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तीज-त्योहारों और शादियों तक ही सिमटी बांस के सामानों की बिक्री, शिल्पकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट

जंगलों में निवास करने वाले और बांस का सामान बनाने वाले समाज के सामने अब रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. यह समाज पिछली कई पीढ़ियों से परंपरागत तरीके से बांस का सामान बनाता है, लेकिन मौजूदा वक्त में प्लास्टिक और अन्य धातुओं से बने सामान के सामने उनके बांस के बने शिल्प को कोई पूछने वाला नहीं है.

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Published : Mar 14, 2019, 3:28 PM IST

शिल्पकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट

रीवा। जंगलों में निवास करने वाले और बांस का सामान बनाने वाले समाज के सामने अब रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. यह समाज पिछली कई पीढ़ियों से परंपरागत तरीके से बांस का सामान बनाता है, लेकिन मौजूदा वक्त में प्लास्टिक और अन्य धातुओं से बने सामान के सामने उनके बांस के बने शिल्प को कोई पूछने वाला नहीं है.

Employment crisis in front of Bansal society of Rewa
शिल्पकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट


यही वजह है कि इस समाज के लोग प्रशासन के पास अपनी समस्याओं को लेकर पहुंचे. रीवा के जंगल में बसे बांस शिल्पकार पूरी तरह से जंगल पर आश्रित हैं. वे बांस का सामान बनाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. लेकिन आधुनिक युग में इनके द्वारा बनाए गए सामान की पूछपरख कम हो गई है.

शिल्पकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट

बांस से बने सामानों की डिमांड सिर्फ शादी-विवाह और कुछ खास त्योहारों में ही रहती है. उसके बाद बांस शिल्पकारों का काम सिमट कर रह जाता है, जिसके बाद यह लोग जगह-जगह घूमकर हस्तकला से निर्मित वस्तुओं की बिक्री कर जैसे-तैसे अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं, लेकिन फिर भी इन पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है.


लोगों का कहना है कि हस्तकला से निर्मित सामान को बनाने के लिए वक्त और पैसे दोनों लगते हैं. अब इन लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि इनके सामानों की बिक्री की एक ठोस व्यवस्था की जाए, ताकि ये अपने और परिवार का पालन-पोषण कर सकें.

रीवा। जंगलों में निवास करने वाले और बांस का सामान बनाने वाले समाज के सामने अब रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. यह समाज पिछली कई पीढ़ियों से परंपरागत तरीके से बांस का सामान बनाता है, लेकिन मौजूदा वक्त में प्लास्टिक और अन्य धातुओं से बने सामान के सामने उनके बांस के बने शिल्प को कोई पूछने वाला नहीं है.

Employment crisis in front of Bansal society of Rewa
शिल्पकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट


यही वजह है कि इस समाज के लोग प्रशासन के पास अपनी समस्याओं को लेकर पहुंचे. रीवा के जंगल में बसे बांस शिल्पकार पूरी तरह से जंगल पर आश्रित हैं. वे बांस का सामान बनाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. लेकिन आधुनिक युग में इनके द्वारा बनाए गए सामान की पूछपरख कम हो गई है.

शिल्पकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट

बांस से बने सामानों की डिमांड सिर्फ शादी-विवाह और कुछ खास त्योहारों में ही रहती है. उसके बाद बांस शिल्पकारों का काम सिमट कर रह जाता है, जिसके बाद यह लोग जगह-जगह घूमकर हस्तकला से निर्मित वस्तुओं की बिक्री कर जैसे-तैसे अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं, लेकिन फिर भी इन पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है.


लोगों का कहना है कि हस्तकला से निर्मित सामान को बनाने के लिए वक्त और पैसे दोनों लगते हैं. अब इन लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि इनके सामानों की बिक्री की एक ठोस व्यवस्था की जाए, ताकि ये अपने और परिवार का पालन-पोषण कर सकें.

Intro:एंकर : आधुनिक परिवेश के चलते परम्परागत कारीगरों के सामने रोजी रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है।  परंपरागत तरीके से पिछली कई पीढ़ियों से रीवा में बसे ये बंसल समाज के लोग बांस की लकड़ी के बने सामान बनाते चले आ रहे हैं और इसी से अपना और अपने परिवार का पेट पालते है लेकिन आधुनिकता के चलते इनके इन सामानों को पूछने वाला कोई नहीं है जिसके चलते इनके पास रोजी रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है





Body:वीओ : रीवा में बसे ये बंसल परिवार के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी से इस शिल्पकला से अपनी रोजी रोटी चलाते आ रहे है बांस की लकड़ी से सामान बनाना इनका मुख्य व्यवसाय है। लेकिन आधुनिक युग में इनके इन बांस के बने सामानों को पूछने वाला कोई नहीं है ये लोग इस लकड़ी से  सुपा, डलिया,टोकनिया और कई छोटे छोटे सामान बनाकर अपना गुजर बसर करते है लेकिन अब इनकी मांग शादी विवाह और कुछ खास त्योहारों तक ही इनकी पूछ परख सिमट कर रह गयी है जिससे ये अपना परिवार चला रहे हैं फिर भी इनकी तरफ प्रशासन कोई ध्यान नहीं दे रहा है। ये लोग बाजार में बैठकर या तो जगह जगह घूमकर इसको बेचते है और किसी तरह अपना और अपने परिवार का पेट चला रहे है। इसको बनाने के लिए बांस इन्हें काफी दूर से लाना पड़ता है और ये काफी महंगा भी मिलता है। इनका कहना है की इन्हें बांस का सामान बनाने में काफी समय लगता है और मंहगाई इतनी बढ़ गयी है उसके बाद भी इन सामानों के अच्छे दाम नहीं मिल पाते आधुनिकता के चलते अब इनको कोई नहीं पूछता जिसके चलते इन लोगों के पास अब रोजगार का भी संकट आ खड़ा हुआ है इनकी शाशन से मांग है की इनके लिए कोई व्यवस्था की जाए जिससे ये अपना और अपने परिवार का पेट पाल सके।

बाइट1- मजदूर महिला
बाइट2-मजदूर महिला
बाइट3-मजदूर महिला


Conclusion:...
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