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पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कदम आगे बढ़ा रही हैं इस गांव की महिलाएं

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Published : Oct 15, 2019, 6:33 AM IST

Updated : Oct 15, 2019, 8:13 AM IST

रीवा के बैजनाथ गांव की महिलाएं NGO श्रुति डेवलपमेंट फाउंडेशन की मदद से स्वयं सहायता समूह चला रही हैं. जिसमें वह दूसरी महिलाओं को भी रोजगार के अवसर दे रही हैं.

स्वयं सहायता समूह की मदद से बदली महिलाओं की जिंदगी

रीवा। एक पुरानी कहावत है कि महिलाएं अगर कुछ करने की ठान लें, तो वह पुरुषों को भी पीछे छोड़ देती हैं. यह कहावत रीवा जिले की सैकडों महिलाओं पर सही बैठती है. इन महिलाओं ने अपने जीवन यापन के लिए एक अलग ही जरिया बना लिया है. यह महिलाएं स्वयं सहायता समूह से जुड़कर अपना और अपने घर का खर्चा खुद ही निकालती हैं.

स्वयं सहायता समूह की मदद से बदली महिलाओं की जिंदगी

रीवा के बैजनाथ गांव में महिलाएं 2012 से लगातार श्रुति डेवलपमेंट फाउंडेशन (NGO) की मदद से स्वयं सहायता समूह चला रही हैं. जो ग्रामीण महिलाएं कभी घर के कामकाज से मुक्त नहीं हो पा रही थीं, कभी समाज में अपनी एक पहचान नहीं बना रही थीं. वह महिलाएं घर बैठे रोजगार के साधन उपलब्ध करा रही हैं.

ये महिलाएं अपने घरों में ही पापड़ और अचार की अलग-अलग वैरायटी बनाकर बाजारों में उसे बेचतीं हैं. समय के साथ- साथ इनका व्यवसाय भी बढ़ने भी लगा है. अब यह महिलाएं केवल घर के कामकाज में ही नहीं, बल्कि अपने घर के पुरुषों से भी ज्यादा पैसा कमा लेती हैं.

समूह में काम करने वाली महिलाओं का कहना है कि, उन्हें हमेशा से ही इस बात का दुख रहता था, कि वह कभी अपने हुनर को लोगों के सामने नहीं ला पाएंगी. पर इस NGO से जुड़ने के बाद उसका ये सपना भी पूरा हो गया. NGO संचालक सुदीप ने उनकी इस स्वयं सहायता समूह को शुरु करने में मदद की. साथ ही लगातार इनसे जुड़े हुए लोग इन्हें प्रशिक्षण भी देते रहते हैं.

रीवा। एक पुरानी कहावत है कि महिलाएं अगर कुछ करने की ठान लें, तो वह पुरुषों को भी पीछे छोड़ देती हैं. यह कहावत रीवा जिले की सैकडों महिलाओं पर सही बैठती है. इन महिलाओं ने अपने जीवन यापन के लिए एक अलग ही जरिया बना लिया है. यह महिलाएं स्वयं सहायता समूह से जुड़कर अपना और अपने घर का खर्चा खुद ही निकालती हैं.

स्वयं सहायता समूह की मदद से बदली महिलाओं की जिंदगी

रीवा के बैजनाथ गांव में महिलाएं 2012 से लगातार श्रुति डेवलपमेंट फाउंडेशन (NGO) की मदद से स्वयं सहायता समूह चला रही हैं. जो ग्रामीण महिलाएं कभी घर के कामकाज से मुक्त नहीं हो पा रही थीं, कभी समाज में अपनी एक पहचान नहीं बना रही थीं. वह महिलाएं घर बैठे रोजगार के साधन उपलब्ध करा रही हैं.

ये महिलाएं अपने घरों में ही पापड़ और अचार की अलग-अलग वैरायटी बनाकर बाजारों में उसे बेचतीं हैं. समय के साथ- साथ इनका व्यवसाय भी बढ़ने भी लगा है. अब यह महिलाएं केवल घर के कामकाज में ही नहीं, बल्कि अपने घर के पुरुषों से भी ज्यादा पैसा कमा लेती हैं.

समूह में काम करने वाली महिलाओं का कहना है कि, उन्हें हमेशा से ही इस बात का दुख रहता था, कि वह कभी अपने हुनर को लोगों के सामने नहीं ला पाएंगी. पर इस NGO से जुड़ने के बाद उसका ये सपना भी पूरा हो गया. NGO संचालक सुदीप ने उनकी इस स्वयं सहायता समूह को शुरु करने में मदद की. साथ ही लगातार इनसे जुड़े हुए लोग इन्हें प्रशिक्षण भी देते रहते हैं.

