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'हाथों में किताबों की बजाय ईटों के सांचे', विकास यात्रा के बीच जानें सरकार के दावों की असली हकीकत - रायसेन ईंट मजदूर कर रहे समस्याओं का सामना

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और रायसेन के मध्य में सैकड़ों की संख्या मिट्टी से ईट बनाने वाले भट्टे और चिमनिया हैं. यहां पर हजारों की संख्या में मजदूर अपने परिवारों के साथ मिट्टी से ईट बनाने का काम करते हैं. इन परिवारों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

raisen bricklayer face many problems
रायसेन ईट के भट्टों में काम करने वाले मजदूर योजनाओं से वंचित
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Published : Feb 5, 2023, 6:09 PM IST

रायसेन ईट के भट्टों में काम करने वाले मजदूर योजनाओं से वंचित

रायसेन। एमपी का रायसेन जिला अपनी ऐतिहासिक पहचान के साथ विश्व धरोहर, पर्यटन स्थलों हरे-भरे सागवान के जंगलो और इंडस्ट्रीयों के लिए जाना जाता है. पर यहां रोजगार की तलाश में आने वाले प्रवासियों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसपर किसी की नजर नहीं जाती. अपना घर बार छोड़कर रोजगार की तलाश में घर से 300-400 किलोमीटर का लंबा सफर करके यह प्रवासी रायसेन में रोजगार की तलाश में आते हैं. ETV BHARAT ने इन कामगारों से बात की जिन्हे कई मुसीबतों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

मजदूरी में लगा पूरा परिवार: ललितपुर के दूरदराज में बसें हुए गांव नैनासोई से आया हुआ राजेश का परिवार का एक छोटा सा परिवार है जिसमे राजेश और उसकी पत्नी सहित 3 बच्चे भी हैं. राजेश रायसेन शहर से चंद किलोमीटर दूर भोपाल रोड किनारे बसें हुए सादलतपुर की ईट चिमनी पर मिट्टी के लोंदे बनाने का काम करते हैं. राजेश की पत्नी राजेश द्वारा बनाये गाये लोंदो को ईट का आकार देने का काम करती हैं. इस काम में उनके छोटे बच्चे भी सहयोग करते हैं. काम के बदले राजेश के पूरे परिवार को मेहनताना मिलता है पर मेहनताना इतना नहीं मिलता की राजेश अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा दिला सके.

मूलभूत जरूरतें भी नहीं हो रहीं पूरी: राजेश की पत्नी नेहा चाहती हैं कि उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले पर वह मजबूर हैं घर की स्थिति और आय का अन्य कोई स्रोत ना होने के कारण नेहा-राजेश का पूरा परिवार मजदूरी करने को मजबूर है. ललितपुर में शायद इन्हें शासकीय योजनाओं का लाभ और रोजगार की बेहतर सुविधा ना होने के कारण घर से इतनी दूर मजदूरी करने के लिए यह परिवार मजबूर है. इस परिवार को कार्यस्थल पर ना बेहतर सुविधाएं हैं ना ही शौचालय जैसी मूलभूत जरूरतों को पूरा करने की स्थिति, खुले में ही इस परिवार को सौंच के लिए जाना पड़ता है. खेलने की उम्र में राजेश की छोटी बच्ची परिवार के साथ यहां रहती है.

अनपढ़ रहे अब बच्चे भी शिक्षा से वंचित: टीकमगढ़ से आए हुए मुकेश भी राजेश की ही तरह अपने परिवार के साथ ईट भट्टों पर ईट बनाने का काम करते हैं. मुकेश ने कभी शिक्षा ग्रहण नहीं की अब पेट भरने के लिए अपनी बीवी और बच्चो के साथ जोखिम वाला काम करने को मजबूर हैं. मुकेश की पत्नी क्रांति बताती हैं कि वह पहले यह काम नहीं किया करती थीं शादी के बाद उन्हें यह काम करना पड़ रहा है. वह पढ़ी-लिखी नहीं है और इसके सिवा उन्हें और कोई काम नहीं आता, बच्चों को पढ़ाने के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन भी मौजूद नहीं है. वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहती हैं पर मजबूर है परिवार का पेट जो पालना है.

नए आयाम स्थापित करेगी विकास यात्रा, गरीबों और जनता के कल्याण के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगे- CM शिवराज

संचालक ने बताई समस्या: ईट चिमनी का संचालन कर रहे मेहताब ने बताया कि दूर-दराज के इलाकों से रोजगार की तलाश में आने वाले इन लोगों को बुनियादी चीजों की उपलब्धता सहज रूप से नहीं मिलती हैं. परिवार को पालने के लिए इन लोगों को मजदूरी करना पड़ता है. अगर शासन की योजनाओं का लाभ इस गरीब तबके को मिल रहा होता तो शायद यह बच्चे भी पढ़ पाते. हम कोशिश करते हैं कि इन बच्चों को नजदीकी स्कूलों में शिक्षा उपलब्ध कराई जा सके पर कई परिवार राजी होते हैं तो कहीं नही.

