रीवा। सफेद शेरों की धरती पर होने वाले सियासी रण में इस बार एक प्रत्याशी पर सबकी निगाहें टिकी हैं क्योंकि ये प्रत्याशी सियासत के खेल में तो नया है, लेकिन अनुभव बहुत पुराना है. बात कर रहे हैं सूबे में सफेद शेर के नाम से मशहूर श्रीनिवास तिवारी के पोते और सुंदरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ तिवारी की. जिसे कांग्रेस ने रीवा के रण में अपना सेनापति बनाया है.
बीते एक साल में दादा और पिता की मौत के बाद सिद्धार्थ रीवा के रण में भले ही अकेले हैं, लेकिन अपने पिता और दादा की सियासत का बेजोड़ अनुभव उनके पास मौजूद है. यही वजह है कि कांग्रेस ने युवा जोश पर भरोसा जताते हुए सिद्धार्थ को वो जिम्मेदारी सौंपी है, जिसे कभी उनके पिता ने पूरा किया था. यानि 15 साल बाद फिर से रीवा में कांग्रेस की घर वापसी कराना. पिता और दादा की मौत के बाद सियासी मैदान में उतरे सिद्धार्थ
पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं
रीवा में कांग्रेस के युवा का चेहरे के रुप में उभकर सामने आए हैं
पिता के चुनावी कैंम्पेन की जिम्मेदारी संभालते रहे हैं
पिछले कुछ सालों से रीवा की राजनीति में सक्रिए हैं
रीवा में सिद्धार्थ के ऊपर इस बार दोहरी जिम्मेदारी है, एक तरफ जहां उन्हें कांग्रेस की कसौटी पर खरा उतरना है तो वहीं दादा और पिता की विरासत को नई ऊंचाई पर ले जाने की जिम्मेदारी है. हालांकि, पिता की मौत के बाद सियासी पंडितों का कहना है कि सिद्धार्थ को रीवा में सहानुभूति भी मिल सकती है, लेकिन मुकाबला बीजेपी के अनुभवी नेता जनार्दन मिश्रा से होने के चलते सिद्धार्थ की ये डगर आसान नहीं है.