नीमच। चुनावी साल में जनता महंगाई से कराह रही है. रोजगार के अवसर और बढ़ती महंगाई के बीच असमानता ने लोगों का जीवन दुभर कर दिया है. नीमच के करीब डेढ़ लाख परिवारों को रोटी, कपड़ा और मकान के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. इस कारण परिवारों में कलह बढ़ रहे हैं, वहीं सरकार के खिलाफ आक्रोश पनप रहा है. अनुमान लगाया जा रहा है कि महंगाई से त्रस्त 3.65 लाख मतदाताओं का आक्रोश चुनाव में छलका तो भाजपा के लिए खतरे की घंटी बज जाएगी. बता दें कि जिले की विधानसभा सीटों पर अपवाद छोड़ कर औसतन 15 हजार मतों से हार अथवा जीत का अंतर बीते चुनावों में रहा है. ऐसे में परेशान मतदाताओं का एक चौथाई भी परिवर्तन की मानसिकता से मतदान कर दें, तो ये नेताओं के लिए भारी पड़ सकता है.
सरकार की योजनाएं ऊंट के मुंह में जीरा के समानः देखा गया है कि बीत दो-तीन वर्षों में जरूरी चीजों की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. महंगाई इस समय उच्चतम स्तर पर है, जबकि बेरोजगारी की दर भी बढ़ी हुई है. इस कारण जिले की 1.50 लाख परिवार रोटी, कपड़ा और मकान के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वहीं सरकार की ओर से चलाई जा रही फ्री राशन और अन्य योजनाएं महंगाई की तुलना में ऊंट के मुंह में जीरा के समान मददगार साबित हो रही है.
खेती पर निर्भर परिवारों के समक्ष तंगहालीः नीमच के किसान रामलाल प्रजापति ने बताया कि सरकार भले ही गरीब, बहनों, बेटियों और किसानों के लिए खजाना खोलने का दावा कर रही है, लेकिन हकीकत यह है कि जनता को फ्री की योजनाओं को देने की बजाए उपलब्ध रोजगार और महंगाई के बीच असमानता की दरकार है. उन्होंने बताया कि कृषि से जितना मुनाफा हो रहा है, वे भी कम है. इससे भी परिवार का खर्चा नहीं चल पा रहा है. किसान ने कहा कि खेती पर निर्भर परिवारों के समक्ष भुखमरी और तंगहाली की स्थिति है.
असमाना खेती से किसान बर्बादः किसान नेता मुकेश शर्मा बताते हैं कि बीस वर्ष पहले प्रति हैक्टेयर किसान दो लाख रुपये की फसल कमा लेता था, जिसका मुनाफा 90 हजार रुपये से एक लाख रुपये होता था, लेकिन अब प्रति हेक्टेयर किसान एक लाख रुपये की फसल कमा पाता है, जबकि लागत बढ़ने से खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है. उन्होंने बताया कि 2003 में लहसुन 15,000 रुपये, प्याज 10,000 रुपये क्विंटल, अलसी 6000 रुपये, सोयाबीन 6000 रुपये, चना 10,000 रुपये क्विंटल के भाव बिका करते थे. अब वर्ष 2023 में लहसुन 500 से 5000 रुपये क्विंटल तक बिक रही है. प्याज 200 रुपये क्विंटल, अलसी 4200 रुपये क्विंटल, चना 5400 रुपये, सोयाबीन 5300 रुपये क्विंटल बिक रहे हैं, जबकि अक्टूबर में सरकार ने 8000 रुपये क्विंटल के भाव से किसानों को सोयाबीन के बीज वितरित किए थे. यह असमानता खेती पर निर्भर किसान एवं मजदूर को बर्बाद कर रही है.
जनता हुई बाजार के हवालेः वहीं, लोगों ने बताया कि जनता बाजार के हवाले है. वर्ष 2003 में खाद्य तेल का 15 किलो का डिब्बा 1150 से 1210 रुपये में मिलता था. उस समय सोयाबीन 6000 रुपये और रायड़ा 6400 रुपये क्विंटल हुआ करता था. लेकिन अब 2023 में सोयाबीन 5300 रुपये और रायड़ा 4500 रुपये क्विंटल है. फिर भी खाद्य तेल 15 किलो का डिब्बा 2200 से 2300 रुपये में उपलब्ध हो पा रहा है. महंगाई को कंट्रोल नहीं किया गया और कच्चे माल यानी कृषि उपज के भाव कम कर दिए गए.
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कम आय वाले परिवारों पर बढ़ा संकटः अभिभाषक संजय कुमार शर्मा ने बताया कि दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में आय असमानता देखी जा रही है. भारत में शीर्ष 10 फीसदी और 1 फीसदी कुल राष्ट्रीय आय का 57 फीसदी और 22 फीसदी हिस्सा रखते हैं. लोगों की मूलभूत आवश्यकता को लेकर ज्यादातर भारतीय संघर्ष कर रहे हैं. हाल के समय में ज्यादातर चीजों के दाम में इजाफा देखा जा रहा है. इस कारण कम आय वाले परिवारों को आवश्यक सामानों को खरीदने में भी समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
- जिले की कुल आबादी:- 9,66,826
- जिले में कुल मतदाता:- 5,60,661
- कृषि पर निर्भर परिवार:-1,50,000
- कृषि पर निर्भर मतदाता:- 3,65,000