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लॉकडाउन के बाद गैजेट्स के आदि हुए बच्चे, व्यवहार पर दिख रहा गहरा असर

बीते करीब 6 महीनों से कोरोना काल के कारण स्कूल बंद हैं. लॉकडाउन के दौरान से ही तीन से दस साल तक के बच्चे गैजेट्स से ऑनलाइन क्लासेस के बाद अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर गेम खेलने और टीवी देखने में गुजार रहे हैं. ऐसे में बच्चों के व्यवहार और आदतों में अभिभावकों द्वारा काफी बदलाव महसूस किया जा रहा है. पढ़ें पूरी खबर...

impact of digital studies
डिजिटल पढ़ाई
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Published : Sep 16, 2020, 1:58 PM IST

रतलाम। कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए देशभर में लॉकडाउन किया गया था, जिसके तहत सभी शैक्षणिक संस्थानों को भी बंद कर दिया गया. लॉकडाउन के दौरान छात्रों की शिक्षा प्रभावित न हो, इसलिए डिजिटल पढ़ाई यानि ऑनलाइन क्लासेस शुरू की गई. 6 महीने बीत जाने के बाद भी अब तक शैक्षणिक संस्थान नहीं खुले है, जिस वजह से बच्चे दिन-रात कंप्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल के जरिए अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं. गैजेट्स के ओवर यूज के कारण अब बच्चों के व्यवहार में बदलाव देखा जा रहा है.

गैजेट्स का बच्चों पर प्रभाव

लॉकडाउन के कारण बच्चे पिछले 6 महीनों से दिनभर घर में रह रहे हैं. ऐसे में 7 से 8 घंटे की ऑनलाइन स्टडी के बाद वे अपना समय बिताने या तो मोबाइल में गेम खेलते हैं या टीवी देखते हैं. ऐसे में उनका ज्यादातर समय गैजेट्स में बीत रहा है. गैजेट्स के ओवर यूज के कारण बच्चों के व्यवहार में काफी बदलाव महसूस किए जा रहे हैं. खास तौर पर तीन से 10 साल तक के बच्चों में. रियल क्लासेस और आउटडोर एक्टीवीटीज नहीं होने के कारण बच्चों में चिड़चिड़ापन और जिद्दी होने जैसे कई बदलाव देखने को मिले हैं.

पढ़ाई में रुचि नहीं ले रहे बच्चे

कोरोना महामारी की वजह से लागू किए गए लॉकडाउन को तो अब अनलॉक कर दिया गया है, लेकिन स्कूलों में सुचारू रूप से कक्षाएं संचालित करने की स्थिति अब तक नहीं बन पाई है. सितंबर के आखिरी सप्ताह में कक्षा 9वीं से 12वीं तक की कक्षाओं को शुरू करने पर सरकार विचार कर रही है. लेकिन कोरोना के लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए नर्सरी से 5वीं तक की कक्षाओं को शुरू करने में अभी और वक्त लग सकता है.

लगभग 6 महीनों से घर बैठ बच्चों पर इस लंबे शैक्षणिक अवकाश का गहरा असर पड़ता दिखाई दे रहा है. ऑनलाइन कक्षाओं के बावजूद बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं ले रहे हैं. 3 साल से 10 साल तक की उम्र के बच्चों का ज्यादातर समय मोबाइल पर गेम खेलने और टीवी देखने में बीत रहा है. वहीं रियल क्लासेस में जिस तरह बच्चे सहभागिता निभाते थे वो इन वर्चुअल क्लासेस में नहीं हो रहा है.

चाल्ड हेल्पलाइन से मदद ले रहे अभिभावक

बच्चों के व्यवहार में आए परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं के लिए अभिभावक चाइल्ड हेल्पलाइन के कॉल सेंटर पर संपर्क कर रहे हैं, जहां काउंसलर्स अभिभावकों को इन हालातों में बच्चों को कैसे संभाले इसके लिए टिप्स दे रहे हैं. जानकारी के मुताबिक चाइल्ड हेल्पलाइन कॉल सेंटर पर रोजाना 12 से ज्यादा कॉल प्राप्त हो रहे हैं, जिसमें अभिभावक अपने बच्चों के बदले हुए व्यवहार के समाधान के लिए भी फोन कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- 18 या 21 साल, कब होनी चाहिए लड़कियों की शादी, शहरवासियों ने जाहिर की अपनी राय

इस मामले में चाइल्ड लाइन के प्रबंधक प्रेम चौधरी का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान से ही बच्चों के व्यवहार में आए परिवर्तन की शिकायतें चाइल्ड लाइन पर मिल रही है. चाइल्ड लाइन की हेल्प डेस्क पर मौजूद काउंसलर बच्चों और उनके अभिभावकों से बात कर ऐसे बच्चों की काउंसलिंग करने में मदद कर रहे हैं. चाइल्ड लाइन की काउंसलर सुनीता देवड़ा ने बताया कि हम बच्चे से फोन और वीडियो कॉल पर बात कर उसकी रूचि और अरुचि के बारे में जानकारी एकत्रित करते हैं. जिसके बाद अभिभावकों को बच्चों से कैसे व्यवहार करना है, इसके निर्देश देते हैं. जरूरत पड़ने पर मनोचिकित्सक से परामर्श लेने के लिए भी अभिभावकों को कहा जाता है. कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए शुरू की गई ऑनलाइन क्लासेस अब बच्चों और अभिभावकों दोनों के लिए एक बड़ी मुसीबत साबित होती जा रही हैं. रियल क्लासरूम जैसा माहौल नहीं मिलने से जहां बच्चे अब पढ़ाई में रूचि नहीं ले रहे हैं, वहीं दिन भर टीवी, कंप्यूटर और मोबाइल का यूज करने के कारण चिड़चिड़े भी हो रहे हैं.

