ETV Bharat / state

मध्यप्रदेश में है वो गांव जहां ओशो ने लिया था जन्म, जानें आश्रम में अब क्या होता है

मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में है ओशो का गांव कुचवाड़ा. ओशो की विवादास्पद छवि की वजह से शायद शासन-प्रशासन उनसे जुड़ी चीजों से दूरी बनाकर रखता है. मध्यप्रदेश के रायसेन जिले से निकलकर छा जाने वाले ओशो के अनुयायी दुनियाभर में हैं.

ओशो
author img

By

Published : Feb 9, 2019, 3:10 AM IST

रायसेन। अपने तीखे विचारों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आज से करीब पांच दशक पहले प्रसिद्धि हासिल करने वाले ओशो किसी पहचान के मोहताज नहीं है. मध्यप्रदेश के रायसेन जिले से निकलकर छा जाने वाले ओशो को मानने वाले दुनिया भर में हैं. उनके आश्रम भी दुनिया भर में हैं, लेकिन प्रदेश के जिस हिस्से से अध्यात्म की ये किरण रोशन हुई, वो आज भी अंधकार में है.

ओशो तीर्थ कहे जाने वाले रायसेन के कुचवाड़ा गांव में जब आप प्रवेश करते हैं तो आपको दो तस्वीरें दिखती हैं. एक तस्वीर में खूबसूरत ओशो आश्रम है तो दूसरी तस्वीर में गांव की गंदगी से भरी कच्ची गलियां, एक तस्वीर में करीने से सजे आश्रम के भवन दिख रहे हैं तो दूसरी तस्वीर में मिट्टी और फूस से बने कच्चे छोटे घर, एक तस्वीर में सारे दुख-दर्द भूलकर मस्ती में झूमते साधु वेशधारी लोग हैं तो दूसरी तस्वीर में तंगहाली में जिंदगी बसर कर रहे गृहस्थ. ये दोनों तस्वीरें हैं उस आध्यात्मिक गुरु की जन्मस्थली की जिसने ज़िंदगी को जश्न में बदलने की सीख दी थी.

undefined
ओशो
undefined

जिस घर में ओशो का जन्म हुआ था, उसे खरीदकर उनके समर्थकों ने वहां आश्रम बना लिया है, लेकिन ओशो की जन्मभूमि के बाशिंदों का आश्रम में प्रवेश संभव नहीं. जिस शख्स के पास ओशो के नाना के इस मकान का मालिकाना हक था, उस शख्स से गांव का भला होने की बात कहकर ये मकान खरीद लिया गया, लेकिन गांव वालों को ये दर्द सालता है कि ओशो की जन्मस्थली में बने उनके आश्रम से ही गांव का ज़रा भी भला नहीं हुआ.

ओशो की विवादास्पद छवि की वजह से शायद शासन-प्रशासन उनसे जुड़ी चीजों से दूरी बनाकर रखता है, लेकिन ज़िंदगी का एक नया फलसफ़ा देने वाले ओशो को नज़रअंदाज करना इतना आसान नहीं. अगर ओशो से जुड़ी जगहों और चीजों को सरकारी संरक्षण मिलता तो वे पर्यटन का एक बड़ा केंद्र बन सकती थीं, जिसकी ओर दुनिया के हर कोने से ओशो संन्यासी खिंचे चले आते, लेकिन ढुलमुल रवैये ने ओशो को उन्हीं की जन्मस्थली में बेगाना कर दिया है और गांव वालों को लाचार, जिनका दर्द ये है कि ओशो कभी उनके अपने थे और उनसे जुड़ी चीजें उनकी यादों में बसी थीं, लेकिन आज खुद को ओशो का समर्थक कहने वाले बिना प्रवेश शुल्क के किसी को ओशो आश्रम में प्रवेश भी नहीं करने देते.

undefined

रायसेन। अपने तीखे विचारों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आज से करीब पांच दशक पहले प्रसिद्धि हासिल करने वाले ओशो किसी पहचान के मोहताज नहीं है. मध्यप्रदेश के रायसेन जिले से निकलकर छा जाने वाले ओशो को मानने वाले दुनिया भर में हैं. उनके आश्रम भी दुनिया भर में हैं, लेकिन प्रदेश के जिस हिस्से से अध्यात्म की ये किरण रोशन हुई, वो आज भी अंधकार में है.

ओशो तीर्थ कहे जाने वाले रायसेन के कुचवाड़ा गांव में जब आप प्रवेश करते हैं तो आपको दो तस्वीरें दिखती हैं. एक तस्वीर में खूबसूरत ओशो आश्रम है तो दूसरी तस्वीर में गांव की गंदगी से भरी कच्ची गलियां, एक तस्वीर में करीने से सजे आश्रम के भवन दिख रहे हैं तो दूसरी तस्वीर में मिट्टी और फूस से बने कच्चे छोटे घर, एक तस्वीर में सारे दुख-दर्द भूलकर मस्ती में झूमते साधु वेशधारी लोग हैं तो दूसरी तस्वीर में तंगहाली में जिंदगी बसर कर रहे गृहस्थ. ये दोनों तस्वीरें हैं उस आध्यात्मिक गुरु की जन्मस्थली की जिसने ज़िंदगी को जश्न में बदलने की सीख दी थी.

undefined
ओशो
undefined

जिस घर में ओशो का जन्म हुआ था, उसे खरीदकर उनके समर्थकों ने वहां आश्रम बना लिया है, लेकिन ओशो की जन्मभूमि के बाशिंदों का आश्रम में प्रवेश संभव नहीं. जिस शख्स के पास ओशो के नाना के इस मकान का मालिकाना हक था, उस शख्स से गांव का भला होने की बात कहकर ये मकान खरीद लिया गया, लेकिन गांव वालों को ये दर्द सालता है कि ओशो की जन्मस्थली में बने उनके आश्रम से ही गांव का ज़रा भी भला नहीं हुआ.

