रीवा। कृषि बिल के विरोध में एक तरफ जहां 10 दिनों से दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर किसान आंदोलन कर रहे है. वही दूसरी तरफ कई प्रदेशों में भी कृषि बिल को लेकर विरोह हो रहा है. कृषि बिल के विरोध में रीवा कालेज चौराहे पर स्थित स्वामी विवेकानंद पार्क में शनिवार को सयुंक्त किसान मोर्चा के द्वारा महापंचायत का आयोजन किया गया. इस दौरान आक्रोशित किसानों ने अडानी अंबानी सहित देश के प्रधानमंत्री का पुतला दहन किया और लागू किये गए कृषि बिल को काला कानून बताया.
कृषि बिल के विरोध में किसानों ने की महापंचायत रीवा के स्वामी विवेकानंद पार्क में किसान मोर्चा द्वारा महापंचायत का आयोजन किया गया. महापंचायत में किसान यूनियन के अलावा अन्य सर्वदलीय नेता शामिल रहे. इस दौरान किसानों ने मोदी सरकार को चेतावनी देते हुए कहा की लागू किये गए तीनों कृषि बिलों को सरकार जब तक वापस नहीं लेगी तब तक आंदोलन जारी रहेगा. फिर चाहे किसानों को अपनी कुर्बानी ही क्यों न देना पड़े. किसान महापंचायत की समाप्ति के बाद किसान नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित उद्योगपति अडानी और अंबानी का पुतला दहन किया.
अडानी-अंबानी ने बनाया कृषि कानून कृषि कानून को लेकर किसानों का कहना है की वर्ष 1955 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हो रहा था. उस दौरान भारत के लिए अमेरिका से लाल गेंहू का निर्यात किया जा रहा था, तभी देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा दिया था. उसी समय किसानों के द्वारा उपवास कर भारत को खाद्यान में आत्मनिर्भर बनाने की बात कही गई थी. उस दौरान आवश्यक वस्तु अधिनियम को लागू कर आवश्यक वस्तुओं के भंडारण के लिए नियम बनाये गए थे. लेकिन अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा कृषि बिल कानून बनाकर आवश्यक वस्तुओं का भंडारण के लिए बनाए नियमों को समाप्त कर दिया गया. कृषि बिल के लागू हो जाने से अब कांटेक्ट फार्मिंग के तहत किसानों की जमीन उद्योगपति अम्बानी और अडानी को दे दी जाएगी. इसके साथ ही क्रेडिट लिमिट भी उनके नाम ट्रांसफर हो जाएगी और उद्योगपति किसानों को मनामने ढंग से बीज दिया जाएगा और किसानों की फसलों का दाम तय किया जाएगा. अगर प्राकृतिक आपदा के कारण किसान की फसल तबाह होती है तो उसकी भरपाई खुद किसान को ही करना होगा. उनके द्वारा उचित मूल्य और कांट्रेक्ट का उलंघन किया जाता है तो किसान न्यायालय की शरण नहीं ले सकता. किसानों का कहना है की यह किसान विरोधी तीनों कानून अडानी और अम्बानी के बनाए हुए है जिसमें सरकार के द्वारा सिर्फ और सिर्फ हस्ताक्षर ही किये गए है.
कृषि बिल से कैसे होगा किसानों का नुकसानकेंद्र सरकार द्वारा लाये गए कृषि कानून से किसानों को होने वाले नुकसान को लेकर किसानों का कहना है की भारत में हर वर्ष 23 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य को घोषित किया जाता है. अब इस कानून के कारण किसानों को समर्थन मूल्य से भी वंचित कर दिया जाएगा. सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात तो कर रही है लेकिन लागू किये गए कृषि बिल में उसका लिखित रूप से कही कोई जिक्र नहीं किया गया है. इस बिल की वजह से अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य हटा दिया जाएगा तो किसान मजदूर बन जाएंगे.
कृषि बिल से खेती विहीन होंगे किसानकृषि बिल से किसानों को होने वाली समस्याओं को लेकर किसान संगठन के नेताओं का कहना है की इस कानून से किसान पूरी तरह खेती विहीन हो जाएंगे. किसानों को न्यूनतम सार्थन मूल्य नही मिलेगा. मनामने तरीके से हर जिलों में कांटेक्ट फार्मिंग होगी. अडानी और अम्बानी कांटेक्ट फार्मिंग करेंगे. फसल बोनी के लिए 10 सालों के लिए कांट्रेक्ट कर लिया जाएगा. किसानों का कहना है की सरकार अगर न्यूनतम समर्तहन मूल्य रखेगी. हर वर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करेगी और एक अधिनियम बनाएगी की न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम की जो भी खरीदी करेगा. उसे जेल और सजा होने का प्रवधान रखा जाएगा तो न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे की कोई खरीदी नहीं कर पाएगा. किसानों का कहना है की वह एमआरपी नही न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग कर रहे है.