल प्रति एकड़ के मान से उत्पादन हुआ. निश्चित रूप से सागर जिले में करीब 20 से 25 हजार हेक्टेयर ऐसा इलाका है,जिसमें तीसरी फसल ली जा सकती है. किसान फसलों को लगाकर अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
क्या रहे फसल उत्पादन के परिणाम: जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के निर्देश पर दो हेक्टेयर का कार्यक्रम तय किया गया था. इसके लिए 32 क्विटंल सोयाबीन प्राप्त हुआ. इसी तरह उड़द का 4 हेक्टेयर का कार्यक्रम था, जिसके लिए 5 क्विंटल उड़द प्राप्त हुई. किसानों का फीडबैक 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आाया,तो कई किसानों का 13-14 क्विंटल से लेकर 16-18 क्विंटल तक उत्पादन हुआ है.
सिंचाई की व्यवस्था तो खरीफ सीजन से अच्छा उत्पादन: कृषि वैज्ञानिक आशीष त्रिपाठी बताते हैं कि गर्मियों में आसानी से सोयाबीन का उत्पादन लिया जा सकता है. जवााहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में कई हेक्टेयर में गर्मियों में सोयाबीन का उत्पादन किया जा रहा है. यहां प्रयोग के तौर पर पहली बार कर रहे हैं. किसान भाईयों को भी सलाह दे रहे हैं कि भले ही गरमी का मौसम हो, सिंचाई करके गरमी में सोयाबीन का उत्पादन ले सकते हैं. करीब 8 से 10 बार हमें सोयाबीन और उडद में 5 से 6 बार सिंचाई करना पड़ती है. तेज गर्मी होने पर भी अगर नियमित सिंचाई करते हैं, तो कोई दिक्कत नहीं होती है. पिछले साल काफी गरमी हुई थी, कृषि विज्ञान केंद्र ने एक हेक्टेयर में प्रयोग किया था. सोयाबीन का 11 क्विटंल उत्पादन प्राप्त हुआ था.
बारिश जैसी परेशानी गरमी में नहीं: वैज्ञानिक आशीष त्रिपाठी बताते हैं कि बारिश के मौसम में आद्रता ज्यादा रहती है तो कीडे़ और बीमारियों का प्रकोप ज्यादा होता है. दूसरा बारिश के मौसम में खरपतवार भी काफी ज्यादा होती है. जबकि गर्मी के मौसम में खरपतवार और बीमारियों की संभावना काफी कम होती है. जो किसाान बरसात में सोयाबीन का उत्पादन करते हैं, तब सबसे बड़ी समस्या नींदा के प्रकोप की होती है. इसके लिए उपयुक्त नींदा नाशक का प्रयोग करना चाहिए. वर्तमान में नई पीढ़ी के नींदानाशक आ गए हैं. जो फसल की बोवनी के समय तत्काल बाद डाले जाते हैं. सामान्य तौर पर किसान खड़ी फसल में नींदानाशक का उपयोग करते हैं. अब उसके अच्छे परिणाम देखने को नहीं मिल रहे हैं. नए नींदानाशक का प्रयोग और निंदाई, गुडाई या मशीनों के मााध्यम से खरपतवार हटाकर या मशीनों का उपयोग करके अच्छी फसल ले सकते हैं.
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सोयाबीन की बेहतर किस्में:
- जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय की नई किस्म जेएस-20116, जेएस-2172 बिल्कुल नई किस्म है. ये किस्में कम अवधि की है. 95 से 98 दिन में फसल पक जाती है.
- जेएस-2069 और जेएस-2098 में 100 से 105 दिन फसल पकने में लगते है.
- ग्वालियर विश्वविद्यालय की आरव्हीएसएम - 1135 और आरव्हीएसएम-1624 कम समय की है.
- सोयाबीन अनुसंधान निदेशालय की एनआरसी-150 और अन्य किस्में है,जो रोग बीमारी कम और अच्छे उत्पादन के लिए जानी जाती है.