आज भी कागजों पर सरकार की योजनाएं: प्रदेश सरकार हो या केंद्र सरकार गरीबों के उत्थान के वादे तो करती है पर भारत में आज भी गरीबी चरम पर है. निम्न तबके से आने वाले यह गरीब आए दिन मूलभूत सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं. गरीबी भी इस हद तक बढ़ी हुई है कि यह अपने छोटे बच्चों को शिक्षा जैसे मूल अधिकार से वंचित रखने को मजबूर हैं. कई परिवार अशिक्षित हैं और शायद उनकी अगली पीढ़ी भी अशिक्षित रहेगी क्योंकि योजनाओं का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर ऐसा नहीं होता जैसा कागजों पर सरकार दिखाया करती है.

रायसेन ईट के भट्टों में काम करने वाले मजदूर योजनाओं से वंचित

रायसेन। एमपी का रायसेन जिला अपनी ऐतिहासिक पहचान के साथ विश्व धरोहर, पर्यटन स्थलों हरे-भरे सागवान के जंगलो और इंडस्ट्रीयों के लिए जाना जाता है. पर यहां रोजगार की तलाश में आने वाले प्रवासियों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसपर किसी की नजर नहीं जाती. अपना घर बार छोड़कर रोजगार की तलाश में घर से 300-400 किलोमीटर का लंबा सफर करके यह प्रवासी रायसेन में रोजगार की तलाश में आते हैं. ETV BHARAT ने इन कामगारों से बात की जिन्हे कई मुसीबतों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

मजदूरी में लगा पूरा परिवार: ललितपुर के दूरदराज में बसें हुए गांव नैनासोई से आया हुआ राजेश का परिवार का एक छोटा सा परिवार है जिसमे राजेश और उसकी पत्नी सहित 3 बच्चे भी हैं. राजेश रायसेन शहर से चंद किलोमीटर दूर भोपाल रोड किनारे बसें हुए सादलतपुर की ईट चिमनी पर मिट्टी के लोंदे बनाने का काम करते हैं. राजेश की पत्नी राजेश द्वारा बनाये गाये लोंदो को ईट का आकार देने का काम करती हैं. इस काम में उनके छोटे बच्चे भी सहयोग करते हैं. काम के बदले राजेश के पूरे परिवार को मेहनताना मिलता है पर मेहनताना इतना नहीं मिलता की राजेश अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा दिला सके.

मूलभूत जरूरतें भी नहीं हो रहीं पूरी: राजेश की पत्नी नेहा चाहती हैं कि उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले पर वह मजबूर हैं घर की स्थिति और आय का अन्य कोई स्रोत ना होने के कारण नेहा-राजेश का पूरा परिवार मजदूरी करने को मजबूर है. ललितपुर में शायद इन्हें शासकीय योजनाओं का लाभ और रोजगार की बेहतर सुविधा ना होने के कारण घर से इतनी दूर मजदूरी करने के लिए यह परिवार मजबूर है. इस परिवार को कार्यस्थल पर ना बेहतर सुविधाएं हैं ना ही शौचालय जैसी मूलभूत जरूरतों को पूरा करने की स्थिति, खुले में ही इस परिवार को सौंच के लिए जाना पड़ता है. खेलने की उम्र में राजेश की छोटी बच्ची परिवार के साथ यहां रहती है.

अनपढ़ रहे अब बच्चे भी शिक्षा से वंचित: टीकमगढ़ से आए हुए मुकेश भी राजेश की ही तरह अपने परिवार के साथ ईट भट्टों पर ईट बनाने का काम करते हैं. मुकेश ने कभी शिक्षा ग्रहण नहीं की अब पेट भरने के लिए अपनी बीवी और बच्चो के साथ जोखिम वाला काम करने को मजबूर हैं. मुकेश की पत्नी क्रांति बताती हैं कि वह पहले यह काम नहीं किया करती थीं शादी के बाद उन्हें यह काम करना पड़ रहा है. वह पढ़ी-लिखी नहीं है और इसके सिवा उन्हें और कोई काम नहीं आता, बच्चों को पढ़ाने के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन भी मौजूद नहीं है. वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहती हैं पर मजबूर है परिवार का पेट जो पालना है.

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संचालक ने बताई समस्या: ईट चिमनी का संचालन कर रहे मेहताब ने बताया कि दूर-दराज के इलाकों से रोजगार की तलाश में आने वाले इन लोगों को बुनियादी चीजों की उपलब्धता सहज रूप से नहीं मिलती हैं. परिवार को पालने के लिए इन लोगों को मजदूरी करना पड़ता है. अगर शासन की योजनाओं का लाभ इस गरीब तबके को मिल रहा होता तो शायद यह बच्चे भी पढ़ पाते. हम कोशिश करते हैं कि इन बच्चों को नजदीकी स्कूलों में शिक्षा उपलब्ध कराई जा सके पर कई परिवार राजी होते हैं तो कहीं नही.

आज भी कागजों पर सरकार की योजनाएं: प्रदेश सरकार हो या केंद्र सरकार गरीबों के उत्थान के वादे तो करती है पर भारत में आज भी गरीबी चरम पर है. निम्न तबके से आने वाले यह गरीब आए दिन मूलभूत सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं. गरीबी भी इस हद तक बढ़ी हुई है कि यह अपने छोटे बच्चों को शिक्षा जैसे मूल अधिकार से वंचित रखने को मजबूर हैं. कई परिवार अशिक्षित हैं और शायद उनकी अगली पीढ़ी भी अशिक्षित रहेगी क्योंकि योजनाओं का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर ऐसा नहीं होता जैसा कागजों पर सरकार दिखाया करती है.

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