सागर। मध्यप्रदेश के स्थापना दिवस के अवसर पर उन लोगों को भी याद करना जरूरी है. जिन्होंने मध्य प्रदेश के गठन और नया स्वरूप देने में अहम भूमिका निभाई. मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल की बात करें, तो उनका बुंदेलखंड से गहरा नाता था. उनका जन्म सागर के खुशीपुरा (रविशंकर नगर) इलाके में हुआ था. उनकी शादी सागर जिले की रहली तहसील के गुड़ा गांव में हुई थी. (mp foundation day on 1st november)
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गांधी जी के कहने पर आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ायाः महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने छत्तीसगढ़ में आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए काम किया था. इसका नतीजा ये हुआ कि जब मध्यप्रदेश का गठन हुआ तो अविभाजित मध्यप्रदेश में आदिवासी इलाके छत्तीसगढ़ को प्रतिनिधित्व देने के लिए पं. रविशंकर शुक्ल को पहला मुख्यमंत्री बनाया गया. देश जब आजाद नहीं हुआ था और मध्यप्रदेश की कल्पना भी नहीं की गई थी. तब बुंदेलखंड जैसे पिछड़े इलाके में सर डॉ. हरिसिंह गौर ने सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. विश्वविद्यालय की स्थापना में पं. रविशंकर शुक्ल ने अहम भूमिका निभाई थी. विश्वविद्यालय का अधिनियम सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार की विधानसभा में पारित होना था. कुछ लोग ये विश्वविद्यालय सागर की जगह कहीं और स्थापित कराना चाहते थे. तब डॉ. हरिसिंह गौर के घनिष्ठ मित्र पं. रविशंकर शुक्ल ने अपनी जन्मभूमि से कृतज्ञता निभाई और सागर विश्वविद्यालय की स्थापना में आड़े आ रही तमाम मुश्किलों को दूर किया. आज सागर विश्वविद्यालय में डॉ. हरिसिंह गौर के साथ उनकी भी समाधि स्थापित की गई है. (mp foundation day on 1st november) (67th foundation day of madhya pradesh) (madhya pradesh heart of country) (mp dil Jawan is even in 67 years)
कैसे बने मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्रीः डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर में हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष रहे प्रो. डॉ. सुरेश आचार्य बताते हैं कि पं. रविशंकर शुक्ल ना सिर्फ मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे, इसके पहले वे सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार के भी मंत्री थे. उनका जन्म 2 अगस्त 1877 को सागर के खुशीपुरा में हुआ था. खुशीपुरा का नाम अब रविशंकर नगर उनके नाम पर कर दिया गया है. पं. रविशंकर शुक्ल अपने पुत्रों के कारण भी बड़े चर्चित हुए. उनके सभी बेटे विद्याचरण, श्यामाचरण, अंबिका चरण, शारदा चरण और गिरजा चरण उनको "कक्का जी" कहकर बुलाते थे. उसका परिणाम ये हुआ कि वह पूरे इलाके के "कक्का जी" कहलाने लगे. जब भारतीय स्वतंत्रता संग्राम जारी था, तो महात्मा गांधी ने उनको बुलाकर छत्तीसगढ़ में काम करने का आदेश दिया और कहा कि मैं स्वयं छत्तीसगढ़ तुम्हारे पास आऊंगा. उन्होंने छत्तीसगढ़ में वकालत शुरू की और कांग्रेस के बड़े कार्यकर्ता के रूप में उभरे. मध्यप्रदेश का गठन हुआ, तो आदिवासी इलाके को प्रतिनिधित्व देने के लिहाज से पंडित रविशंकर शुक्ल को प्रथम मुख्यमंत्री बनाया गया. (mp foundation day on 1st november) (67th foundation day of madhya pradesh)
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सागर विश्वविद्यालय की स्थापना में आ रही अड़चनों को दूर कियाः आजादी के पहले 1946 में बुंदेलखंड जैसे पिछड़े क्षेत्र में डॉ. हरिसिंह गौर के प्रयास से सागर विश्वविद्यालय की स्थापना हो गई थी. विश्वविद्यालय की स्थापना में पं. रविशंकर शुक्ल का अहम योगदान था. सागर विश्वविद्यालय में डॉ. हरिसिंह गौर के साथ पं. रविशंकर शुक्ल की भी समाधि है. पं. रविशंकर शुक्ल और डॉ. हरिसिंह गौर बड़े वकील तो थे ही, साथ में बड़े घनिष्ठ मित्र थे। जब सागर विश्वविद्यालय की स्थापना होने थी तो कई लोग चाह रहे थे कि ये विश्वविद्यालय सागर की जगह कहीं और स्थापित किया जाए. पं. रविशंकर शुक्ल सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार के मुख्यमंत्री होने के नाते डॉ. हरिसिंह गौर के बड़े मददगार साबित हुए. उन्होंने सागर से हमेशा बड़ा प्यार किया और सागर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की. उन्होंने सागर विश्वविद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार की राजधानी तब नागपुर हुआ करती थी. पं. रविशंकर शुक्ल के प्रयासों से नागपुर विधानसभा में सागर विश्वविद्यालय अधिनियम 1946 पारित हुआ. यहां एक नाम और याद दिलाना चाहूंगा पं. डीपी शुक्ला, जो डॉ. हरिसिंह गौर के निज सचिव थे. वे डॉ. हरिसिंह गौर की रजिस्टर्ड वसीयत लेकर सागर से देवरी तक पैदल गए और कैसे भी नागपुर पहुंचे. उनके नागपुर पहुंचते ही पं. रविशंकर शुक्ल के आदेश पर उन्हें पुलिस के सुरक्षा घेरे में लिया गया और पं. रविशंकर शुक्ल को डीपी शुक्ला ने वसीयत सौंपी. तब जाकर सागर विश्वविद्यालय का अधिनियम लागू हुआ और विश्वविद्यालय स्थापित हुआ. (mp foundation day on 1st november)
दमोह के पथरिया और बांदकपुर से भी गहरा नाताः प्रो. डॉ. सरेश आचार्य बताते हैं कि पं. रविशंकर शुक्ल सागर के कक्का जी थे, तो रहली के गुड़ा गांव में उनका ब्याह हुआ था. मुझे अच्छे से याद है कि पथरिया वाले राधेश्याम जी महाराज उनके परम मित्र थे, वे अक्सर उनसे मिलने आते थे. उनके देहावसान के बाद पं. श्यामाचरण शुक्ल और विद्याचरण शुक्ल ने यह परंपरा जारी रखी और गुरु के दरवाजे पर मत्था टेकना जारी रखा. जब भी विद्याचरण शुक्ल पथरिया आते थे, तो सागर में डॉक्टर एनपी शर्मा के यहां रुकते थे और मुझे फोन करके बुलाते थे. फिर हम लोग साथ पथरिया जाते थे. उनका दमोह के बांदकपुर में स्थित जागेश्वर धाम से भी बहुत लगाव था और वह वहां पूजा करने जाते थे.
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