ETV Bharat / state

हाइवे पर मृत मिला किसान मित्र! तरक्की-खुशहाली का प्रतीक था दुर्लभ प्रजाति का ये OWL

सफेद-नारंगी रंग के दुर्लभ प्रजाति के उल्लू (Rare Species Owl) को जमीन पर मृत पड़ा देख लोग हैरान रह गए, जो किसी वाहन की चपेट में आकर मौत की आगोश में समा गया था. बार्न प्रजाति के इस उल्लू की बड़ी डिमांड रहती है, ऐसा माना जाता है कि इससे घर तथा गांव में तरक्की, खुशहाली और उन्नति होती है. कर्कश आवाज वाले इस उल्लू को किसान मित्र के नाम से भी जाना जाता है.

rare species owl found dead
दुर्लभ प्रजाति का उल्लू
author img

By

Published : Nov 24, 2021, 9:12 AM IST

रायसेन। सुबह सुल्तानगंज से सिलवानी स्टेट हाइवे 15 पर बेरसला तिराहे के पास मृत मिले दुर्लभ प्रजाति के उल्लू (Rare Species Owl) की खूब चर्चा है, सफेद और नारंगी रंग के अनोखे उल्लू को वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के शेड्यूल तीन में स्थान दिया गया है. स्थानीय लोगों के मुताबिक किसी वाहन से टकराने के बाद ही उल्लू की मौत हुई है. वन्य अधिकारियों के अनुसार बार्न उल्लू की औसत आयु चार वर्ष होती है, ऐसे भी उदाहरण हैं, जिसमें बार्न उल्लू करीब 15 वर्ष तक जीवित रहे हैं, जबकि कैप्टिव ब्रीडिंग में बार्न उल्लू 20 वर्ष तक जीवित रह सकते हैं. प्राकृतिक अवस्था में जंगलों में 70 फीसद बार्न उल्लू की जन्म के प्रथम वर्ष में ही प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते मृत्यु हो जाती है.

Kaliadeh Palace dispute: केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर ग्रामीणों का रास्ता बंद कराने का आरोप

यह है इसकी मान्यताएं

देश के विभिन्न भागों में ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि बार्न उल्लू पवित्र (Rare Species Barn Owl) होता है, जिससे घर तथा गांव में तरक्की, खुशहाली और उन्नति होती है. स्वभाव से बार्न उल्लू बेहद शर्मीला और शांत होता है, इसकी आवाज सामान्य उल्लू के समान नहीं होती है, इसकी आवाज काफी कर्कश होती है. यह कृषक मित्र होने की वजह से रात में खलिहान में रुकता है. अनाज खाने के लिए आने वाले जंतुओं का शिकार करता है. यह खेत में लगी फसलों को कीट पंतगों से भी बचाता है. इस प्रजाति के उल्लू अक्सर जोड़े में ही रहते हैं. यह अक्सर सूखी जगह, पुराने मकानों, घर और खंडहर, पुराने किलों में पाया जाता है. ये पक्षी पीपल, बरगद, गूलर जैसे बड़े पेड़ों पर खोखले भाग में अपना घर बनाते हैं. बार्न उल्लू रात्रिचर होते हैं. इनका भोजन मुख्य रूप से चूहे, मूस्टी होते हैं. प्रति वर्ष चार से सात सफेद चिकने गोलाकार अंडे देते हैं. ऐसी स्थिति में नर ही भोजन का प्रबंध करता है और मादा अंडों को सुरक्षित रखने का कार्य करती है.

यह होती है विशेषता

बार्न प्रजाति के उल्लू को आम बोलचाल में खलिहान का उल्लू (Farmer Friend Rare Species Owl) भी कहा जाता है, टायटो अल्बा के रूप में भी जाना जाता है, इस प्रजाति के नाम से ही पता चलता है कि यह टिटोनिडी परिवार के अंतर्गत आता है. यह अब तक सबसे व्यापक रूप से पाया जाने वाला रात्रिचर उल्लू प्रजाति है और यह दुनिया में सबसे व्यापक पक्षी की प्रजातियों में से एक होने की प्रतिष्ठा भी रखता है. मुख्य विशेषता यह है कि इस उल्लू को अन्य प्रकार के उल्लुओं के बीच अंतर करता है, इसकी दिल के आकार की चेहरे की डिस्क है, साथ ही इसके लंबे पैर, लंबे ताल और छोटी, अंधेरी आंखें हैं. इसके अलावा इसमें एक लंबी विंग अवधि होती है और एक छोटी पूंछ जो कुछ हद तक एक वर्ग की तरह दिखाई देती है, पक्षी के नाक के सदृश उसके बिल के ऊपर पंखों का एक रिज विकसित होता है, इस उल्लू की 20-30 उप-प्रजातियां हैं. कृंतक इस पक्षी के भोजन का प्राथमिक स्रोत है, 9.8-18 इंच पक्षी की औसत लंबाई है और इसका पंख 30-43 इंच होता है.

