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Ramadan Mubarak 2023: रायसेन की अनोखी परंपरा, तोप की गूंज से होती है इफ्तार और सेहरी - रायसेन रमजान की तोप

मध्यप्रदेश का रायसेन ज़िला रमज़ान के दौरान आज भी एक अनूठी परंपरा जारी रखे हुए है. यहां आज भी रमज़ान में इफ़्तार और सेहरी तोप के गोले की गूंज से शुरू और खत्म होती है. इसका इस्तेमाल केवल रमजान के महीने में किया जाता है. यह परंपरा 300 साल पहले से चली आ रही है जब सेहरी और इफ्तारी की सूचना देने के लिए कोई साधन नहीं हुआ करते थे. नवाबी शासन में ही लोगों को इफ्तार और सेहरी की खबर देने के लिए तोप के गोले दागे जाने की शुरुआत हुई थी.

Unique tradition in ramadan
मध्यप्रदेश की अनोखी परंपरा
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Published : Mar 31, 2023, 9:42 PM IST

Updated : Mar 31, 2023, 10:26 PM IST

तोप की गूंज से होती है इफ्तार और सेहरी

रायसेन। रमजान का पाक महीना चल रहा है. जिसमें मुस्लिम समाज के लोग महीने भर रोजे रखकर खुदा की इबादत करते हैं. रमजान में सेहरी और इफ्तार का समय सबसे अहम होता है. आज के आधुनिक दौर में इफ्तार और सेहरी को लेकर अलर्ट करने के लिए लाउडस्पीकर और तरह-तरह के उपकरणों का इस्तेमाल किया जाने लगा है. लेकिन सालों पहले सेहरी और इफ्तार के वक्त को जानने का तरीका अलग और अनोखा था. तोप की आवाज सुनकर लोग सेहरी और इफ्तार करते थे. लेकिन भारत का ह्रदय कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में लगभग 300 सालों से यह अनूठी परंपरा चली आ रही है. जहां रमजान के पाक महीने की शुरुआत तोप के गोलों से होती है. सुन्दर दुर्ग पहाड़ी पर बसे रायसेन के किले पर रखी तोप की गूंज रमजान में इफ्तार और सेहरी की शुरुआत का इशारा करती है. जिसकी आवाज 15 से 20 किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है. जिसे सुन कर मुस्लिम समाज के लोग इफ्तार करते हैं.

300 सालों से जारी है परंपरा: बता दें कि पहले मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी रमजान के पाक महीने में तोप चलाई जाती थी, लेकिन वक्त के साथ यह चलन बंद हो गया. रायसेन में पहले बड़ी तोप का इस्तेमाल होता था, लेकिन किले को नुक़सान न पहुंचे इसलिए अब इसे दूसरी जगह से चलाया जाता है. बताया जाता है कि इस परंपरा की शुरुआत भोपाल की बेगमों ने 18वीं सदी में की थी. शहर काजी को इसकी देखरेख कि जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

रमजान में तोप और बारूद का लाइसेंस होता है जारी: रायसेन जिले में रमजान की रौनक देखते ही बंधती है. और इसे खास बनाती है यहां चलते वाली तोप. इस तोप में एक वक्त में कई ग्राम बारूद का उपयोग होता है. रायसेन में रमज़ान के दौरान चलने वाली तोप के लिए बक़ायदा लाइसेंस जारी किया जाता है. कलेक्टर एक महीने के लिए लाइसेंस जारी करते हैं. इसे चलाने का एक महीने का खर्ज करीब 50,000 रुपए आता है. नगर पालिक 5000 रुपए अपनी तरफ से देता है, बाकि के पैसों का इंतेजार चंदा करके किया जाता है. रमजान की समाप्ति पर ईद के बाद तोप की साफ-सफाई कर इसे सरकारी गोदाम में जमा कर दिया जाता है.

