पन्ना। एक समय बाघ विहिन हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व में अब बाघों का संसार अच्छा खासा बस गया है. इतना ही नहीं यहां 70 से भी अधिक बाघ हैं. भारत में शायद पन्ना टाइगर रिजर्व (Panna Tiger Reserve) ही एकमात्र ऐसा रिजर्व होगा जहां हर जींसपूल के बाघ पाये जाते होंगे. यहां अलग-अलग रिजर्व सेंटरो से बाघों को लाकर बसाया गया है.
पन्ना टाइगर रिजर्व में अधिकांश नर बाघ टी-3 की संतानें
पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ पुनर्स्थापना योजना को एक दशक से अधिक समय बीत चुका है. पेंच टाइगर रिजर्व से टी-3 नर बाघ को पन्ना लाया गया था, जिसने बाघ विहीन हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से गुलजार कर दिया. वर्तमान में टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 70 से अधिक पहुंच गई है, जिनमें अधिकांश नर बाघ टी-3 की संतान हैं.
2009 में शून्य थी बाघों की संख्या
पन्ना टाइगर रिजर्व में वर्ष 2009 में बाघों की संख्या शून्य हो गई थी. तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर आर श्रीनिवास मूर्ति ने बाघ पुनर्स्थापना की योजना बनाई. उसे क्रियान्वित करते हुए कान्हा टाइगर रिजर्व से एक बाघिन बांधवगढ़ से हेलीकाॅप्टर द्वारा लाई गई. बाघ टी-3 के वापस टाइगर रिजर्व में लौटने के बाद इतिहास बदल गया.
16 अप्रैल 2010 को दिया था शावकों को जन्म
वर्ष 2010 में बाघिन टी-1 ने अप्रैल में और टी-2 ने अक्टूबर में शावकों को जन्म दिया. अब रिजर्व में बाघों की संख्या 8 हो चुकी थी. टी-1 ने पहली बार 16 अप्रैल को शावकों को जन्म दिया था. यह दिन आज भी पन्ना टाइगर रिजर्व में जोर-शोर से मनाया जाता है. इसके बाद वन विभाग द्वारा 5 वर्षीय बाघों का एक जोड़ा भी कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से यहां लाया गया. साल 2013 में भी पेंच से एक बाघिन को पन्ना स्थानांतरित किया गया.
पन्ना में अभी हैं 70 बाघ
अनुमानतः पन्ना में अब तक 70 बाघ हो चुके हैं, जिनमें से कुछ विंध्य और चित्रकूट क्षेत्र के जंगलों में भी पहुंच चुके हैं. पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा का दावा है कि बाघों के पुनर्स्थापना में इतनी बड़ी सफलता दुनिया में किसी देश में देखने को नहीं मिलती है. एक बफर फाॅरेस्ट जोन में बाघों का प्रजनन एक बेहद श्रमसाध्य कार्य है, जिसमें हर कदम पर जोखिम शामिल है.
1994 में पन्ना को मिला था टाइगर रिजर्व का दर्जा
उत्तम कुमार ने बताया कि बाघ पुनर्स्थापना बहुत ही मुश्किल कार्य था. हमें कदम-कदम पर असफलताएं भी मिलीं, पर हमने हार नहीं मानी. एक के बाद एक प्रयोग करते रहे. स्थानीय लोगों को भी जागरूक करते रहे, जो परिणाम आये. वो आज सभी के सामने हैं. पन्ना के जंगलों में बाघ हुआ करते थे, इस वजह से साल 1994 में टाइगर रिजर्व का दर्जा भी मिला था. फिर एक समय ऐसा आया कि इस टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ नहीं बचा. यह साल 2009 था.
टाइगर रिजर्व के लिए पन्ना वासियों ने दी कुर्बानी
वन्य-प्राणी विशेषज्ञ और पन्ना के नागरिक यह स्थिति देख आश्चर्य चकित रह गए. बाघ पुनर्स्थापना योजना को शानदार कामयाबी इसलिए भी मिली कि पन्ना वासियों ने अपने खोए गौरव को फिर से हासिल करने के लिए हर तरह की कुर्बानी भी दी. जैसे पन्ना में आज तक किसी भी प्रकार की कोई भी औद्योगिक कारखाना नहीं लगाया गया.
576 वर्ग किमी में फैला है पन्ना टाइगर रिजर्व
क्षेत्र संचालक की माने तो जिस तरह से बाघों की संख्या पन्ना टाइगर रिजर्व में बढ़ रही हैं, उसके साथ कुछ चुनौतियां भी टाइगर रिजर्व प्रबंधन के सामने आई हैं. पन्ना टाइगर रिजर्व का कोर क्षेत्र 576 वर्ग किलो मीटर तथा बफर क्षेत्र 1021 वर्ग किलो मीटर में फैला हुआ है. विश्व प्रसिद्ध सांस्कृतिक पर्यटन स्थल खजुराहो से इसका पर्यटन प्रवेश द्वार मडला महज 25 किलोमीटर दूर है.
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पन्ना टाइगर रिजर्व में जिस प्रकार से बाघों की संख्या में इजाफा हो रहा है, उस हिसाब से कर्मचारी और संसाधनों की कमी भी टाइगर रिजर्व प्रबंधन के सामने आ रही है. क्षेत्र संचालक की माने तो वर्ष 2009 से अभी तक लगभग 18 बाघों की मृत्यु हो चुकी है.