रीवा। चोरहटा थाना क्षेत्र के गोड़हर गांव में छत्तीसगढ़ से वापस लौटे एक बुजुर्ग को न तो गांव के अंदर घुसने दिया गया और ना ही सरपंच और सचिव की तरफ से उन्हें क्वारंटाइन किए जाने की ही कोई व्यवस्था की गई. मजबूरी में बुजुर्ग खुले आसमान के नीचे किसी तरह रात गुजार रहे हैं. मैदान से लकड़ी बटोर कर, उसी का आशियाना बनाया और रहने लगे. हैरानी की बात ये है कि, वहां से मजह 20 मीटर की दूर पर पंचायत भवन है, जिसमें हमेशा ताला बंद रहता है. प्रशासन बार-बार ये दावा करता रहा है कि, हर गांव में बाहर से आए लोगों के लिए क्वारंटाइऩ सेंटर बनाया गया है. लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि, एक 65 साल का बुजुर्ग तपती धूप में खुले मैदान में क्वारंटाइन है. इस दौरान न तो प्रशासन और न ही स्थानीय नेता उसे देखने पहुंचे. यहां तक कि सामने की सड़क से प्रशासनिक अमला भी गुजरता है, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.
दरअसल, पीड़ित छत्तीसगढ़ में रहकर ईंट की जुड़ाई का काम करते थे. लॉकडाउन होने के कारण वो वहीं फंस गए. प्रशासन से थोड़ी बहुत राहत मिली, तो किसी तरह पांच दिन पहले ही अपने गांव पहुंचे. गांव पहुंचने पर ग्रामीणों ने कोरोना संक्रमण फैलने के डर से उनका विरोध जताया और गांव में नहीं घुसने दिया गया. जिसके बाद उन्होंने लकड़ियों के सहारे थोड़ी-बहुत छाया बनाई और खुले मैदान में ही रह रहे हैं. हैरानी की बात ये है कि, प्रशासन का कोई आदमी बुजुर्ग का हाल जानने नहीं पहुंचा है. गांव के सरपंच और सहायक सचिव इसी रास्ते से गुजर जाते हैं, लेकिन पीड़ित का हाल जानना तो दूर, वो बुजुर्ग की तरफ देखते भी नही हैृं.
इस मामले ने जहां एक ओर प्रशासन के दावे की पोल खोली है, तो वहीं स्थानीय नेताओं की संवेदहीनता को भी उजागर किया है. जिससे एक बुजुर्ग शहरों से किसी तरह जान बचाकर अपने गांव तो पहुंच गया, लेकिन प्रशासन की लापरवाही और संवेदनहीनता ने उसे धूप में मरने के लिए छोड़ दिया है.