रतलाम। सोयाबीन की फसल में येलो मोजैक की वजह से हुई किसानों की बदहाली के बीच जिले के कुछ किसान फसल चक्र अपनाकर मक्का की खेती से मुनाफा कमा रहे हैं. बता दें कि खेती में फसल चक्र अपनाने की सलाह कृषि वैज्ञानिक और विभाग हमेशा ही किसानों को देते रहते हैं. मध्यप्रदेश में लंबे समय से अधिकांश किसान खरीफ के सीजन में सोयाबीन की ही फसल लगाते आ रहे हैं. नतीजन सोयाबीन के औसत उत्पादन में लगातार कमीं आती जा रही है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों को अपने खेत में फसल का परिवर्तन करते रहना चाहिए.
बता दें कि बीते दो-तीन सालों से सोयाबीन में येलो मोजेक वायरस और कीट व्याधियों की समस्या भी बढ़ने लगी है. जिसके चलते इस साल भी प्रदेश के कई जिलों में सोयाबीन की फसल बर्बाद हो चुकी है. जिले के कुछ प्रगतिशील किसानों ने फसल चक्र अपनाते हुए सोयाबीन की जगह मक्का की फसल लगाई थी. अब मक्का की फसल पक कर तैयार हो चुकी है, जिससे उन्हें प्रति हेक्टेयर 60 से 80 क्विंटल मक्का का उत्पादन मिलने की उम्मीद है.
कृषि विभाग और कृषि वैज्ञानिक ने फसल चक्र अपनाने वाले किसानों के लिए प्रोत्साहन योजना की भी शुरुआत की है. प्रदेश का सोना कहे जाने वाले सोयाबीन के प्रति किसानों का मोह अब घाटे का सौदा साबित हो रहा है. जिले में कई किसान ऐसे हैं, जो फसल चक्र अपनाकर खेतों में फसलों का परिवर्तन करते रहते हैं. रतलाम के करमदी गांव के रहने वाले किसान राजेश पुरोहित बताते हैं कि वे पिछले चार-पांच साल से अपनी फसल में परिवर्तन करते आ रहे हैं. इस साल उन्होंने 5 बीघा में उन्नत तकनीक से मक्का की खेती की है, जिससे उन्हें एक हेक्टेयर में 60 से 80 क्विंटल तक मक्का का उत्पादन मिलने की उम्मीद है. जो सोयाबीन की तुलना में अधिक मुनाफे वाली खेती साबित हो रही है.
जिले के सेमलिया गांव के किसान राजेश गोस्वामी ने भी फसल चक्र अपनाते हुए सोयाबीन की बजाय मक्का की खेती को अपनाया और सोयाबीन की फसल में हुई किसानों की बदहाली से बच गए हैं. इनका कहना है कि मक्का की फसल अब पक कर तैयार हो चुकी है, जिसमें लागत भी सोयाबीन की अपेक्षा लगभग आधी लगी है. जबकि मक्का का उत्पादन सोयाबीन की अपेक्षा चार गुना अधिक प्राप्त होने की उम्मीद है. बहरहाल जिले के कुछ प्रगतिशील किसानों ने फसल चक्र अपनाकर यह साबित किया है कि फसल परिवर्तन करने से खेती में आने वाली आकस्मिक बाधाओं से भी बचा जा सकता है. वहीं उन्नत तकनीक के सहारे खेती को लाभ का धंधा बनाया जा सकता है.