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Raisen School: प्राइवेट से बेहतर हो गया सरकारी स्कूल, मासाब की मेहनत से हुआ कायाकल्प, अब एडमीशन के लिए लगती है लाइन

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Published : Feb 21, 2023, 9:42 PM IST

Updated : Feb 21, 2023, 9:55 PM IST

भोपाल से कुछ किलोमीटर की दूरी पर रायसेन जिले में एक प्रायमरी स्कूल ऐसा है जहां की तस्वीर वहां के शिक्षकों ने बदलकर रख दी है. यह सरकारी स्कूल किसी प्रायवेट स्कूल से कम नहीं है.

raisen government school
रायसेन जिले का प्रायमरी स्कूल प्राइवेट स्कूल को देता है टक्कर

रायसेन जिले का प्रायमरी स्कूल प्राइवेट स्कूल को देता है टक्कर

भोपाल/रायसेन। यदि किसी पद पर आने के बाद पूरी जिम्मेदारी के साथ काम किया जाए तो समाज की तस्वीर बदलना तय है. यह उदारहण प्रस्तुत किया है भोपाल के करीब रायसेन जिले के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल के टीचर्स ने. उन्होंने सरकारी आस छोड़ समाज से मदद मांगी और आज स्कूल में पढ़ने वाले करीब प्रत्येक बच्चे के साथ दो यूनिफार्म, ड्यूल डेस्क समेत दूसरी सभी सामग्री मौजूद है. अब स्कूल का प्रत्येक बच्चा प्रतिदिन स्कूल आता है और उपस्थिति 100 फीसदी रहती है.

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रायसेन जिले का प्रायमरी स्कूल प्राइवेट स्कूल को देता है टक्कर

शिक्षकों ने बदली तस्वीर: राजधानी भोपाल से करीब रायसेन जिले में स्थित आदिवासी गांव निशानखेड़ा का प्राइमरी स्कूल हर किसी को आकर्षित करता है. साफ सुथरी कक्षाएं, टाई बेल्ट लगाकर पढ़ते विद्यार्थी, हरेक स्टूडेंट के पास मौजूद ड्यूल डेस्क यानी टेबिल कुर्सी, करीने से रखी हुई पानी की बाेतल, ग्रीन कैंपस, बाउंड्रीवॉल वाला स्कूल. यह किसी प्राइवेट प्राइमरी स्कूल की बात नहीं हो रही है, बल्कि एक गवर्मेंट प्राइमरी की स्कूल बात यहां हो रही है. जिसकी तस्वीर यहां पढ़ाने वाले 2 शिक्षकों ने बदलकर रख दी है.

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रायसेन जिले का प्रायमरी स्कूल प्राइवेट स्कूल को देता है टक्कर

शिक्षकों की मुहीम: अध्यापक संवर्ग के शिक्षक मनोज नागर और कंचन नागर नाम के दोनों शिक्षक पूरे समय बच्चों को पढ़ाने के साथ उन्हें बेहतर सुविधा मुहैया कराने में भी जुटे रहते हैं. दोनों ही इसके लिए समाज सेवियों से संपर्क में रहते हैं. उनके घर जाते हैं या फिर उन्हें स्कूल में होने वाले आयोजन में आमंत्रित करते हैं. इसी दौरान यह लोगों के सामने बच्चों के लिए सामान का सहयोग मांगते हैं. इनकी इसी आदत के कारण आज स्कूल के सभी बच्चों के पास 2 तरह की यूनिफार्म है. जो कि प्राइवेट में भी कम देखी जाती है. साफ सुथरे स्कूल बैग हैं. इस स्कूल के करीब बनी इंडस्ट्री एरिया के कुछ उद्योगपतियों से मिलकर स्कूल के लिए ड्यूल डेस्क (फर्नीचर) भी जुटा लिया.

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अनुशासन में छात्र: अनुशासन ऐसा कि जूतों से लेकर पानी की बोतल भी कतार में रहती है. स्कूल के बच्चों को सुविधाएं देने के साथ अनुशासन भी सिखाया गया है. इसके चलते प्रत्येक बच्चे के जूते स्कूल की सीढ़ियों पर क्रम से रखे मिलते हैं. यहां तक कि पानी की बाेतल भी लाइन में रखी हुई मिली. इसके अलावा इन बच्चों को फिजीकल एक्टिविटी भी कराई जाती है. योगा से लेकर इन्हें ढेर सारे खेलकूद यहां खिलाएं जाते हैं. कक्षाओं की दीवारों पर ढेर सारे चित्र बने हैं, जो बेहद सुंदर लगती हैं.

