रीवा। जंगलों में निवास करने वाले और बांस का सामान बनाने वाले समाज के सामने अब रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. यह समाज पिछली कई पीढ़ियों से परंपरागत तरीके से बांस का सामान बनाता है, लेकिन मौजूदा वक्त में प्लास्टिक और अन्य धातुओं से बने सामान के सामने उनके बांस के बने शिल्प को कोई पूछने वाला नहीं है.
![Employment crisis in front of Bansal society of Rewa](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/images/2686354_njdfhdh.jpg)
यही वजह है कि इस समाज के लोग प्रशासन के पास अपनी समस्याओं को लेकर पहुंचे. रीवा के जंगल में बसे बांस शिल्पकार पूरी तरह से जंगल पर आश्रित हैं. वे बांस का सामान बनाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. लेकिन आधुनिक युग में इनके द्वारा बनाए गए सामान की पूछपरख कम हो गई है.
बांस से बने सामानों की डिमांड सिर्फ शादी-विवाह और कुछ खास त्योहारों में ही रहती है. उसके बाद बांस शिल्पकारों का काम सिमट कर रह जाता है, जिसके बाद यह लोग जगह-जगह घूमकर हस्तकला से निर्मित वस्तुओं की बिक्री कर जैसे-तैसे अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं, लेकिन फिर भी इन पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है.
लोगों का कहना है कि हस्तकला से निर्मित सामान को बनाने के लिए वक्त और पैसे दोनों लगते हैं. अब इन लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि इनके सामानों की बिक्री की एक ठोस व्यवस्था की जाए, ताकि ये अपने और परिवार का पालन-पोषण कर सकें.