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BMC Sagar जर्मन पद्धति से हृदय रोग के नए इलाज का दावा, दर्द के साथ ब्लॅाक दूर करने में कारगर - उच्च स्तर पर शोध की जरूरत

भारत में हृदय रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है. इनमें वो मरीज भी शामिल हैं, जो हार्ट अटैक की शिकायत पर अस्पताल पहुंचते हैं. इसके साथ ही जब चलने में छाती में दर्द या सांस फूलने जैसी शिकायत पर डॉक्टर के पास पहुंचते हैं. बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के सीनियर प्रोफेसर डॉ.सर्वेश जैन (Dr. Sarvesh Jain) ने दोनों तरह के मरीजों के दर्द में कमी लाने के नए इलाज (German method new treatment of heart) का दावा किया है. उनका कहना है कि एक किस्म का नर्व ब्लॉक लगाकर ना सिर्फ दर्द कम किया जा सकता है, बल्कि हृदयनली में रुकावट को भी दूर किया जा सकता है.

German method new treatment of heart
BMC Sagar जर्मन पद्धति से हृदय रोग के नए इलाज का दावा
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Published : Dec 12, 2022, 6:08 PM IST

BMC Sagar जर्मन पद्धति से हृदय रोग के नए इलाज का दावा

सागर। बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज सागर के प्रोफेसर डॉ.सर्वेश जैन का कहना है कि लाइग्नोकेन या सुन्न करने की दवा यदि शरीर के कुछ चिन्हित स्थानों पर सुई के जरिए लगायी जाए तो छाती में होने वाले से दर्द तुरंत राहत मिलती है. इसको डीएससीबी ब्लॉक कहते हैं. यह सीखने का आसान तरीका है. इस तरीके से सुई लगाने के 15 मिनट बाद ही मरीज राहत महसूस करने लगता है और सामान्य हो जाता है. कोरोनरी आर्टरी डिसीज यानि हृदय की नली में रुकावट, एंजिना आदि के मरीज तुरंत ठीक हो जाते हैं.

इलाज की जर्मन पद्धति, जिसे भुला दिया गया : डॉ. सर्वेश जैन का कहना है कि ऐसा न्यूरल थेरेपी के सिद्धांतों का पालन करने से होता है. यह दर्द संबंधी बीमारियों के इलाज का पुराना जर्मन तरीका है. हालांकि वर्तमान में इसको भुला दिया गया है. डॉ.सर्वेश जैन ने बताया कि बिल्कुल थोड़ी सी मात्रा में सुन्न की दवाई इंजेक्ट करने से दर्द बंद हो जाता है. जिससे मरीज की बदहवासी और घबराहट कम हो जाती है और धड़कन और ब्लड प्रेशर सामान्य होने से मरीज जल्द सामान्य हो जाता है. जो मरीज क्रोनिक स्टेबल एंगिना से पीड़ित रहते हैं और चलने पर छाती में दर्द और सांस फूलने की समस्या होती है, वो भी ठीक हो जाते है.

उच्च स्तर पर शोध की जरूरत : डॉ.सर्वेश जैन का दावा है कि यदि उच्च स्तर पर शोध किया जाए तो इस तरीके से हृदयाघात से मरने वाले मरीजों की दर में कमी लाई जा सकती है. वर्तमान में प्रदूषण और पेस्टीसाइड के अंधाधुंध प्रयोग से हृदय की बीमारियों में इजाफा हुआ है. हृदयाघात के प्रचलित इलाज के बाद भी मृत्युदर ज्यादा है. इस ब्लॉक पर काम करने की शुरुआत ललितपुर (यूपी) के डॉ.अरविंद दिवाकर जैन और केरल के डॉ. एल प्रकाश ने की थी. इस इलाज में जिन जगहों पर सुई लगाई जाती है वो तीन पूर्व निर्धारित प्वाइंट रहते हैं. यह नुस्खा न केवल अटैक में बल्कि छाती के अन्य दर्द की स्थिति में भी कामयाब रहता है. यह सीखने में आसान है और यदि मरीज तुरंत अस्पताल पहुंच जाए तो हार्ट को होने वाला नुकसान बहुत कम होता है. अभी तक के प्रयोग में थोड़ा सा बीपी कम होने के अलावा कोई साइड इफेक्ट नहीं पाया गया.