रतलाम। कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए देशभर में लॉकडाउन किया गया था, जिसके तहत सभी शैक्षणिक संस्थानों को भी बंद कर दिया गया. लॉकडाउन के दौरान छात्रों की शिक्षा प्रभावित न हो, इसलिए डिजिटल पढ़ाई यानि ऑनलाइन क्लासेस शुरू की गई. 6 महीने बीत जाने के बाद भी अब तक शैक्षणिक संस्थान नहीं खुले है, जिस वजह से बच्चे दिन-रात कंप्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल के जरिए अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं. गैजेट्स के ओवर यूज के कारण अब बच्चों के व्यवहार में बदलाव देखा जा रहा है.

गैजेट्स का बच्चों पर प्रभाव

लॉकडाउन के कारण बच्चे पिछले 6 महीनों से दिनभर घर में रह रहे हैं. ऐसे में 7 से 8 घंटे की ऑनलाइन स्टडी के बाद वे अपना समय बिताने या तो मोबाइल में गेम खेलते हैं या टीवी देखते हैं. ऐसे में उनका ज्यादातर समय गैजेट्स में बीत रहा है. गैजेट्स के ओवर यूज के कारण बच्चों के व्यवहार में काफी बदलाव महसूस किए जा रहे हैं. खास तौर पर तीन से 10 साल तक के बच्चों में. रियल क्लासेस और आउटडोर एक्टीवीटीज नहीं होने के कारण बच्चों में चिड़चिड़ापन और जिद्दी होने जैसे कई बदलाव देखने को मिले हैं.

पढ़ाई में रुचि नहीं ले रहे बच्चे

कोरोना महामारी की वजह से लागू किए गए लॉकडाउन को तो अब अनलॉक कर दिया गया है, लेकिन स्कूलों में सुचारू रूप से कक्षाएं संचालित करने की स्थिति अब तक नहीं बन पाई है. सितंबर के आखिरी सप्ताह में कक्षा 9वीं से 12वीं तक की कक्षाओं को शुरू करने पर सरकार विचार कर रही है. लेकिन कोरोना के लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए नर्सरी से 5वीं तक की कक्षाओं को शुरू करने में अभी और वक्त लग सकता है.

लगभग 6 महीनों से घर बैठ बच्चों पर इस लंबे शैक्षणिक अवकाश का गहरा असर पड़ता दिखाई दे रहा है. ऑनलाइन कक्षाओं के बावजूद बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं ले रहे हैं. 3 साल से 10 साल तक की उम्र के बच्चों का ज्यादातर समय मोबाइल पर गेम खेलने और टीवी देखने में बीत रहा है. वहीं रियल क्लासेस में जिस तरह बच्चे सहभागिता निभाते थे वो इन वर्चुअल क्लासेस में नहीं हो रहा है.

चाल्ड हेल्पलाइन से मदद ले रहे अभिभावक

बच्चों के व्यवहार में आए परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं के लिए अभिभावक चाइल्ड हेल्पलाइन के कॉल सेंटर पर संपर्क कर रहे हैं, जहां काउंसलर्स अभिभावकों को इन हालातों में बच्चों को कैसे संभाले इसके लिए टिप्स दे रहे हैं. जानकारी के मुताबिक चाइल्ड हेल्पलाइन कॉल सेंटर पर रोजाना 12 से ज्यादा कॉल प्राप्त हो रहे हैं, जिसमें अभिभावक अपने बच्चों के बदले हुए व्यवहार के समाधान के लिए भी फोन कर रहे हैं.

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इस मामले में चाइल्ड लाइन के प्रबंधक प्रेम चौधरी का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान से ही बच्चों के व्यवहार में आए परिवर्तन की शिकायतें चाइल्ड लाइन पर मिल रही है. चाइल्ड लाइन की हेल्प डेस्क पर मौजूद काउंसलर बच्चों और उनके अभिभावकों से बात कर ऐसे बच्चों की काउंसलिंग करने में मदद कर रहे हैं. चाइल्ड लाइन की काउंसलर सुनीता देवड़ा ने बताया कि हम बच्चे से फोन और वीडियो कॉल पर बात कर उसकी रूचि और अरुचि के बारे में जानकारी एकत्रित करते हैं. जिसके बाद अभिभावकों को बच्चों से कैसे व्यवहार करना है, इसके निर्देश देते हैं. जरूरत पड़ने पर मनोचिकित्सक से परामर्श लेने के लिए भी अभिभावकों को कहा जाता है. कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए शुरू की गई ऑनलाइन क्लासेस अब बच्चों और अभिभावकों दोनों के लिए एक बड़ी मुसीबत साबित होती जा रही हैं. रियल क्लासरूम जैसा माहौल नहीं मिलने से जहां बच्चे अब पढ़ाई में रूचि नहीं ले रहे हैं, वहीं दिन भर टीवी, कंप्यूटर और मोबाइल का यूज करने के कारण चिड़चिड़े भी हो रहे हैं.

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