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अरहर बुवाई की एडवांस तकनीक का दिया गया प्रशिक्षण, सोशल डिस्टेंसिंग का भी रखा गया ख्याल - गोटेगांव

गोटेगांव विकासखंड के सिवनीबंधा और भामा गांव में अरहर बुवाई की उन्नत तकनीक का प्रशिक्षण दिया गया. इस कार्यक्रम का आयोजन कृषि विज्ञान केन्द्र नरसिंहपुर के तत्वावधान में किया गया. इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ख्याल रखा गया. पढ़िए पूरी खबर...

Training in advanced technique of pigeonpea sowing
Training in advanced technique of pigeonpea sowing
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Published : Jun 28, 2020, 4:27 PM IST

नरसिंहपुर। गोटेगांव के सिवनीबंधा और भामा गांव में अरहर की फसल बुवाई की उन्नत तकनीक का प्रशिक्षण दिया गया. इस कार्यक्रम का आयोजन कृषि विज्ञान केन्द्र नरसिंहपुर के तत्वावधान में किया गया. इस दौरान यहां समूह/क्लस्टर को दलहन प्रदर्शन के अंतर्गत अरहर की उन्नत किस्म, राजेश्वरी का 10 किलोग्राम बीज, मृदा उपचार के लिए एक किलोग्राम जैव उर्वरक, ट्राइकोडर्मा और बीज उपचार के लिए 200 ग्राम राइजोबियम वितरित किया गया.

Training in advanced technique of pigeonpea sowing
अरहर बुवाई की उन्नत तकनीक का दिया प्रशिक्षण
कृषि वैज्ञानिक डॉ. निधि वर्मा ने बताया कि अरहर की राजेश्वरी किस्म की फसल 135 से 150 दिन में तैयार हो जाती है. अच्छी पैदावार के लिए इसकी बुवाई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कर देना चाहिए. इस किस्म की औसत उपज 22 क्विंटल प्रति हेक्टर है. यह किस्म जल्दी पकने वाली है और उकठा रोग के प्रति सहनशील है. साथ ही इसके दाने भी बोल्ड हैं.

वहीं तकनीकी सहायक डॉ. विजय सिंह सूर्यवंशी ने किसानों को अरहर की बुवाई की उन्नत तकनीक रिज एवं फरों की जानकारी दी. उन्होंने उन्नत रेज्ड बैड तकनीक के बारे में बताया. इस पद्धति में सामान्य रूप से 2- 3 कतारों में बोवनी की जाती है. बेड के दोनों तरफ नालियां बनती हैं. रेज्ड बैड प्लांटर से बुवाई करने पर मेढ़ और बेड की चौड़ाई करीब 90 से 135 सेंटीमीटर, मेड़ से मेड़ की दूरी 50 से 60 सेंटीमीटर, कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 5 से 8 सेंटीमीटर रखी जाती है. रेज्ड बैड में बुवाई करने से अधिक वर्षा होने पर पानी नालियों से बाहर निकल जाता है. कम वर्षा होने पर भी नमी बनी रहती है. इस कारण से फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है.
कोविड- 19 संक्रमण से बचाव को दृष्टिगत रखते हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया. जिले में आये प्रवासी मजदूरों को रोजगार मुहैया कराने और खेती को लाभदायी बनाने के बारे में बताया गया.

नरसिंहपुर। गोटेगांव के सिवनीबंधा और भामा गांव में अरहर की फसल बुवाई की उन्नत तकनीक का प्रशिक्षण दिया गया. इस कार्यक्रम का आयोजन कृषि विज्ञान केन्द्र नरसिंहपुर के तत्वावधान में किया गया. इस दौरान यहां समूह/क्लस्टर को दलहन प्रदर्शन के अंतर्गत अरहर की उन्नत किस्म, राजेश्वरी का 10 किलोग्राम बीज, मृदा उपचार के लिए एक किलोग्राम जैव उर्वरक, ट्राइकोडर्मा और बीज उपचार के लिए 200 ग्राम राइजोबियम वितरित किया गया.

Training in advanced technique of pigeonpea sowing
अरहर बुवाई की उन्नत तकनीक का दिया प्रशिक्षण
कृषि वैज्ञानिक डॉ. निधि वर्मा ने बताया कि अरहर की राजेश्वरी किस्म की फसल 135 से 150 दिन में तैयार हो जाती है. अच्छी पैदावार के लिए इसकी बुवाई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कर देना चाहिए. इस किस्म की औसत उपज 22 क्विंटल प्रति हेक्टर है. यह किस्म जल्दी पकने वाली है और उकठा रोग के प्रति सहनशील है. साथ ही इसके दाने भी बोल्ड हैं.

वहीं तकनीकी सहायक डॉ. विजय सिंह सूर्यवंशी ने किसानों को अरहर की बुवाई की उन्नत तकनीक रिज एवं फरों की जानकारी दी. उन्होंने उन्नत रेज्ड बैड तकनीक के बारे में बताया. इस पद्धति में सामान्य रूप से 2- 3 कतारों में बोवनी की जाती है. बेड के दोनों तरफ नालियां बनती हैं. रेज्ड बैड प्लांटर से बुवाई करने पर मेढ़ और बेड की चौड़ाई करीब 90 से 135 सेंटीमीटर, मेड़ से मेड़ की दूरी 50 से 60 सेंटीमीटर, कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 5 से 8 सेंटीमीटर रखी जाती है. रेज्ड बैड में बुवाई करने से अधिक वर्षा होने पर पानी नालियों से बाहर निकल जाता है. कम वर्षा होने पर भी नमी बनी रहती है. इस कारण से फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है.
कोविड- 19 संक्रमण से बचाव को दृष्टिगत रखते हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया. जिले में आये प्रवासी मजदूरों को रोजगार मुहैया कराने और खेती को लाभदायी बनाने के बारे में बताया गया.

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