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सूखी नहर में किसानों का प्रदर्शन, बोले-सिंचाई परियोजना ठप,उदासीनता बरत रहे जनप्रतिनिधि

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Published : Mar 12, 2023, 6:38 PM IST

जलसंकट को लेकर रीवा के किसानों ने प्रदर्शन किया. किसानों का कहना है कि, यदि पानी नहीं मिला तो विधानसभा चुनाव 2023 में नेताओं को वोट भी नहीं मिलेगा. मामले को लेकर बताया गया कि, 855 करोड़ रुपए के माइक्रो इरिगेशन सूक्ष्म दबाब योजना में लेट लतीफी को लेकर ये किसान नाराज थे.

Rewa Water Problem
सूखी नहर में किसानों का प्रदर्शन
सूखी नहर में किसानों का प्रदर्शन

रीवा। जिले में गर्मी का मौसम आते ही पानी का संकट गहराने लगा है. जलसंकट से जूझ रहे किसानों ने अपना विरोध जताया. किसानों का कहना है कि, अगर पानी नहीं तो वोट नही. दरअसल, 855 करोड़ रुपये के माइक्रो इरिगेशन सूक्ष्म दबाब योजना में लेट-लतीफी को लेकर किसान नाराज थे. क्षेत्रीय विधायकों और सांसद को जानकारी देने के बाद भी अब तक उन्हें इस समस्या से निजात नहीं मिली है. किसानों का कहना है कि, वर्ष 2013-14 में नहर परियोजना का क्रियान्वयन न होने से जल संकट से प्रभावित होना पड़ रहा है.

किसानों ने किया प्रदर्शन: किसानों की मानें तो जिले में सूखे जैसे हालात बन गए हैं. यह मौजूदा वर्ष के हालात नहीं हर साल गर्मी के दिनों में आम जनता बूंद-बूंद पानी के लिए जद्दोजहद करना पड़ता है. कहने के लिए तो जल जीवन मिशन से लेकर विधायक और सांसद निधियों के नलकूप, अमृत सरोवर, पुराने जल स्रोतों का गहरीकरण से लेकर कूप निर्माण और फिर बाणसागर के नाम पर कई सिंचाई परियोजनाएं आईं और गईं, लेकिन हालात यह हैं कि आम जनता और किसानों की स्थिति जस की तस बनी हुई है.

किसानों ने सूखी नहर में किया भ्रमण: रीवा जिले के सिरमौर तहसील अंतर्गत लालगांव सर्किल के आसपास सिसवा टेहरा और लालगांव के कई किसानों ने नवनिर्मित वेयर हाउस के पास सूखी पड़ी टेहरा-सिसवा की तरफ जाने वाली नहर के बीचों बीच पैदल मार्च कर प्रदर्शन किया. सैकड़ों किसानों ने सीधे सरकार पर आरोप लगाया की सरकार किसानों को ठगने का काम कर रही है. किसानों को मात्र वोट बैंक की राजनीति तक ही सीमित रखा है.

नहीं मिल पा रहा पर्याप्त पानी: यदि कोई किसान लाभ प्राप्त कर रहा है तो अपने निजी उपयोग के लिए कराए गए बोरवेल से. इससे किसान सिंचाई से लेकर पेयजल आवश्यकताओं की पूर्ति करता है. इतना ही नहींबिजली कटौती किसी से छुपा नहीं है. नहरों में पानी ही नहीं पहुंच रहा है. तराई क्षेत्रों में गुणवत्ताविहीन नहरों के निर्माण के कारण जगह-जगह टूटी पड़ी नहरों से पानी यत्र-तत्र किसानों के खेतों को बर्बाद कर देता है.

रीवा पानी की समस्या से जुड़ी इन खबरों को जरूर पढ़ें...

सिंचाई परियोजना खटाई में: सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी की शिकायत पर मध्य प्रदेश राज्य मानव अधिकार आयोग ने संज्ञान लिया था. इसके बाद अधीक्षण यंत्री बाणसागर नहर मंडल ने 9 दिसंबर 2016 को मानवाधिकार आयोग को भेजे गए अपने एक प्रतिवेदन में उल्लेख किया गया था कि, लगभग 855 करोड़ रुपये की लागत से रीवा जिले की 50 हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन को सिंचित करने के लिए मनगवां तहसील के 33 गांव, नईगढ़ी तहसील के 282 गांव, रायपुर कर्चुलियान तहसील के 33 गांव, गुढ़ तहसील के 30 गांव, मऊगंज तहसील के 205 गांव और त्यौंथर तहसील के 18 गांव एवं सिरमौर तहसील के 32 गांव के कृषकों की जमीन की सिंचाई इस परियोजना के माध्यम से की जाएगी.

