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युवा जोश के साथ मैदान में सिद्धार्थ, 'सफेद शेर' की विरासत बढ़ा पायेंगे आगे ?

रीवा लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ तिवारी पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, वे प्रदेश में सफेद शेर के नाम से मशहूर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के पोते और कांग्रेस के दिग्गज सुंदर लाल तिवारी के बेटे हैं.

रीवा लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ तिवारी
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Published : May 5, 2019, 12:28 AM IST

रीवा। सफेद शेरों की धरती पर होने वाले सियासी रण में इस बार एक प्रत्याशी पर सबकी निगाहें टिकी हैं क्योंकि ये प्रत्याशी सियासत के खेल में तो नया है, लेकिन अनुभव बहुत पुराना है. बात कर रहे हैं सूबे में सफेद शेर के नाम से मशहूर श्रीनिवास तिवारी के पोते और सुंदरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ तिवारी की. जिसे कांग्रेस ने रीवा के रण में अपना सेनापति बनाया है.

रीवा लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ तिवारी का सियासी सफर

बीते एक साल में दादा और पिता की मौत के बाद सिद्धार्थ रीवा के रण में भले ही अकेले हैं, लेकिन अपने पिता और दादा की सियासत का बेजोड़ अनुभव उनके पास मौजूद है. यही वजह है कि कांग्रेस ने युवा जोश पर भरोसा जताते हुए सिद्धार्थ को वो जिम्मेदारी सौंपी है, जिसे कभी उनके पिता ने पूरा किया था. यानि 15 साल बाद फिर से रीवा में कांग्रेस की घर वापसी कराना. पिता और दादा की मौत के बाद सियासी मैदान में उतरे सिद्धार्थ

पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं
रीवा में कांग्रेस के युवा का चेहरे के रुप में उभकर सामने आए हैं
पिता के चुनावी कैंम्पेन की जिम्मेदारी संभालते रहे हैं
पिछले कुछ सालों से रीवा की राजनीति में सक्रिए हैं

रीवा में सिद्धार्थ के ऊपर इस बार दोहरी जिम्मेदारी है, एक तरफ जहां उन्हें कांग्रेस की कसौटी पर खरा उतरना है तो वहीं दादा और पिता की विरासत को नई ऊंचाई पर ले जाने की जिम्मेदारी है. हालांकि, पिता की मौत के बाद सियासी पंडितों का कहना है कि सिद्धार्थ को रीवा में सहानुभूति भी मिल सकती है, लेकिन मुकाबला बीजेपी के अनुभवी नेता जनार्दन मिश्रा से होने के चलते सिद्धार्थ की ये डगर आसान नहीं है.

रीवा। सफेद शेरों की धरती पर होने वाले सियासी रण में इस बार एक प्रत्याशी पर सबकी निगाहें टिकी हैं क्योंकि ये प्रत्याशी सियासत के खेल में तो नया है, लेकिन अनुभव बहुत पुराना है. बात कर रहे हैं सूबे में सफेद शेर के नाम से मशहूर श्रीनिवास तिवारी के पोते और सुंदरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ तिवारी की. जिसे कांग्रेस ने रीवा के रण में अपना सेनापति बनाया है.

रीवा लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ तिवारी का सियासी सफर

बीते एक साल में दादा और पिता की मौत के बाद सिद्धार्थ रीवा के रण में भले ही अकेले हैं, लेकिन अपने पिता और दादा की सियासत का बेजोड़ अनुभव उनके पास मौजूद है. यही वजह है कि कांग्रेस ने युवा जोश पर भरोसा जताते हुए सिद्धार्थ को वो जिम्मेदारी सौंपी है, जिसे कभी उनके पिता ने पूरा किया था. यानि 15 साल बाद फिर से रीवा में कांग्रेस की घर वापसी कराना. पिता और दादा की मौत के बाद सियासी मैदान में उतरे सिद्धार्थ

पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं
रीवा में कांग्रेस के युवा का चेहरे के रुप में उभकर सामने आए हैं
पिता के चुनावी कैंम्पेन की जिम्मेदारी संभालते रहे हैं
पिछले कुछ सालों से रीवा की राजनीति में सक्रिए हैं

रीवा में सिद्धार्थ के ऊपर इस बार दोहरी जिम्मेदारी है, एक तरफ जहां उन्हें कांग्रेस की कसौटी पर खरा उतरना है तो वहीं दादा और पिता की विरासत को नई ऊंचाई पर ले जाने की जिम्मेदारी है. हालांकि, पिता की मौत के बाद सियासी पंडितों का कहना है कि सिद्धार्थ को रीवा में सहानुभूति भी मिल सकती है, लेकिन मुकाबला बीजेपी के अनुभवी नेता जनार्दन मिश्रा से होने के चलते सिद्धार्थ की ये डगर आसान नहीं है.