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इशारा मिलते ही दागा जाता है गोला: बता दें कि तोप को रोजाना रमजान में एक माह तक चलाने की ज़िम्मेदारी समाज के चुनिंदा लोगों की होती है. वे रोज़ा इफ़्तार और सेहरी ख़त्म होने से आधा घंटे पहले उस पहाड़ पर पहुंच जाते हैं, जहां तोप रखी है. इस दौरान तोप के अंदर बारूद भरी जाती है और मस्जिद से इफ्तार का इशारा मिलते ही गोला दाग दिया जाता है. गोली की आवाज सुनकर लोग इफ्तार करते हैं. यह सैकड़ों वर्ष पुरानी है, जिसे हिंदू मुस्लिम दोनों ही धर्म के लोग भाई चारे के साथ निभाते हैं.

तोप की गूंज से होती है इफ्तार और सेहरी

रायसेन। रमजान का पाक महीना चल रहा है. जिसमें मुस्लिम समाज के लोग महीने भर रोजे रखकर खुदा की इबादत करते हैं. रमजान में सेहरी और इफ्तार का समय सबसे अहम होता है. आज के आधुनिक दौर में इफ्तार और सेहरी को लेकर अलर्ट करने के लिए लाउडस्पीकर और तरह-तरह के उपकरणों का इस्तेमाल किया जाने लगा है. लेकिन सालों पहले सेहरी और इफ्तार के वक्त को जानने का तरीका अलग और अनोखा था. तोप की आवाज सुनकर लोग सेहरी और इफ्तार करते थे. लेकिन भारत का ह्रदय कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में लगभग 300 सालों से यह अनूठी परंपरा चली आ रही है. जहां रमजान के पाक महीने की शुरुआत तोप के गोलों से होती है. सुन्दर दुर्ग पहाड़ी पर बसे रायसेन के किले पर रखी तोप की गूंज रमजान में इफ्तार और सेहरी की शुरुआत का इशारा करती है. जिसकी आवाज 15 से 20 किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है. जिसे सुन कर मुस्लिम समाज के लोग इफ्तार करते हैं.

300 सालों से जारी है परंपरा: बता दें कि पहले मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भी रमजान के पाक महीने में तोप चलाई जाती थी, लेकिन वक्त के साथ यह चलन बंद हो गया. रायसेन में पहले बड़ी तोप का इस्तेमाल होता था, लेकिन किले को नुक़सान न पहुंचे इसलिए अब इसे दूसरी जगह से चलाया जाता है. बताया जाता है कि इस परंपरा की शुरुआत भोपाल की बेगमों ने 18वीं सदी में की थी. शहर काजी को इसकी देखरेख कि जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

रमजान में तोप और बारूद का लाइसेंस होता है जारी: रायसेन जिले में रमजान की रौनक देखते ही बंधती है. और इसे खास बनाती है यहां चलते वाली तोप. इस तोप में एक वक्त में कई ग्राम बारूद का उपयोग होता है. रायसेन में रमज़ान के दौरान चलने वाली तोप के लिए बक़ायदा लाइसेंस जारी किया जाता है. कलेक्टर एक महीने के लिए लाइसेंस जारी करते हैं. इसे चलाने का एक महीने का खर्ज करीब 50,000 रुपए आता है. नगर पालिक 5000 रुपए अपनी तरफ से देता है, बाकि के पैसों का इंतेजार चंदा करके किया जाता है. रमजान की समाप्ति पर ईद के बाद तोप की साफ-सफाई कर इसे सरकारी गोदाम में जमा कर दिया जाता है.

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इशारा मिलते ही दागा जाता है गोला: बता दें कि तोप को रोजाना रमजान में एक माह तक चलाने की ज़िम्मेदारी समाज के चुनिंदा लोगों की होती है. वे रोज़ा इफ़्तार और सेहरी ख़त्म होने से आधा घंटे पहले उस पहाड़ पर पहुंच जाते हैं, जहां तोप रखी है. इस दौरान तोप के अंदर बारूद भरी जाती है और मस्जिद से इफ्तार का इशारा मिलते ही गोला दाग दिया जाता है. गोली की आवाज सुनकर लोग इफ्तार करते हैं. यह सैकड़ों वर्ष पुरानी है, जिसे हिंदू मुस्लिम दोनों ही धर्म के लोग भाई चारे के साथ निभाते हैं.

Last Updated : Mar 31, 2023, 10:26 PM IST
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