ओशो की विवादास्पद छवि की वजह से शायद शासन-प्रशासन उनसे जुड़ी चीजों से दूरी बनाकर रखता है, लेकिन ज़िंदगी का एक नया फलसफ़ा देने वाले ओशो को नज़रअंदाज करना इतना आसान नहीं. अगर ओशो से जुड़ी जगहों और चीजों को सरकारी संरक्षण मिलता तो वे पर्यटन का एक बड़ा केंद्र बन सकती थीं, जिसकी ओर दुनिया के हर कोने से ओशो संन्यासी खिंचे चले आते, लेकिन ढुलमुल रवैये ने ओशो को उन्हीं की जन्मस्थली में बेगाना कर दिया है और गांव वालों को लाचार, जिनका दर्द ये है कि ओशो कभी उनके अपने थे और उनसे जुड़ी चीजें उनकी यादों में बसी थीं, लेकिन आज खुद को ओशो का समर्थक कहने वाले बिना प्रवेश शुल्क के किसी को ओशो आश्रम में प्रवेश भी नहीं करने देते.

undefined
Intro:Body:

मध्यप्रदेश में है वो गांव जहां ओशो ने लिया था जन्म, जानें आश्रम में अब क्या होता है?



रायसेन। अपने तीखे विचारों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आज से करीब पांच दशक पहले प्रसिद्धि हासिल करने वाले ओशो किसी पहचान के मोहताज नहीं है. मध्यप्रदेश के रायसेन जिले से निकलकर छा जाने वाले ओशो को मानने वाले दुनिया भर में हैं. उनके आश्रम भी दुनिया भर में हैं, लेकिन प्रदेश के जिस हिस्से से अध्यात्म की ये किरण रोशन हुई, वो आज भी अंधकार में है.



ओशो तीर्थ कहे जाने वाले रायसेन के कुचवाड़ा गांव में जब आप प्रवेश करते हैं तो आपको दो तस्वीरें दिखती हैं. एक तस्वीर में खूबसूरत ओशो आश्रम है तो दूसरी तस्वीर में गांव की गंदगी से भरी कच्ची गलियां, एक तस्वीर में करीने से सजे आश्रम के भवन दिख रहे हैं तो दूसरी तस्वीर में मिट्टी और फूस से बने कच्चे छोटे घर, एक तस्वीर में सारे दुख-दर्द भूलकर मस्ती में झूमते साधु वेशधारी लोग हैं तो दूसरी तस्वीर में तंगहाली में जिंदगी बसर कर रहे गृहस्थ. ये दोनों तस्वीरें हैं उस आध्यात्मिक गुरु की जन्मस्थली की जिसने ज़िंदगी को जश्न में बदलने की सीख दी थी.



जिस घर में ओशो का जन्म हुआ था, उसे खरीदकर उनके समर्थकों ने वहां आश्रम बना लिया है, लेकिन ओशो की जन्मभूमि के बाशिंदों का आश्रम में प्रवेश संभव नहीं. जिस शख्स के पास ओशो के नाना के इस मकान का मालिकाना हक था, उस शख्स से गांव का भला होने की बात कहकर ये मकान खरीद लिया गया, लेकिन गांव वालों को ये दर्द सालता है कि ओशो की जन्मस्थली में बने उनके आश्रम से ही गांव का ज़रा भी भला नहीं हुआ.





ओशो की विवादास्पद छवि की वजह से शायद शासन-प्रशासन उनसे जुड़ी चीजों से दूरी बनाकर रखता है, लेकिन ज़िंदगी का एक नया फलसफ़ा देने वाले ओशो को नज़रअंदाज करना इतना आसान नहीं. अगर ओशो से जुड़ी जगहों और चीजों को सरकारी संरक्षण मिलता तो वे पर्यटन का एक बड़ा केंद्र बन सकती थीं, जिसकी ओर दुनिया के हर कोने से ओशो संन्यासी खिंचे चले आते, लेकिन ढुलमुल रवैये ने ओशो को उन्हीं की जन्मस्थली में बेगाना कर दिया है और गांव वालों को लाचार, जिनका दर्द ये है कि ओशो कभी उनके अपने थे और उनसे जुड़ी चीजें उनकी यादों में बसी थीं, लेकिन आज खुद को ओशो का समर्थक कहने वाले बिना प्रवेश शुल्क के किसी को ओशो आश्रम में प्रवेश भी नहीं करने देते.


Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.