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प्रशासन की अनदेखी का शिकार धोबी समाज, बिना घाट के धो रहे कपड़े

कई पीढियों से कपड़े धोकर अपनी रोजी-रोटी चलाने वाला धोबी समाज प्रशासन की अनदेखी का शिकार है. नेताओं द्वारा तमाम तरह के वादे किए गए लेकिन हालत जस के तस हैं.

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Published : Nov 28, 2019, 3:05 PM IST

Dhobi society is a victim of ignoring administration in rewa
प्रशासन की अनदेखी का शिकार धोबी समाज

रीवा। कपड़ों की धुलाई और आयरन कर लोगों को अप टू डेट बनाने वाला धोबी समाज प्रशासनिक अनदेखी का शिकार है. बरसों से बिहार नदी के जिस स्थान पर ये लोग कपड़ों की धुलाई का काम कर रहे हैं, वहां इनके लिए कोई सुविधा ही नहीं है. प्रशासन ने ना तो अभी तक कोई बाउंड्री वॉल बनाई है और ना ही कपड़ों की सुरक्षा और भंडारण के लिए मकान. हालात ये हैं कि पलक झपकते ही कपड़े चोरी हो जाते हैं. यहां तक की कपड़ों को रखने के लिए जिस मकान का उपयोग किया जाता है, उसकी छत गायब है.

बिहार नदी में स्थित बड़ी पुल के किनारे सुबह 5:00 बजे से ही धोबी समाज के लोगों का काम शुरू हो जाता है. इसके लिए सबसे पहले उन्हें घाट पर सफाई करना पड़ता है. क्योंकि लोग यहां पर शौंच भी कर जाते हैं. इसके बाद कपड़ों की धुलाई का काम शुरु होता है, लेकिन उचित व्यवस्थाएं नहीं होने से इन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

कई पीढिंयों से कपड़े धुलाई का काम करने वाला धोबी समाज आज प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर है. यहां काम करने वाले लोगों का कहना है कि नेता और प्रशासन उनसे केवल झूठे वादे करते हैं. जिसके चलते उनको हो रही समस्याओं का निराकरण आज तक नहीं हुआ.

रीवा। कपड़ों की धुलाई और आयरन कर लोगों को अप टू डेट बनाने वाला धोबी समाज प्रशासनिक अनदेखी का शिकार है. बरसों से बिहार नदी के जिस स्थान पर ये लोग कपड़ों की धुलाई का काम कर रहे हैं, वहां इनके लिए कोई सुविधा ही नहीं है. प्रशासन ने ना तो अभी तक कोई बाउंड्री वॉल बनाई है और ना ही कपड़ों की सुरक्षा और भंडारण के लिए मकान. हालात ये हैं कि पलक झपकते ही कपड़े चोरी हो जाते हैं. यहां तक की कपड़ों को रखने के लिए जिस मकान का उपयोग किया जाता है, उसकी छत गायब है.

बिहार नदी में स्थित बड़ी पुल के किनारे सुबह 5:00 बजे से ही धोबी समाज के लोगों का काम शुरू हो जाता है. इसके लिए सबसे पहले उन्हें घाट पर सफाई करना पड़ता है. क्योंकि लोग यहां पर शौंच भी कर जाते हैं. इसके बाद कपड़ों की धुलाई का काम शुरु होता है, लेकिन उचित व्यवस्थाएं नहीं होने से इन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

कई पीढिंयों से कपड़े धुलाई का काम करने वाला धोबी समाज आज प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर है. यहां काम करने वाले लोगों का कहना है कि नेता और प्रशासन उनसे केवल झूठे वादे करते हैं. जिसके चलते उनको हो रही समस्याओं का निराकरण आज तक नहीं हुआ.

Intro:कपड़ों की धुलाई और स्त्री कर लोगों को अप टू डेट बनाने वाला धोबी समाज प्रशासनिक अनदेखी का शिकार है बरसों से बिहार नदी के जिस स्थान पर यह लोग कपड़ों की धुलाई का काम कर रहे हैं वहां इनके लिए कोई सुविधा ही नहीं है ना तो अब तक बाउंड्री वाल बना सके हैं और ना ही कपड़ों की सुरक्षा पर कड़ी निगरानी के लिए मकान... हालात यह है कि पलक झपकते ही कपड़े चोरी हो जाते हैं धोबी समाज के लोग अपने कपड़ों को रखने के लिए जिस भवन का उपयोग स्टोर के रूप में कर रहे थे उसकी छत्त कब गायब है ऐसे में यहां पर दिन में कपड़े धोने वाले धोबी समाज के लोगों की सबसे बड़ी जरूरत बाउंड्री और स्टोर है...


Body:बिहार नदी में स्थित बड़ी पुल के किनारे सुबह 5:00 बजे से ही धोबी समाज के लोगों का काम शुरू हो जाता है सबसे पहले वह यहां पहुंचकर सफाई करते हैं तमाम लोग यहां शौच क्रिया तक कर जाते हैं इसके बाद कपड़ों की धुलाई और उसे सुखाने का काम होता है...


अपने पूर्वजों के समय से यहां पर कपड़े का धुलाई करने वाले धोबी समाज के लोग आज प्रशासनिक उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर है रीवा में आई बाढ़ त्रासदी में अपना बना बनाया कार्यक्षेत्र खत्म होने के बाद आज भी बताया है तो भी समाज शासन प्रशासन से काफी उम्मीद लेकर बैठा है कि कोई जो उनके हित के लिए एक बार आगे खड़ा होगा लेकिन हालात बद से बदतर मजबूर हैं दो वक्त रोटी कमाने के लिए अपनी सारी समस्याओं को दरकिनार करते थे..


आज लोग चंद् पैसे देकर साफ-सुथरे कपड़े और बेहतरीन जीवन जीने का ख्वाब तो देखते हैं लेकिन इस बात को भूल जाते हैं कि जो लोग महज ₹15 में उनके गंदे कपड़ों को साफ और प्रेस करके उन्हें देते हैं उनकी समस्याएं आखिरकार है क्या लोगों को केवल और केवल आज के युग में अपने कर्मों से ही मतलब रहता है...



यहां काम करने वाले लोगों का कहना है कि कई राजनेताओं और प्रशासनिक लोगों ने मदद की लेकिन सिर्फ बातो में। सब पता है हमारे लिए इस प्रकार की सुविधा मोहिया कराई गई है और ना ही किस प्रकार का कार्य किया गया है। कई बार राजस्थानी प्रशासन और नेताओं से गुहार भी लगाई गई लेकिन हालात जस की तस बने हुए है।



जब हमने इनकी समस्या को लेकर स्थानिय प्रशासन से बात किया तो उन्होंने उनकी समस्याओं को देखने के बाद आगे कार्य करने की बात कही है।


बाइट- धोबी।
बाइट- धोबी।
बाइट- सभाजीत यादव, नगर निगम आयुक्त।


Conclusion:....
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