रायसेन। सुबह सुल्तानगंज से सिलवानी स्टेट हाइवे 15 पर बेरसला तिराहे के पास मृत मिले दुर्लभ प्रजाति के उल्लू (Rare Species Owl) की खूब चर्चा है, सफेद और नारंगी रंग के अनोखे उल्लू को वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के शेड्यूल तीन में स्थान दिया गया है. स्थानीय लोगों के मुताबिक किसी वाहन से टकराने के बाद ही उल्लू की मौत हुई है. वन्य अधिकारियों के अनुसार बार्न उल्लू की औसत आयु चार वर्ष होती है, ऐसे भी उदाहरण हैं, जिसमें बार्न उल्लू करीब 15 वर्ष तक जीवित रहे हैं, जबकि कैप्टिव ब्रीडिंग में बार्न उल्लू 20 वर्ष तक जीवित रह सकते हैं. प्राकृतिक अवस्था में जंगलों में 70 फीसद बार्न उल्लू की जन्म के प्रथम वर्ष में ही प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते मृत्यु हो जाती है.

Kaliadeh Palace dispute: केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर ग्रामीणों का रास्ता बंद कराने का आरोप

यह है इसकी मान्यताएं

देश के विभिन्न भागों में ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि बार्न उल्लू पवित्र (Rare Species Barn Owl) होता है, जिससे घर तथा गांव में तरक्की, खुशहाली और उन्नति होती है. स्वभाव से बार्न उल्लू बेहद शर्मीला और शांत होता है, इसकी आवाज सामान्य उल्लू के समान नहीं होती है, इसकी आवाज काफी कर्कश होती है. यह कृषक मित्र होने की वजह से रात में खलिहान में रुकता है. अनाज खाने के लिए आने वाले जंतुओं का शिकार करता है. यह खेत में लगी फसलों को कीट पंतगों से भी बचाता है. इस प्रजाति के उल्लू अक्सर जोड़े में ही रहते हैं. यह अक्सर सूखी जगह, पुराने मकानों, घर और खंडहर, पुराने किलों में पाया जाता है. ये पक्षी पीपल, बरगद, गूलर जैसे बड़े पेड़ों पर खोखले भाग में अपना घर बनाते हैं. बार्न उल्लू रात्रिचर होते हैं. इनका भोजन मुख्य रूप से चूहे, मूस्टी होते हैं. प्रति वर्ष चार से सात सफेद चिकने गोलाकार अंडे देते हैं. ऐसी स्थिति में नर ही भोजन का प्रबंध करता है और मादा अंडों को सुरक्षित रखने का कार्य करती है.

यह होती है विशेषता

बार्न प्रजाति के उल्लू को आम बोलचाल में खलिहान का उल्लू (Farmer Friend Rare Species Owl) भी कहा जाता है, टायटो अल्बा के रूप में भी जाना जाता है, इस प्रजाति के नाम से ही पता चलता है कि यह टिटोनिडी परिवार के अंतर्गत आता है. यह अब तक सबसे व्यापक रूप से पाया जाने वाला रात्रिचर उल्लू प्रजाति है और यह दुनिया में सबसे व्यापक पक्षी की प्रजातियों में से एक होने की प्रतिष्ठा भी रखता है. मुख्य विशेषता यह है कि इस उल्लू को अन्य प्रकार के उल्लुओं के बीच अंतर करता है, इसकी दिल के आकार की चेहरे की डिस्क है, साथ ही इसके लंबे पैर, लंबे ताल और छोटी, अंधेरी आंखें हैं. इसके अलावा इसमें एक लंबी विंग अवधि होती है और एक छोटी पूंछ जो कुछ हद तक एक वर्ग की तरह दिखाई देती है, पक्षी के नाक के सदृश उसके बिल के ऊपर पंखों का एक रिज विकसित होता है, इस उल्लू की 20-30 उप-प्रजातियां हैं. कृंतक इस पक्षी के भोजन का प्राथमिक स्रोत है, 9.8-18 इंच पक्षी की औसत लंबाई है और इसका पंख 30-43 इंच होता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.