सागर। किसी नेशनल हाईवे के किनारे जब भी कोई व्यक्ति कोई जमीन मुंह मांगे दामों में खरीदता है, तो उसे उम्मीद होती है कि भविष्य में उसकी खरीदी गई जमीन और भी महंगी हो जाएगी. वहीं अगर सरकार भी अधिग्रहण करेगी तो कम से कम तय सरकारी दर के हिसाब से मुआवजा देगी. सागर कानपुर हाईवे के नाम से जाने जाने वाले नेशनल हाईवे-934 को फोरलेन (sagar kanpur national highway widening) बनाए जाने के लिए जमीन अधिग्रहण का जो मुआवजा लोगों को मिल रहा है, वह उनके द्वारा खरीदी गई जमीन की स्टांप ड्यूटी से भी कम है. इन हालातों में भूमि स्वामी अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं और सरकार से उचित मुआवजे की मांग कर रहे हैं. पीड़ित भूमि स्वामियों का कहना है कि अगर उन्हें उचित मुआवजा नहीं दिया गया, तो आत्महत्या के लिए मजबूर होंगे.
नेशनल हाईवे के चौड़ीकरण को कब मिली थी स्वीकृति
दरअसल, नेशनल हाईवे कानपुर-सागर हाईवे के चौड़ीकरण के कार्य की स्वीकृति केंद्र सरकार द्वारा फरवरी 2021 में दी गई थी. इसके तहत नेशनल हाईवे-934 का दो चरणों में चौड़ीकरण किया जाना है, जिसकी लागत 143.75 करोड़ है. सड़क चौड़ीकरण योजना के तहत फोरलेन बनाया जा रहा है. अलग-अलग चरणों में हाईवे को फोरलेन बनाने का काम किया जाएगा. चौड़ीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण (land acquisition in sagar) का काम शुरू हो चुका है.
सरकार के मुआवजे से क्यों नाराज हैं जमीन के मालिक
हाईवे के नजदीक जितनी भी कृषि भूमि या आवासीय भूमि का अधिग्रहण किया जाना है. खासकर सागर छतरपुर मार्ग पर स्थित कर्रापुर गांव के करीब 900 भू-स्वामियों को मिल रहे जमीन अधिग्रहण के नोटिस से उनकी नींद हराम हो गई है. करीब 200 निर्मित भवन और 700 भू-स्वामी इससे प्रभावित हो रहे हैं. भूमि स्वामियों का कहना है कि हमें गाइडलाइन के तहत मुआवजा (land acquisition compensation to owner in sagar) नहीं दिया जा रहा है. सड़क किनारे घर बनाकर रहने वाले लोगों को बेदखली के आदेश दे दिए हैं. उन्हें मुआवजा पश्चिम क्षेत्र कृषि भूमि के आधार पर दिया जा रहा है. जबकि उनके मकान या प्लाट बाकायदा नियमानुसार डायवर्टेड हैं.
जमीन अधिग्रहण से कितना हो रहा नुकसान
नेशनल हाईवे-934 के नजदीक के करीब 5 साल पहले 15×20 वर्ग फीट का प्लॉट मोटर वाइंडिंग कर अपना परिवार चलाने वाले राकेश रजक में 4 लाख 60 हजार रुपए में खरीदा था और 46 हजार रुपए स्टांप ड्यूटी अदा की थी. पिछले दिनों जब उनकी जमीन का अधिग्रहण का नोटिस (land acquisition notice in sagar) पहुंचा, तो उनके होश उड़ गए. उनका मुआवजा सिर्फ 39 हजार रुपए तय किया गया है. जबकि जब उन्होंने यह जमीन खरीदी थी, तब 46 हजार रुपए तो स्टांप ड्यूटी अदा की थी. नोटिस मिलने के बाद राकेश रजक दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर हैं और उनका कहना है कि अगर उन्हें उचित मुआवजा नहीं मिला, तो आत्मदाह कर लेंगे.
हेक्टेयर में हो रहा मुआवजे का आकलन
इसी तरह नेशनल हाईवे के किनारे जमीन खरीदने वाले अवधेश सिंह बताते हैं कि 2015 में उन्होंने 3000 वर्ग फीट का प्लॉट 400 प्रति वर्ग फीट की दर से 13 लाख 20 हजार रुपए में खरीदा था. जिसकी तय स्टांप ड्यूटी भी जमा की गई थी, लेकिन जब फोरलेन बनाने के लिए जमीन अधिकृत की गई, तो उनका मुआवजा सिर्फ 2 लाख 25 हजार रुपए तय हुआ है. अवधेश सिंह का कहना है कि जब वह सरकार ने रजिस्ट्री वर्ग फीट के हिसाब से कराई है और उसी हिसाब से स्टांप ड्यूटी ली है, तो सरकार मुआवजा के आकलन हेक्टेयर में क्यों कर रही है.
भूमि अधिग्रहण का क्या है नियम
सरकार की मनमानी का शिकार विष्णु प्रसाद अग्निहोत्री बताते हैं कि जमीन का अधिग्रहण 2018 की भूमि अर्जन की गाइडलाइन के अनुसार किया जाना था. गाइडलाइन (mp government land acquisition guideline) के हिसाब से तय है कि जमीन का अधिग्रहण बाजार मूल्य के तहत किया जाना चाहिए. जबकि यहां पर हेक्टेयर के हिसाब से किया जा रहा है और एक वर्ग फीट का मुआवजा सिर्फ 80 रुपए भूमि स्वामी को मिल पा रहा है. वहीं सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के तहत विस्थापन के नियमों का भी पालन नहीं किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि किसी भी व्यक्ति को विस्थापित करते समय शासन को इतना मुआवजा देना चाहिए कि वह नए सिरे से पहले की तरह विस्थापित हो सके. इसके अलावा शासन द्वारा एक नोटिस एक साथ 17 लोगों को जारी किया जा रहा है और बैंक में सामूहिक खाता खुलवाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है.
कलेक्टर दीपक आर्य का कहना है कि भूमि ग्रहण अधिनियम के तहत मुआवजे का प्रावधान किया गया है. अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि अगर भूमि स्वामी संतुष्ट (land owner in sagar dissatisfied with compensation) नहीं है, तो वह इस मामले में अदालत की शरण में जा सकता है. नोटिस जारी होने के बाद 60 दिन की समय सीमा में जमीन शासन की हो जाती है और कर्रापुर में 60 दिन की अवधि हो चुकी है. भूमि स्वामियों ने मेरे से भी मुलाकात की थी. मैंने उन्हें सलाह दी है कि वह अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं. उसके अनुसार अगर मुआवजे की राशि बढ़ती है, तो दी जाएगी.