Intro: लोकसभा चुनाव में रीवा लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशियों की भीड़ लगी हुई थी लेकिन ऐसे में पार्टी ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के नाती एवं पूर्व सांसद सुंदरलाल तिवारी के बेटी सिद्धार्थ तिवारी पर भरोसा जताया बता दें कि बीते 1 सालों में दादा और पिता का स्वर्गवास हो जाने के बाद कहीं ना कहीं कांग्रेस पार्टी ने सिंपैथी के रूप में सिद्धार्थ को मौका दिया है।


Body:पूर्व सांसद सुंदरलाल तिवारी के पुत्र सिद्धार्थ तिवारी रीवा में ही जन्मे उसके बाद अपनी प्रारंभिक शिक्षा रीवा के ज्योति हायर सेकेंडरी स्कूल से प्राप्त की उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए सिद्धार्थ पुणे निकल गए जहां से उन्होंने एमबीए किया। उसके बाद सिद्धार्थ ने दिल्ली सहित विदेशों में भी कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में काम भी किया। दरअसल सिद्धार्थ कुछ राजनीतिक परिवेश से आते हैं दादा श्रीनिवास तिवारी ने परिवार में राजनीति की शुरुआत की थी उसी के साथ याद और चलता रहा पिता भी वकालत की पढ़ाई करने के बाद रीवा के बड़े वकील थे फिर उन्होंने अपने पिता के कहने पर राजनीति का दामन थाम लिया उसी तरह दादा और पिता के सानिध्य में सिद्धार्थ राजनीति की पढ़ाई करते थे दादा श्रीनिवास तिवारी के गुजर जाने के बाद सिद्धार्थ राजनीति में थोड़ा थोड़ा काम भी करने लगे लोगों से मिलने मिलाने का सिलसिला भी शुरू कर दिया.. अपने दादा को देखकर राजनीति की शुरुआत करने वाले सिद्धार्थ ने राजनीति में आने का कोई फैसला नहीं किया था लेकिन पिता के गुजर जाने के बाद पार्टी ने उन्हें टिकट दिया और फिर उन्होंने अब राजनीति कर जनता की सेवा करने का फैसला कर लिया है।


इससे पहले सिद्धार्थ ने अब तक कोई चुनाव नहीं लड़ा है यह उनका पहला चुनाव है और लोकतंत्र जैसे महत्वपूर्ण चुनाव के लिए पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है इसके पहले भी प्राइवेट कंपनी में अपनी सेवाएं दे रहे थे इनके दादा श्रीनिवास तिवारी विंध्य क्षेत्र के प्रमुख चेहरा कांग्रेस पार्टी के लिए रहे हैं। सफेद शेर के नाम से विख्यात तिवारी परिवार में ऐसे ही इनके पिता सुंदरलाल तिवारी को लगातार पांच बार लोकसभा के चुनाव में अपने दावेदारी करने का मौका मिला था। बीते मार्च के महीने में सुंदरलाल तिवारी का आकस्मिक निधन होने की वजह से सिद्धार्थ का नाम सामने आया पार्टी सहानुभूति वोट भी सिद्धार्थ के नाम पर लेना चाहती है इस वजह से उनका नाम सबसे पहले सामने आया है वहीं पार्टी के बड़े नेताओं का कहना है कि मूल कांग्रेसी होने के साथ ही तिवारी परिवार का रीवा जिले में बड़ा जनाधार भी है इसके चलते कांग्रेस परिवार ने उन पर भरोसा जताया।

कुछ साल पहले युवा कांग्रेस का चुनाव किया गया था इसके लिए मतदान सूची बनाने से लेकर विधानसभा स्तर की कमेटियों के गठन में भी सक्रियता निभाई थी लेकिन उनका नाम सामने नहीं आ पाया था उनके नाम की जगह उनके चचेरे भाई का नाम आगे बढ़ा दिया गया था जिसके चलते सिद्धार्थ यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष भी नहीं बन पाए। लेकिन विधानसभा के चुनाव में अपने पिता के साथ लगातार चुनाव प्रचार में रहे चुनावी रैली अभी की इसी के चलते क्षेत्र में उनका जनसंपर्क भी पढ़ता हुआ दिखाई दिया था।


Conclusion:....
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