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ग्रीन कैंपस वाला इस क्षेत्र का एकमात्र स्कूल: निशानखेड़ा प्राथमिक शाला को दोनों टीचर्स ने मिलकर ग्रीन कैंपस में कवर्ड कर लिया है. टीचर कंचन नागर बताते हैं कि यह पूरा इलाका पठारी है और यहां पेड़ लगाना बेहद मुश्किल हाेता था. हमने पहले आसपास के ट्यूबवेल से पानी की व्यवस्था कराई और फिर मिट्‌टी लेकर आए. इसके बाद गहरे गड्‌ढे करके पेड़ लगाना शुरू किया. अब यहां पूरे कैंपस में पेड़ ही पेड़ हैं. इनकी सुरक्षा के लिए भी जनसहयोग से बाउंड्रीवॉल तैयार करवाई.

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भोपाल/रायसेन। यदि किसी पद पर आने के बाद पूरी जिम्मेदारी के साथ काम किया जाए तो समाज की तस्वीर बदलना तय है. यह उदारहण प्रस्तुत किया है भोपाल के करीब रायसेन जिले के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल के टीचर्स ने. उन्होंने सरकारी आस छोड़ समाज से मदद मांगी और आज स्कूल में पढ़ने वाले करीब प्रत्येक बच्चे के साथ दो यूनिफार्म, ड्यूल डेस्क समेत दूसरी सभी सामग्री मौजूद है. अब स्कूल का प्रत्येक बच्चा प्रतिदिन स्कूल आता है और उपस्थिति 100 फीसदी रहती है.

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शिक्षकों ने बदली तस्वीर: राजधानी भोपाल से करीब रायसेन जिले में स्थित आदिवासी गांव निशानखेड़ा का प्राइमरी स्कूल हर किसी को आकर्षित करता है. साफ सुथरी कक्षाएं, टाई बेल्ट लगाकर पढ़ते विद्यार्थी, हरेक स्टूडेंट के पास मौजूद ड्यूल डेस्क यानी टेबिल कुर्सी, करीने से रखी हुई पानी की बाेतल, ग्रीन कैंपस, बाउंड्रीवॉल वाला स्कूल. यह किसी प्राइवेट प्राइमरी स्कूल की बात नहीं हो रही है, बल्कि एक गवर्मेंट प्राइमरी की स्कूल बात यहां हो रही है. जिसकी तस्वीर यहां पढ़ाने वाले 2 शिक्षकों ने बदलकर रख दी है.

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शिक्षकों की मुहीम: अध्यापक संवर्ग के शिक्षक मनोज नागर और कंचन नागर नाम के दोनों शिक्षक पूरे समय बच्चों को पढ़ाने के साथ उन्हें बेहतर सुविधा मुहैया कराने में भी जुटे रहते हैं. दोनों ही इसके लिए समाज सेवियों से संपर्क में रहते हैं. उनके घर जाते हैं या फिर उन्हें स्कूल में होने वाले आयोजन में आमंत्रित करते हैं. इसी दौरान यह लोगों के सामने बच्चों के लिए सामान का सहयोग मांगते हैं. इनकी इसी आदत के कारण आज स्कूल के सभी बच्चों के पास 2 तरह की यूनिफार्म है. जो कि प्राइवेट में भी कम देखी जाती है. साफ सुथरे स्कूल बैग हैं. इस स्कूल के करीब बनी इंडस्ट्री एरिया के कुछ उद्योगपतियों से मिलकर स्कूल के लिए ड्यूल डेस्क (फर्नीचर) भी जुटा लिया.

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अनुशासन में छात्र: अनुशासन ऐसा कि जूतों से लेकर पानी की बोतल भी कतार में रहती है. स्कूल के बच्चों को सुविधाएं देने के साथ अनुशासन भी सिखाया गया है. इसके चलते प्रत्येक बच्चे के जूते स्कूल की सीढ़ियों पर क्रम से रखे मिलते हैं. यहां तक कि पानी की बाेतल भी लाइन में रखी हुई मिली. इसके अलावा इन बच्चों को फिजीकल एक्टिविटी भी कराई जाती है. योगा से लेकर इन्हें ढेर सारे खेलकूद यहां खिलाएं जाते हैं. कक्षाओं की दीवारों पर ढेर सारे चित्र बने हैं, जो बेहद सुंदर लगती हैं.

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Last Updated : Feb 21, 2023, 9:55 PM IST
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