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इलाज में दिखे चमत्कारिक परिणाम : सागर में साईटिका, गर्दन दर्द के मरीजों में पिछले छह महीने से सफलतापूर्वक इलाज का प्रयोग कर रहे प्रोफेसर डॉ.सर्वेश जैन ने इस तकनीक का उपयोग छाती और हृदयजनित दर्द में उपयोग किया तो चमत्कारिक परिणाम मिले हैं. यह ब्लॉक थोड़ी देर के लिए ब्रेन में जाने वाली दर्द की सूचना को रोक देता है, जिससे दर्द की निरंतरता (विशियस साइकिल) ब्रेक हो जाती है, इतनी देर में शरीर जिसकी खुद को ठीक करने की असीमित क्षमता होती है और वह अपने आपको और हृदय को दुरुस्त कर लेता है.

BMC Sagar जर्मन पद्धति से हृदय रोग के नए इलाज का दावा

सागर। बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज सागर के प्रोफेसर डॉ.सर्वेश जैन का कहना है कि लाइग्नोकेन या सुन्न करने की दवा यदि शरीर के कुछ चिन्हित स्थानों पर सुई के जरिए लगायी जाए तो छाती में होने वाले से दर्द तुरंत राहत मिलती है. इसको डीएससीबी ब्लॉक कहते हैं. यह सीखने का आसान तरीका है. इस तरीके से सुई लगाने के 15 मिनट बाद ही मरीज राहत महसूस करने लगता है और सामान्य हो जाता है. कोरोनरी आर्टरी डिसीज यानि हृदय की नली में रुकावट, एंजिना आदि के मरीज तुरंत ठीक हो जाते हैं.

इलाज की जर्मन पद्धति, जिसे भुला दिया गया : डॉ. सर्वेश जैन का कहना है कि ऐसा न्यूरल थेरेपी के सिद्धांतों का पालन करने से होता है. यह दर्द संबंधी बीमारियों के इलाज का पुराना जर्मन तरीका है. हालांकि वर्तमान में इसको भुला दिया गया है. डॉ.सर्वेश जैन ने बताया कि बिल्कुल थोड़ी सी मात्रा में सुन्न की दवाई इंजेक्ट करने से दर्द बंद हो जाता है. जिससे मरीज की बदहवासी और घबराहट कम हो जाती है और धड़कन और ब्लड प्रेशर सामान्य होने से मरीज जल्द सामान्य हो जाता है. जो मरीज क्रोनिक स्टेबल एंगिना से पीड़ित रहते हैं और चलने पर छाती में दर्द और सांस फूलने की समस्या होती है, वो भी ठीक हो जाते है.

उच्च स्तर पर शोध की जरूरत : डॉ.सर्वेश जैन का दावा है कि यदि उच्च स्तर पर शोध किया जाए तो इस तरीके से हृदयाघात से मरने वाले मरीजों की दर में कमी लाई जा सकती है. वर्तमान में प्रदूषण और पेस्टीसाइड के अंधाधुंध प्रयोग से हृदय की बीमारियों में इजाफा हुआ है. हृदयाघात के प्रचलित इलाज के बाद भी मृत्युदर ज्यादा है. इस ब्लॉक पर काम करने की शुरुआत ललितपुर (यूपी) के डॉ.अरविंद दिवाकर जैन और केरल के डॉ. एल प्रकाश ने की थी. इस इलाज में जिन जगहों पर सुई लगाई जाती है वो तीन पूर्व निर्धारित प्वाइंट रहते हैं. यह नुस्खा न केवल अटैक में बल्कि छाती के अन्य दर्द की स्थिति में भी कामयाब रहता है. यह सीखने में आसान है और यदि मरीज तुरंत अस्पताल पहुंच जाए तो हार्ट को होने वाला नुकसान बहुत कम होता है. अभी तक के प्रयोग में थोड़ा सा बीपी कम होने के अलावा कोई साइड इफेक्ट नहीं पाया गया.

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इलाज में दिखे चमत्कारिक परिणाम : सागर में साईटिका, गर्दन दर्द के मरीजों में पिछले छह महीने से सफलतापूर्वक इलाज का प्रयोग कर रहे प्रोफेसर डॉ.सर्वेश जैन ने इस तकनीक का उपयोग छाती और हृदयजनित दर्द में उपयोग किया तो चमत्कारिक परिणाम मिले हैं. यह ब्लॉक थोड़ी देर के लिए ब्रेन में जाने वाली दर्द की सूचना को रोक देता है, जिससे दर्द की निरंतरता (विशियस साइकिल) ब्रेक हो जाती है, इतनी देर में शरीर जिसकी खुद को ठीक करने की असीमित क्षमता होती है और वह अपने आपको और हृदय को दुरुस्त कर लेता है.

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