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Bundelkhand Kharif Crop: खरीफ फसल की बुवाई से पहले सलाह- सोयाबीन की जगह इन फसलों पर करें फोकस - सोयाबीन न लगाएं

बुंदेलखंड में बड़े पैमाने पर खरीफ सीजन में किसान सोयाबीन की फसल बोता है. लेकिन पिछले चार-पांच सालों से सोयाबीन की फसल लगातार धोखा दे रही है और उत्पादन गिर रहा है. ऐसे में कृषि विभाग का मानना है कि किसानों को सोयाबीन की बुवाई से बचना चाहिए और अगर बोना भी चाहता है, तो जमीन बदल देना चाहिए. किसान दलहन फसलों पर ध्यान दें.

Bundelkhand Kharif Crop
खरीफ फसल की बुवाई से पहले किसानों को सलाह
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Published : Jun 29, 2023, 10:33 AM IST

खरीफ फसल की बुवाई से पहले किसानों को सलाह

सागर। देर से सही लेकिन मानसून ने जोरदार दस्तक दी है और लगातार हो रही बारिश से किसानों की खरीफ फसल से काफी उम्मीदें बढ़ गई हैं. क्योंकि किसानों को जहां समय पर बुवाई करने का मौका मिल जाएगा. वहीं बारिश का सिलसिला ऐसा ही चलता रहा तो पिछले कई सालों से खरीफ की फसल में नुकसान झेल रहा किसान थोड़ी बहुत भरपाई कर पाएगा. कृषि विभाग की सलाह है कि किसानों को सोयाबीन की जगह दलहनी फसलों पर ध्यान देना चाहिए. क्योंकि सोयाबीन का उत्पादन लगातार गिर रहा है और ज्यादा लागत होने के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति पर विपरीत असर पड़ रहा है. ऐसे में किसानों को उड़द की फसल की बुवाई करना चाहिए. क्योंकि उड़द की लागत सोयाबीन के मुकाबले काफी कम होती है.

पीले सोने का मोह नहीं छोड़ पा रहा किसान : बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि पूरे मध्यप्रदेश में पिछले चार-पांच सालों से सोयाबीन का उत्पादन लगातार गिर रहा है. कभी मौसम के मिजाज के कारण सोयाबीन की फसल नष्ट हो रही है तो कभी सब कुछ अच्छा होने के बावजूद भी अच्छा फसल उत्पादन नहीं हो रहा है. जबकि डीजल और खाद बीज महंगा होने के कारण सोयाबीन की फसल की लागत काफी ज्यादा होती है. इसके अलावा फसल को सुरक्षित रखने के लिए निंदाई गुड़ाई भी काफी महंगी पड़ती है. कृषि विभाग किसानों को सलाह दे रहा है कि वह सोयाबीन के गिरते उत्पादन को ध्यान में रख फसलों की विविधता पर ध्यान दें. अगर सोयाबीन बोना भी चाहते हैं तो खेत बदल दें या फिर उड़द जैसी दलहनी फसलों को अपनाएं.

बुंदेलखंड में बढ़ रहा है उड़द का रकबा : पिछले 5 साल से सोयाबीन की फसल किसानों को धोखा दे रही है. ऐसी स्थिति में कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर किसान सोयाबीन की बुवाई कम करते जा रहे हैं. बुंदेलखंड में पिछले 2 सालों के आंकड़े देखें तो खरीफ के सीजन में करीब 1750 हजार हेक्टेयर भूमि पर खरीफ की फसलों की बुवाई होती है. पिछले 2 सालों में उड़द का रकबा सोयाबीन के मुकाबले करीब 4 गुना बढ़ चुका है.

उड़द -

2021 - 812 हजार हेक्टेयर

2022 - 721 हजार हेक्टेयर

सोयाबीन -

2021 - 253 हजार हेक्टेयर

2022 - 309 हजार हेक्टेयर

क्या कहना है किसानों का : मानसून की बारिश को लेकर किसान जाहर सिंह का मानना है कि खरीफ के सीजन के हिसाब से बारिश से सही समय पर आई है और 30 जून तक अगर दो-चार दिन के लिए मौसम साफ होता है तो किसानों को बुवाई का मौका मिल जाएगा और खरीफ फसल के लिहाज से काफी अच्छा होगा. अगर बारिश का सिलसिला लगातार ऐसे ही चलता रहा तो खरीफ सीजन की बुवाई में देरी होगी, जिससे किसानों को नुकसान हो सकता है. फिलहाल जो बारिश हो रही है, वह खरीफ सीजन के लिए काफी अच्छी है.

