सागर। शहर के मडिया विट्ठल नगर इलाके के रहने वाले नेत्रहीन राकेश चौधरी (story of blind Rakesh) अपने हुनर के दम पर नेत्रहीन भाइयों की आंखों की रोशनी बन गए हैं. हिंदी से एमए कर रहे राकेश चौधरी ने खुद नेत्रहीन होने के बावजूद ब्रेल लिपि से रेलवे समय सारणी, कैलेंडर(calendar in braille) और यहां तक कि कोरोना की विभीषिका के बाद आयुर्वेद के घरेलू नुस्खे की किताब तैयार की है. राकेश चौधरी हुनरमंद होने के बावजूद फिलहाल बेरोजगार हैं और उनकी केंद्र और राज्य सरकार से एक ही मांग है कि हजारों की संख्या में जो दिव्यांगों के पद खाली पड़े हैं, उनको भरकर दिव्यांगों को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद करें.
संघर्ष करते हुए जारी रखी पढ़ाई
सागर शहर के मड़ैया विट्ठल नगर में रहने वाले राकेश चौधरी के पिता रिटायर होने के बाद घर पर रहते हैं. राकेश अपने पांच भाइयों में चौथे हैं. राकेश से छोटा भाई जो मानसिक तौर पर स्वस्थ नहीं था उसका निधन हो चुका है. फिलहाल राकेश भोपाल के हमीदिया कॉलेज से हिंदी से एमए कर रहे हैं और इन्होंने बीए की पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय से की है. राकेश की स्कूली पढ़ाई सागर के शासकीय मूकबधिर शाला और इंदौर के हेलेन कैलर ब्लाइंड स्कूल में हुई है. राकेश चौधरी ने उज्जैन की आईटीआई से कंप्यूटर ऑपरेटर ट्रेड में डिप्लोमा किया है.
रेलवे समय सारणी बनाकर सबको चौंकाया
राकेश चौधरी के मन में हाई स्कूल परीक्षा के बाद रेलवे समय सारणी बनाने का विचार आया. उन्होंने अपने दोस्त भागीरथ अहिरवार के साथ मिलकर दिन रात रेलवे स्टेशन पर बिताकर सागर रेलवे स्टेशन से गुजरने वाली ट्रेनों की जानकारी इकट्ठा की और रेलवे समय सारणी तैयार की. उनके इस प्रयास की जमकर सराहना हुई. हालांकि इस कोशिश से इन लोगों के लिए कुछ ज्यादा हासिल तो नहीं हुआ, लेकिन इनकी पहल पर रेलवे ने ब्रेल लिपि में समय सारणी तैयार करनी शुरू कर दी. वहीं इस कोशिश से मिली हौसला अफजाई के बाद राकेश ने कई और प्रयास किए.
2016 में तैयार किया पहला कैलेंडर
रेलवे समय सारणी तैयार करने के बाद राकेश चौधरी ने 2016 में कैलेंडर बनाने का फैसला किया. इन्होंने अक्टूबर माह से ही कलेंडर बनाने के प्रयास तेज कर दिए. कैलेंडर में होने वाली तमाम तिथियां, त्योहारों की जानकारी और मुहूर्त इकट्ठा करने के लिए उन्हें काफी मेहनत भी करनी पड़ी.
कोरोना काल में आयुर्वेद के नुस्खे पर लिखी किताब (Ayurvedic prescription book in braille)
2020 में जब उस सारा विश्व कोरोना की भीषण महामारी का सामना कर रहा था, तब राकेश चौधरी के दिमाग में विचार आया कि नेत्रहीन लोगों को आयुर्वेद से जुड़े घरेलू नुस्खों की कम जानकारी होती है,क्योंकि इससे संबंधित किताबें और ज्ञान ब्रेल लिपि में नहीं मिलती है. इसी सोच के साथ राकेश चौधरी ने आयुर्वेद के नुस्खों की किताब ब्रेल लिपि में लिखने का फैसला किया और करीब एक साल की कड़ी मशक्कत के बाद अब आयुर्वेद के नुस्खे की किताब ब्रेल लिपि में तैयार हो गई है. इसके लिए उन्होंने अपने बुजुर्गों और जान-पहचान के लोगों से घरेलू नुस्खों की जानकारी जुटाई और उन्हें ब्रेल लिपि में तैयार किया.
नेत्रहीनों के खाली पद भरने की मांग
नेत्रहीन राकेश चौधरी और उनके नेत्रहीन दोस्त भागीरथ अहिरवार चाहते हैं कि सरकार उन खाली पदों को भरे,जो दिव्यांगों के लिए कई विभागों में कई सालों से खाली पड़े हैं. राकेश चौधरी का कहना है कि हमें सिर्फ प्रोत्साहन या दया की जरूरत नहीं है. हम सरकार से चाहते हैं कि वह अपनी जिम्मेदारी निभाने का काम करें और जो हम लोगों के लिए आरक्षित पद खाली हैं, उनको भरने का काम करें.