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Holi 2023: बुंदेलखंड के इस गांव में नहीं उड़ते रंग-गुलाल, जानें क्या है वजह

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Published : Mar 3, 2023, 7:58 PM IST

होली के त्योहार का जहां लोग बड़े ही बेसब्री से इंतजार करते हैं. रंग-गुलाल और पिचकारी इकठ्ठा करते हैं, वहीं मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में एक ऐसा गांव हैं, जहां होली नहीं मनाई जाती. यहां होली का कोई उत्साह नहीं होता.

Holi 2023:
इस गांव में नहीं मनाई जाती होली
इस गांव में नहीं मनाई जाती होली

सागर। वैसे तो बुंदेलखंड की लोक परंपरा और संस्कृति अपने आप में अनूठी है, लेकिन इसके अलावा बुंदेलखंड में रहने वाले आदिवासियों की अपनी अलग परंपराएं और रीति रिवाज हैं. सागर जिले के देवरी विकासखंड के आदिवासी गांव हथखोय में होली के त्योहार को लेकर अनोखी परंपरा है. इस गांव के आदिवासी लोग 5 दिनों के होली के त्योहार में कोई भी त्योहार नहीं मनाते हैं. गांव के लोग ना तो होलिका दहन करते हैं और ना ही रंगोत्सव मनाते हैं. ग्रामीणों का मानना है कि अगर वह होली से जुड़ा कोई भी त्योहार मनाते हैं, तो उनकी कुलदेवी झारखंडन माता नाराज हो जाती हैं और गांव में अनिष्ट कारी घटना घटती है. कुलदेवी नाराज ना हो, गांव फले-फूले और कोई अनहोनी ना हो, इसके लिए गांव के लोग संकल्प लेकर आज भी परंपरा को निभाते आ रहे हैं. एक तरफ होली के त्योहार पर चारों तरफ हर्षोल्लास और रंग गुलाल नजर आता है, तो हथखोह गांव में आम दिनों की तरह लोग अपने कामकाज में मशगूल रहते हैं और रंगों से दूरी बरतते हैं.

कैसी परम्परा है आदिवासी गांव में: जिला मुख्यालय सागर से करीब 70 किलोमीटर दूर देवरी विकासखंड का हथखोय गांव अपनी अनोखी परंपराओं और रीति-रिवाजों को लेकर बुंदेलखंड इलाके में मशहूर है. रंगों के त्योहार होली को लेकर इस गांव की अनोखी परंपरा हमेशा चर्चा में रहती है. क्योंकि इस गांव में होली के पर्व से जुड़े किसी भी तरह के त्योहर नहीं मनाए जाते हैं. होलिका दहन हो, रंगों से खेलना हो या फिर भाई दूज और रंग पंचमी हो. इस गांव के लोग 5 दिन के हर्षोल्लास के पर्व में रंगों से अछूते रहते हैं,तो भाई दूज के दिन कलाई भी सूनी रहती है. स्थानीय लोग बताते हैं कि पूर्वजों के जमाने से यह परंपरा चली आ रही है और गांव में किसी भी व्यक्ति ने ना तो कभी होली जलाई है और ना रंग खेले हैं. ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि गांव के लोग मानते हैं कि उनकी कुलदेवी होली का त्योहार मनाने से नाराज हो जाती हैं. गांव में कोई ना कोई अनिष्ट कारी घटना घटी है. ग्रामीण बताते हैं कि जब से पैदा हुए हैं, तब से एक बार भी होली जलते नहीं देखी और ना ही होली से जुड़ा कोई भी त्योहार मनाया है.