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फसलों की विविधता पर ध्यान दें किसान : कृषि विभाग के सहायक संचालक कृषि जितेंद्र सिंह राजपूत का कहना है कि मानसून की बारिश जिस तरह से आई है ये खरीफ के सीजन के लिए काफी अच्छी मानी जा रही है. किसानों को खरीफ की फसल की तैयारी शुरू कर देना चाहिए और बारिश के बाद जैसे ही मौसम साफ होता है तो बुवाई करना चाहिए. किसानों को सलाह है कि सोयाबीन को छोड़कर दलहन की तरफ भी ध्यान दें. किसान को अच्छी फसल हासिल करने के लिए फसल की विविधता पर ध्यान देना चाहिए और एक ही खेत में लगातार एक ही फसल को नहीं बोना चाहिए.

खरीफ फसल की बुवाई से पहले किसानों को सलाह

सागर। देर से सही लेकिन मानसून ने जोरदार दस्तक दी है और लगातार हो रही बारिश से किसानों की खरीफ फसल से काफी उम्मीदें बढ़ गई हैं. क्योंकि किसानों को जहां समय पर बुवाई करने का मौका मिल जाएगा. वहीं बारिश का सिलसिला ऐसा ही चलता रहा तो पिछले कई सालों से खरीफ की फसल में नुकसान झेल रहा किसान थोड़ी बहुत भरपाई कर पाएगा. कृषि विभाग की सलाह है कि किसानों को सोयाबीन की जगह दलहनी फसलों पर ध्यान देना चाहिए. क्योंकि सोयाबीन का उत्पादन लगातार गिर रहा है और ज्यादा लागत होने के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति पर विपरीत असर पड़ रहा है. ऐसे में किसानों को उड़द की फसल की बुवाई करना चाहिए. क्योंकि उड़द की लागत सोयाबीन के मुकाबले काफी कम होती है.

पीले सोने का मोह नहीं छोड़ पा रहा किसान : बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि पूरे मध्यप्रदेश में पिछले चार-पांच सालों से सोयाबीन का उत्पादन लगातार गिर रहा है. कभी मौसम के मिजाज के कारण सोयाबीन की फसल नष्ट हो रही है तो कभी सब कुछ अच्छा होने के बावजूद भी अच्छा फसल उत्पादन नहीं हो रहा है. जबकि डीजल और खाद बीज महंगा होने के कारण सोयाबीन की फसल की लागत काफी ज्यादा होती है. इसके अलावा फसल को सुरक्षित रखने के लिए निंदाई गुड़ाई भी काफी महंगी पड़ती है. कृषि विभाग किसानों को सलाह दे रहा है कि वह सोयाबीन के गिरते उत्पादन को ध्यान में रख फसलों की विविधता पर ध्यान दें. अगर सोयाबीन बोना भी चाहते हैं तो खेत बदल दें या फिर उड़द जैसी दलहनी फसलों को अपनाएं.

बुंदेलखंड में बढ़ रहा है उड़द का रकबा : पिछले 5 साल से सोयाबीन की फसल किसानों को धोखा दे रही है. ऐसी स्थिति में कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर किसान सोयाबीन की बुवाई कम करते जा रहे हैं. बुंदेलखंड में पिछले 2 सालों के आंकड़े देखें तो खरीफ के सीजन में करीब 1750 हजार हेक्टेयर भूमि पर खरीफ की फसलों की बुवाई होती है. पिछले 2 सालों में उड़द का रकबा सोयाबीन के मुकाबले करीब 4 गुना बढ़ चुका है.

उड़द -

2021 - 812 हजार हेक्टेयर

2022 - 721 हजार हेक्टेयर

सोयाबीन -

2021 - 253 हजार हेक्टेयर

2022 - 309 हजार हेक्टेयर

क्या कहना है किसानों का : मानसून की बारिश को लेकर किसान जाहर सिंह का मानना है कि खरीफ के सीजन के हिसाब से बारिश से सही समय पर आई है और 30 जून तक अगर दो-चार दिन के लिए मौसम साफ होता है तो किसानों को बुवाई का मौका मिल जाएगा और खरीफ फसल के लिहाज से काफी अच्छा होगा. अगर बारिश का सिलसिला लगातार ऐसे ही चलता रहा तो खरीफ सीजन की बुवाई में देरी होगी, जिससे किसानों को नुकसान हो सकता है. फिलहाल जो बारिश हो रही है, वह खरीफ सीजन के लिए काफी अच्छी है.

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