सागर। विद्यायल यह शब्द आपने आम बोलचाल में सुना ही होगा. विद्यालय किसी भी छात्र की नींव माना जाता है. छात्र भविष्य में जो भी काम करता है, उसका कुछ न कुछ जिम्मेदार विद्यालय भी होता है. जिस तरह विद्यालय विद्यार्थियों से जुड़ता है उसी प्रकार छात्रों का लगाव भी हमेशा के लिए विद्यालय से जुड़ जाता है. लेकिन पुराने सरकारी स्कूल से शहरवासियों और पूर्व छात्रों को इतना लगाव हो जाए कि वह स्कूल को सजाने संवारने के लिए जी जान से जुट जाएं, ऐसा कम ही देखने को मिलता है. सागर शहर के करीब 200 साल पुराने सरकारी स्कूल को संवारने के लिए शहरवासी, स्कूल के पूर्व छात्र और शासन-प्रशासन एकजुट हो गया है. स्कूल को संवारने के लिए सभी ने 4 करोड़ रुपए इकट्ठा किए है.
- जीर्ण शीर्ण हो चुका विद्यालय
जीर्ण शीर्ण हो चुकी स्कूल की इमारत की ऐतिहासिकता के साथ-साथ आधुनिक स्वरूप में सजाने संवारने में स्कूल के पूर्व छात्र दिन रात एक कर रहे हैं. खास बात यह है कि स्कूल के प्रिंसिपल भी इसी स्कूल में पढ़कर शिक्षक बनने के बाद स्कूल के प्राचार्य भी बने हैं, तो उनके विशेष लगाव के कारण शहर में स्कूल को लेकर यह माहौल बन पाया है. कहा जाता है कि इस स्कूल के कई मेधावी छात्र देश और दुनिया में अपनी सफलता का परचम लहरा रहे हैं और वह सभी विद्यार्थी अपने स्कूल को एक आधुनिक स्वरूप में देखना चाहते हैं.
- 1827 में अंग्रेजों ने स्थापित किया था सागर में स्कूल
शहर में स्थित शासकीय उत्कृष्टता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का नाम सुनते ही दिमाग में एक सरकारी स्कूल की तस्वीर घूमने लगती है. सागर का यह स्कूल भी सरकारी है, लेकिन यह स्कूल कई मामलों में सागर शहर के जनमानस और आम आदमी से जुड़ा हुआ है. क्योंकि इस स्कूल की स्थापना 1827 में अंग्रेजों ने की थी. पहले यह स्कूल सागर शहर के हृदय स्थल कहे जाने वाले तीन बत्ती इलाके में जहां आज म्युनिसिपल स्कूल लगता है, वहां लगा करता था. लेकिन धीरे-धीरे छात्रों की संख्या बढ़ने के साथ स्कूल मौजूदा इमारत में पहुंचा. स्कूल के बारे में कहा जाता है कि 1827 में इसे ब्रिटिश शासन में स्थापित किया गया था. तब इसके हेड मास्टर एक अंग्रेज व्यक्ति मैकलिन हुआ करते थे. इस स्कूल में सागर शहर ही नहीं बल्कि बुंदेलखंड अंचल की कई हस्तियों ने अपनी शिक्षा दीक्षा पूरी की है.
आधुनिक सुविधाओं की हो रही है व्यवस्था
- ग्रामीण इलाकों से एक्सीलेंस स्कूल में प्रवेश लेने वाले छात्रों को स्थानीय स्तर पर रहकर पढ़ाई करने में काफी तकलीफ होती है. वहीं ग्रामीण इलाके की लड़कियां सिर्फ इसलिए स्कूल में एडमिशन नहीं लेती, कि उन्हें कई तरह की परेशानियों से जूझना पड़ेगा. लेकिन अब इस स्कूल को पूरी तरह से आवासीय बना दिया गया है. बाहर से आने वाले छात्रों को छात्रावास की सुविधा भी दी गई है.