Tribal village holi tradition
झारखंडन माता के मंदिर में बैठे ग्रामीण

झारखंडन माता है गांव की कुलदेवी: देवरी विकासखंड के आदिवासी गांव हथखोय के बाहर झारखंडन माता का मंदिर बना हुआ है. जो गांव की कुलदेवी कही जाती हैं. माना जाता है कि कुलदेवी झारखंडन माता होली का त्योहार मनाने से नाराज हो जाती हैं और गांव में कोई ना कोई अनिष्ट जरूर होता है. गांव के लोगों का मानना है कि झारखंडन माता गांव और गांव के लोगों की रक्षा करती हैं. इसलिए गांव के लोग उनकी कुलदेवी के रूप में पूजा करते हैं. गांव के लोग होली भले नहीं मनाते हैं, लेकिन नवरात्रि के अवसर पर 9 दिन तक नवरात्रि का त्योहार धूमधाम से मनाते हैं और झारखंड माता के मंदिर में मेला भरता है. गांव के बुजुर्ग बताते थे कि एक बार गांव के लोगों ने परंपरा तोड़कर होली जलाने का प्रयास किया, लेकिन नतीजा ये हुआ कि होली की रात ही पूरा गांव भीषण आग की चपेट में आ गया. लोगों के घर में लगी आग से ऊंची- ऊंची लपटे उठने लगी थी. गांव में अफरा-तफरी का माहौल हो गया और गांव के तमाम लोगों ने झारखंडन माता के दरबार में पहुंच कर क्षमा मांगी और प्रार्थना की. ग्रामीणों ने माता के समक्ष संकल्प लिया कि दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी. तब जाकर कुछ ही देर में आग बुझ गई थी. घटना के बाद ना तो ग्रामीणों ने कभी होली जलाने का प्रयास किया और ना ही रंगोत्सव मनाया. तब से गांव में किसी भी तरह की अनिष्टकारी घटना भी नहीं घटी है. लोग इसे झारखंडन माता की कृपा बताते हैं.

Tribal village holi tradition
झारखंडन माता

होली से जुड़ी कुछ और खबरें यहां पढ़ें

इस साल भी नहीं मनाई जाएगी गोली: एक तरफ जहां पूरे देश में होली की तैयारियां तेज हो गई हैं. वहीं दूसरी तरफ हथखोए गांव में होली का कोई माहौल नजर नहीं आ रहा है. लोग अपनी खेती किसानी के काम में आम दिनों की तरह लगे हुए हैं. होली के त्यौहार को लेकर किसी तरह की तैयारियां भी नहीं चल रही है. स्थानीय लोगों का कहना है कि हम लोग झारखंडन माता की कृपा से अपना पालन पोषण कर रहे हैं. वही हम लोगों की रक्षा करती हैं. होली के त्योहार को मना कर हम माता की नाराजगी नहीं चाहते हैं. हमारे लिए सब त्योहार नवरात्रि के अवसर पर होते हैं.

इस गांव में नहीं मनाई जाती होली

सागर। वैसे तो बुंदेलखंड की लोक परंपरा और संस्कृति अपने आप में अनूठी है, लेकिन इसके अलावा बुंदेलखंड में रहने वाले आदिवासियों की अपनी अलग परंपराएं और रीति रिवाज हैं. सागर जिले के देवरी विकासखंड के आदिवासी गांव हथखोय में होली के त्योहार को लेकर अनोखी परंपरा है. इस गांव के आदिवासी लोग 5 दिनों के होली के त्योहार में कोई भी त्योहार नहीं मनाते हैं. गांव के लोग ना तो होलिका दहन करते हैं और ना ही रंगोत्सव मनाते हैं. ग्रामीणों का मानना है कि अगर वह होली से जुड़ा कोई भी त्योहार मनाते हैं, तो उनकी कुलदेवी झारखंडन माता नाराज हो जाती हैं और गांव में अनिष्ट कारी घटना घटती है. कुलदेवी नाराज ना हो, गांव फले-फूले और कोई अनहोनी ना हो, इसके लिए गांव के लोग संकल्प लेकर आज भी परंपरा को निभाते आ रहे हैं. एक तरफ होली के त्योहार पर चारों तरफ हर्षोल्लास और रंग गुलाल नजर आता है, तो हथखोह गांव में आम दिनों की तरह लोग अपने कामकाज में मशगूल रहते हैं और रंगों से दूरी बरतते हैं.

