रायसेन। जिले से 125 किलोमीटर दूर विंध्याचल पर्वत पर बसा ये जामवंत और भगदेई गांव बेहद प्राचीन है. ये गांव जामवंत और उनके भाई रीछड़मंल के इतिहास का गवाह है. शोधकर्ता कमल कुमार बताते है कि कथाओं और किवंदतियों के साथ इतिहास की उन अनमोल धरोहरों को ये पूरा आंचल समेटे हुए है और यहां आज भी कई ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद हैं.
जामवंत ने अपने हाथों से नग्न अवस्था में शिव मंदिर का निर्माण किया था. कहा जाता है कि जामवंत शिव मंदिर के शिखर पर कलश नहीं रखा पाये थे. जो 1000 फीट ऊंचाई पर है. जहां साल भर का पर्याप्त जल भरा रहता है. आज भी जामवंत के पद चिन्ह,घुटने के निशान,बैठने के निशान मौजूद हैं.
जामवंत ने त्रेता से लेकर द्वापर युग तक इसी स्थान पर निवास किया था. इसी स्थान पर उन्होंने स्यामंतक मणि के लिए भगवान श्री कृष्ण से युद्ध किया था. भगवान कृष्ण और जामवंत के बीच 27 दिन तक युद्ध चला. इस युद्ध में जामवंत हार गये और उन्होंने श्री कृष्ण को भेंट स्वरूप स्यामंतक मणि सौंप दी साथ ही अपनी पुत्री जामवंती के साथ उनका विवाह किया. इसी वजह से इस गांव को भगवान श्री कृष्ण की ससुराल भी कहा जाता है.
अध्यनकर्ता बताते है कि महाबली जामवंत त्रेता युग के रामायण काल में भी थे और महाभारतकाल में उनका भगवान श्रीकृष्ण के युद्ध से ये बात सिद्ध हो जाती है कि ये गांव द्वापर युग से पहले से है और जामवंत के नाम से ही इस गांव का नाम जामवंत पड़ा. जामवंत के खेलने के गिल्ली डंडा जो आज अलग-अलग तालाबों में गड़े हुए हैं. स्थानीय लोग बताते है कि जामवंत और भगदेई ऐतिहासिक स्थल हैं, जहां ऐसे मंदिर आज तक कहीं नहीं बनाया गये है. यहां दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते है.
माना जाता है कि यहां जामवंत नर्मदा नदी के किनारे रहे थे. ये पूरा इलाका नर्मदा कहा जाता है. यहां से नर्मदा नदी आठ से दस किलोमीटर दूर है. हालांकि रामायण और महाभारत काल का प्रमाणिक स्थल आज सरकार की अनदेखी का शिकार हो रहे है.