- इस स्कूल में आधुनिक कंप्यूटर लैब भी बनाई जा रही हैं. स्कूल के अंदर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत स्मार्ट आईटी लैब बनाई गई हैं, जिसमें छात्र-छात्राएं अपने प्रोजेक्ट पर काम करते हैं.
- स्कूल में फर्नीचर की व्यवस्था आधुनिक तरीके से की गई है. अभी स्कूल में टूटा-फूटा फर्नीचर भी नजर नहीं आता है.
- स्कूल में सांस्कृतिक और खेलकूद के लिए अलग से मंच और मैदान तैयार किए जा रहे हैं.
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- पूर्व छात्र बने प्रिंसिपल ने लिया स्कूल संवारने का संकल्प
दरअसल इस स्कूल के मौजूदा प्रिंसिपल राम कुमार वैद्य इसी स्कूल के छात्र भी रहे हैं और अध्यापक के तौर पर उन्होंने इस स्कूल के विद्यार्थियों को पढ़ाया है. 2015 में राम कुमार वैद्य को इस स्कूल का प्राचार्य बनने का मौका मिला. स्कूल के छात्र के रूप में लगाव के साथ-साथ जब उन्हें प्रिंसिपल बनाया गया, तो उन्होंने स्कूल को सजाने संवारने के प्रयास तेज किए. उन्होंने शासन और प्रशासन स्तर पर पुरजोर प्रयास करने के अलावा स्कूल के पूर्व छात्रों और शहरवासियों को भी स्कूल से जोड़ने की पहल की. उनकी पहल रंग लाई और आज स्कूल को सजाने संवारने का काम तेजी से चल रहा है.
- होना था जीर्णोद्धार लेकिन बदल गई पूरी तस्वीर
स्कूल के प्रिंसिपल राम कुमार वैद्य ने जब 2015 में प्राचार्य के रूप में जिम्मेदारी संभाली तब स्कूल की बिल्डिंग खपरैल हुआ करती थी. अंग्रेजों के समय यूरोपीयन स्टाइल में बने स्कूल के जीर्णोद्धार के प्रयास तेज हुए तो कई तरह की बातें सामने आई. सबसे पहले खपरैल स्कूल की जगह टीन के चद्दर लगाए जाने का विचार आया, लेकिन स्कूल से लगाव के चलते प्रिंसिपल ने तत्कालीन जिला कलेक्टर विकास नरवाल और स्थानीय विधायक शैलेंद्र जैन को अपनी योजना से अवगत कराया. फिर तय हुआ कि शासन की विभिन्न योजनाओं, जनभागीदारी और अन्य मदों के जरिए इस स्कूल की तस्वीर बदली जाएगी.
- 4 करोड़ से ज्यादा की कीमत से संवर रहा स्कूल
स्कूल को सजाने और संवारने के लिए सरकार की विभिन्न योजनाओं जनभागीदारी समिति और स्थानीय लोगों की मदद से अब नया स्वरूप दिया जा रहा है. सरकारी स्कूल होने के बावजूद स्कूल को एक निजी स्कूल की तरह तमाम सुविधाओं से लैस किया जा रहा है. विभिन्न मदों के करीब चार करोड़ रुपए स्कूल को सजाने संवारने में खर्च हो रहे हैं.
- देश और दुनिया में फैले पूर्व छात्र हो रहे हैं एकजुट
स्कूल के छात्र रहने के साथ अब प्रिंसिपल बने राम कुमार वैद्य के प्रयासों के चलते इस स्कूल के पूर्व छात्रों को एकजुट किया जा रहा है. देश और दुनिया में अलग-अलग शहरों में बसे लोग स्कूल की तस्वीर बदलने के लिए हर तरह की मदद कर रहे हैं. स्कूल के पूर्व छात्रों ने सागर में एक ग्रुप बनाकर स्कूल को सजाने संवारने के लिए दुनियाभर में फैले छात्रों से संपर्क करना शुरू कर दिया है. पूर्व छात्र चाहते हैं कि स्कूल सागर यूनिवर्सिटी की तरह सागर शहर की दूसरी पहचान बने.