कैसी परम्परा है आदिवासी गांव में: जिला मुख्यालय सागर से करीब 70 किलोमीटर दूर देवरी विकासखंड का हथखोय गांव अपनी अनोखी परंपराओं और रीति-रिवाजों को लेकर बुंदेलखंड इलाके में मशहूर है. रंगों के त्योहार होली को लेकर इस गांव की अनोखी परंपरा हमेशा चर्चा में रहती है. क्योंकि इस गांव में होली के पर्व से जुड़े किसी भी तरह के त्योहर नहीं मनाए जाते हैं. होलिका दहन हो, रंगों से खेलना हो या फिर भाई दूज और रंग पंचमी हो. इस गांव के लोग 5 दिन के हर्षोल्लास के पर्व में रंगों से अछूते रहते हैं,तो भाई दूज के दिन कलाई भी सूनी रहती है. स्थानीय लोग बताते हैं कि पूर्वजों के जमाने से यह परंपरा चली आ रही है और गांव में किसी भी व्यक्ति ने ना तो कभी होली जलाई है और ना रंग खेले हैं. ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि गांव के लोग मानते हैं कि उनकी कुलदेवी होली का त्योहार मनाने से नाराज हो जाती हैं. गांव में कोई ना कोई अनिष्ट कारी घटना घटी है. ग्रामीण बताते हैं कि जब से पैदा हुए हैं, तब से एक बार भी होली जलते नहीं देखी और ना ही होली से जुड़ा कोई भी त्योहार मनाया है.

Tribal village holi tradition
झारखंडन माता के मंदिर में बैठे ग्रामीण

झारखंडन माता है गांव की कुलदेवी: देवरी विकासखंड के आदिवासी गांव हथखोय के बाहर झारखंडन माता का मंदिर बना हुआ है. जो गांव की कुलदेवी कही जाती हैं. माना जाता है कि कुलदेवी झारखंडन माता होली का त्योहार मनाने से नाराज हो जाती हैं और गांव में कोई ना कोई अनिष्ट जरूर होता है. गांव के लोगों का मानना है कि झारखंडन माता गांव और गांव के लोगों की रक्षा करती हैं. इसलिए गांव के लोग उनकी कुलदेवी के रूप में पूजा करते हैं. गांव के लोग होली भले नहीं मनाते हैं, लेकिन नवरात्रि के अवसर पर 9 दिन तक नवरात्रि का त्योहार धूमधाम से मनाते हैं और झारखंड माता के मंदिर में मेला भरता है. गांव के बुजुर्ग बताते थे कि एक बार गांव के लोगों ने परंपरा तोड़कर होली जलाने का प्रयास किया, लेकिन नतीजा ये हुआ कि होली की रात ही पूरा गांव भीषण आग की चपेट में आ गया. लोगों के घर में लगी आग से ऊंची- ऊंची लपटे उठने लगी थी. गांव में अफरा-तफरी का माहौल हो गया और गांव के तमाम लोगों ने झारखंडन माता के दरबार में पहुंच कर क्षमा मांगी और प्रार्थना की. ग्रामीणों ने माता के समक्ष संकल्प लिया कि दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी. तब जाकर कुछ ही देर में आग बुझ गई थी. घटना के बाद ना तो ग्रामीणों ने कभी होली जलाने का प्रयास किया और ना ही रंगोत्सव मनाया. तब से गांव में किसी भी तरह की अनिष्टकारी घटना भी नहीं घटी है. लोग इसे झारखंडन माता की कृपा बताते हैं.

Tribal village holi tradition
झारखंडन माता

होली से जुड़ी कुछ और खबरें यहां पढ़ें

इस साल भी नहीं मनाई जाएगी गोली: एक तरफ जहां पूरे देश में होली की तैयारियां तेज हो गई हैं. वहीं दूसरी तरफ हथखोए गांव में होली का कोई माहौल नजर नहीं आ रहा है. लोग अपनी खेती किसानी के काम में आम दिनों की तरह लगे हुए हैं. होली के त्यौहार को लेकर किसी तरह की तैयारियां भी नहीं चल रही है. स्थानीय लोगों का कहना है कि हम लोग झारखंडन माता की कृपा से अपना पालन पोषण कर रहे हैं. वही हम लोगों की रक्षा करती हैं. होली के त्योहार को मना कर हम माता की नाराजगी नहीं चाहते हैं. हमारे लिए सब त्योहार नवरात्रि के अवसर पर होते हैं.

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