सूखी नहर में किसानों का प्रदर्शन

रीवा। जिले में गर्मी का मौसम आते ही पानी का संकट गहराने लगा है. जलसंकट से जूझ रहे किसानों ने अपना विरोध जताया. किसानों का कहना है कि, अगर पानी नहीं तो वोट नही. दरअसल, 855 करोड़ रुपये के माइक्रो इरिगेशन सूक्ष्म दबाब योजना में लेट-लतीफी को लेकर किसान नाराज थे. क्षेत्रीय विधायकों और सांसद को जानकारी देने के बाद भी अब तक उन्हें इस समस्या से निजात नहीं मिली है. किसानों का कहना है कि, वर्ष 2013-14 में नहर परियोजना का क्रियान्वयन न होने से जल संकट से प्रभावित होना पड़ रहा है.

किसानों ने किया प्रदर्शन: किसानों की मानें तो जिले में सूखे जैसे हालात बन गए हैं. यह मौजूदा वर्ष के हालात नहीं हर साल गर्मी के दिनों में आम जनता बूंद-बूंद पानी के लिए जद्दोजहद करना पड़ता है. कहने के लिए तो जल जीवन मिशन से लेकर विधायक और सांसद निधियों के नलकूप, अमृत सरोवर, पुराने जल स्रोतों का गहरीकरण से लेकर कूप निर्माण और फिर बाणसागर के नाम पर कई सिंचाई परियोजनाएं आईं और गईं, लेकिन हालात यह हैं कि आम जनता और किसानों की स्थिति जस की तस बनी हुई है.

किसानों ने सूखी नहर में किया भ्रमण: रीवा जिले के सिरमौर तहसील अंतर्गत लालगांव सर्किल के आसपास सिसवा टेहरा और लालगांव के कई किसानों ने नवनिर्मित वेयर हाउस के पास सूखी पड़ी टेहरा-सिसवा की तरफ जाने वाली नहर के बीचों बीच पैदल मार्च कर प्रदर्शन किया. सैकड़ों किसानों ने सीधे सरकार पर आरोप लगाया की सरकार किसानों को ठगने का काम कर रही है. किसानों को मात्र वोट बैंक की राजनीति तक ही सीमित रखा है.

नहीं मिल पा रहा पर्याप्त पानी: यदि कोई किसान लाभ प्राप्त कर रहा है तो अपने निजी उपयोग के लिए कराए गए बोरवेल से. इससे किसान सिंचाई से लेकर पेयजल आवश्यकताओं की पूर्ति करता है. इतना ही नहींबिजली कटौती किसी से छुपा नहीं है. नहरों में पानी ही नहीं पहुंच रहा है. तराई क्षेत्रों में गुणवत्ताविहीन नहरों के निर्माण के कारण जगह-जगह टूटी पड़ी नहरों से पानी यत्र-तत्र किसानों के खेतों को बर्बाद कर देता है.

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सिंचाई परियोजना खटाई में: सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी की शिकायत पर मध्य प्रदेश राज्य मानव अधिकार आयोग ने संज्ञान लिया था. इसके बाद अधीक्षण यंत्री बाणसागर नहर मंडल ने 9 दिसंबर 2016 को मानवाधिकार आयोग को भेजे गए अपने एक प्रतिवेदन में उल्लेख किया गया था कि, लगभग 855 करोड़ रुपये की लागत से रीवा जिले की 50 हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन को सिंचित करने के लिए मनगवां तहसील के 33 गांव, नईगढ़ी तहसील के 282 गांव, रायपुर कर्चुलियान तहसील के 33 गांव, गुढ़ तहसील के 30 गांव, मऊगंज तहसील के 205 गांव और त्यौंथर तहसील के 18 गांव एवं सिरमौर तहसील के 32 गांव के कृषकों की जमीन की सिंचाई इस परियोजना के माध्यम से की जाएगी.

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