Intro:कहते हैं कि महिलाएं अगर कुछ करने की ठान लें तो फिर वह पुरुषों से भी आगे निकल जाती है यह गीत गा गा कर काम कर रही महिलाएं और कोई नहीं बल्कि रीवा संभाग के ग्रामीण अंचलों में रहने वाली वह महिलाएं हैं जिन्होंने अब अपने जीवन यापन का एक अलग ही जरिया बना लिया है यह महिलाएं स्व सहायता समूह से जुड़ कर आज अपना व अपने घर का खर्चा खुद ही निकाल लेती हैं....


Body:रीवा संभाग में रीवा से सतना मार्ग के बीच बसे बैजनाथ ग्राम में आज महिलाएं साल 2012 से लगातार श्रुति डेवलपमेंट फाउंडेशन एनजीओ की मदद से स्व सहायता समूह चला रही हैं। जो ग्रामीण महिलाएं कभी घर के कामकाज से मुक्त नहीं हो पा रही थी कभी समाज में अपनी एक पहचान नहीं बना रही थी आज वह महिलाएं घर बैठे रोजगार के साधन उपलब्ध करा रही हैं।


अब जब जब भी महिला सशक्तिकरण की बात आती है तब तब ग्रामीण क्षेत्रों की इन महिलाओं का हमेशा जिक्र किया जाता है यह महिलाएं अपने घरों में ही पापड़ और अचार की अलग-अलग वैरायटी बनाकर बाजारों में उसे विक्रय के लिए भेज देती और तो और इनका काम करने का तरीका बहुत ही मनमोहक रहता है एक दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ती है महिलाएं गीतों के साथ गुनगुना कर अपने काम को अपना लक्ष्य समझ कर करती रहती है। वही समय के साथ साथ इनका व्यवसाय भी बढ़ने भी लगा है अब यह महिलाएं केवल घर के कामकाज में ही नहीं बल्कि अपने घर के पुरुषों से भी ज्यादा पैसा कमा लेती हैं और अपने बच्चों को उत्तम शिक्षा देने के लिए शहरों की ओर जाने का मौका देती है।


समूह में काम करने वाली महिला का कहना है कि उन्हें हमेशा से ही इस बात का दुख रहता था कि वह कभी अपने हुनर को लोगों के सामने नहीं ला पाती थी लेकिन एक रोज शहर से वापस गांव की ओर आते वक्त उन्होंने एक एनजीओ को लोगों को सशक्त बनाने के बारे में सुना जिसके बाद उन्होंने उस व्यक्ति से बात की और अपने विचारों को रखा जिसके बाद एनजीओ चलाने वाले सुदीप नाम के व्यक्ति ने उनकी इस स्व सहायता समूह को शुरुआत करने में उनकी मदद की लगातार इनसे जुड़े हुए लोग इन्हें प्रशिक्षण भी देते रहते हैं और आज हालात सबके सामने हैं कि आज हम महिलाएं पुरुषों से कम नहीं है।


वहीं कुछ महिलाओं का मानना है कि आज इस व्यवसाय के माध्यम से उन्हें मुनाफा हो रहा है जिससे वह अपने बच्चों के उत्तम भविष्य के बारे में सोचने का मौका मिलता है।

यह ग्रामीण महिलाएं बन रही सशक्त।
बैजनाथ ग्राम कि यह प्रेमलता ने मुहिम की शुरुआत की थी उसके बाद उनके साथ बारी दरबारी आज 10 महिलाएं जुड़ गई हैं जिनमें संध्या, देवी, मीना, सावित्री, सरोज , निशा, प्रीति, रेखा, प्रीत, करुणा शामिल है वही इन्हें समय-समय पर मेमन मालवीय और पूजा मिश्रा का सहयोग मिलता रहता है। साथ ही है लोग सरकार से गुजारिश करते हैं कि महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए सदैव वह इनके साथ खड़े रहे वहीं महिलाएं आसपास के गांव की महिलाओं से भी इस मुहिम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने की बात करती हैं।


बाइट- प्रीत मिश्रा,ग्रामीण महिला।
बाइट- सावित्री, ग्रामीण महिला।
बाइट- मीना ग्रामीण महिला।

पीटीसी- क्लोजिंग।


Conclusion:...
Last Updated : Oct 15, 2019, 8:13 AM IST
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