नरसिंहपुर। गाडरवारा विधानसभा सीट नरसिंहपुर की सबसे धनाढ्य विधानसभा है इस इलाके में उन्नत कृषि के साथ बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण भी हो रहा है. इसमें शासन की कुछ बड़ी परियोजनाएं शामिल है लेकर इस इलाके में रेत का अवैध उत्खनन और गरीब और अति गरीबों के लिए पिछड़ापन एक बड़ी समस्या है. इसके साथ ही नशा और जुआ सट्टा यह एक बड़ी चुनौती है. हालांकि यह सब मुद्दे चुनाव में कहीं पीछे छूट जाते हैं और यहां पर भी चुनाव भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी के नाम पर लड़ा जाएगा. मैदान में यही दोनों पार्टियां हैं.
एनटीपीसी ने किया विकसित: नरसिंहपुर की गाडरवारा जिले की एक महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है गाडरवारा नरसिंहपुर जिले का तेजी से विकास करता हुआ शहर है. इसकी वजह इस शहर के पास में बना हुआ एनटीपीसी का पावर प्रोजेक्ट है जिसे चीचली के पास बनाया गया है. इस पावर प्रोजेक्ट के आने के बाद इस विधानसभा क्षेत्र की पूरी तस्वीर बदल गई है. एनटीपीसी ने हजारों एकड़ जमीन पावर प्लांट बनाने के लिए किसानों से अधिग्रहित की है इसकी वजह से किसानों के पास बड़े पैमाने पर पैसा आया. इससे ना केवल इस पूरे इलाके की खेती के जमीन के दाम बढ़ गए बल्कि गाडरवारा शहर में भी तेजी से विकास दिखा.
गाडरवारा विधानसभा क्षेत्र में मतदाता: 2023 की मतदाता सूची के अनुसार गाडरवारा विधानसभा क्षेत्र में 106648 पुरुष मतदाता है और 97146 महिला मतदाता हैं और 6 थर्ड जेंडर मतदाता हैं इस तरह से इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 2 लाख 3 हजार 800 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकते हैं.
सिंधिया का विरोध: गाडरवारा में ज्योतिरादित्य सिंधिया का बड़ा विरोध है इसकी वजह एनटीपीसी के सोशल रिस्पांसिबिलिटी फंड के तहत बनने बाला इंजीनियरिंग कॉलेज है जो नियम से गाडरवारा में बनना था लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया इसे ग्वालियर लेकर चले गए.
दाल के लिए ब्रांडिंग काम नहीं आई: सामान्य तौर पर नरसिंहपुर के बाहर का आदमी गाडरवारा को उसकी दाल की वजह से जानता है गाडरवारा के आसपास बड़े पैमाने पर अरहर का उत्पादन होता है और गाडरवारा में दालों की कई बड़ी मिले हैं यहां से बड़े पैमाने पर प्रदेश और प्रदेश के बाहर भी डाले भेजी जाती है. लोगों का ऐसा मानना है कि गाडरवारा की दाल बहुत स्वादिष्ट होती है. अरहर दाल की वजह से कई किसानों को और फैक्ट्रियों में बड़े पैमाने पर मजदूरों को रोजगार मिला हुआ है.
सरकार ने गाडरवारा के मुख्य उत्पाद दाल को ब्रांड बनाने की कोशिश की थी लेकिन सरकारी कोशिश रंग नहीं ला पाई है. नरसापुर में गन्ना एक मुख्य फसल है और गाडरवारा में भी बड़े पैमाने पर गन्ना लगाया जाता है इसलिए यहां शुगर मिल भी काम कर रही हैं इसके साथ ही बरसात में इस इलाके में बड़े पैमाने पर धान का उत्पादन होता है इसकी वजह से गाडरवारा और साले चौका में अब चावल का उत्पादन भी शुरू हो गया है.
बड़े पैमाने पर रेत का कारोबार: गाडरवारा की पहचान यहीं खत्म नहीं होती जबलपुर और सागर के लिए गाडरवारा की पहचान शक्कर और दूधी नदी की रेत की वजह से जाना जाता है और गाडरवारा के आसपास के बाहुबली नेता बड़े पैमाने पर इस रेत का कारोबार करते हैं. इसी रेत के कारोबार पर कब्जे के लिए इस इलाके के विधानसभा चुनाव एक महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं. इसलिए गाडरवारा विधानसभा में जनहित के मुद्दों के साथ ही रेत की लड़ाई एक महत्वपूर्ण कड़ी है. गाडरवारा में रेलवे ब्रिज और बाईपास एक बड़ा मुद्दा है. जिस की मांग लंबे समय से यहां के लोग कर रहे हैं. इसके स्थानीय लोगों की बड़ी मांग कई एक्सप्रेस रेलगाड़ियों को रोकने की है ताकि आवागमन में लोगों को राहत मिल सके.
पिछले 3 विधानसभा चुनाव परिणाम: 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की साधना स्थापक ने बीजेपी के गोविंद सिंह को 6,103 वोटों से हराया. वहीं 2013 के चुनावों में वापसी करते हुए बीजेपी के गोविंद सिंह ने सुनीता पटेल को 25 हजार 313 वोटों से हराया.
2018 विधानसभा चुनाव परिणाम: 2018 में गौतम सिंह बीजेपी की ओर से चुनाव मैदान में थे उन्हें कांग्रेस की सुनीता पटेल ने 15,363 वोटों से हराया. गौतम सिंह को चुनाव में 63,979 वोट मिले जबकी सुनीता सिंह को 79,342 वोट मिले.
राजनीतिक समीकरण: गाडरवारा विधानसभा सीट में मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ही आमने-सामने हैं. 2013 के विधानसभा चुनाव में यहां भारतीय जनता पार्टी के गोविंद सिंह विधायक रहे हैं. 2018 में यह परिस्थिति बदल गई और गोविंद सिंह की जगह उनके लड़के गौतम सिंह भारतीय जनता पार्टी की ओर से चुनाव मैदान में थे लेकिन इन्हें कांग्रेस की सुनीता पटेल ने 15 हजार से अधिक वोटों से हरा दिया था. एक बार फिर इन्हीं दोनों उम्मीदवारों के बीच चुनाव होने की संभावना है.
कांग्रेस की ओर से मोना कौरव के नाम की भी चर्चा में है. मोना कौरव तेंदूखेड़ा विधानसभा के गांव की हैं लेकिन उन्होंने कम उम्र में जो नाम कमाया है उसकी वजह से उनका नाम भी गाडरवारा विधानसभा में प्रत्याशी के रूप में लिया जा रहा है. वही कांग्रेस नेता साधना स्थापक भी अपनी दावेदारी दिखा सकती हैं लेकिन सुनीता पटेल को एंटी इनकंबेंसी डीजे नहीं पड़ेगी इसलिए यहां भारतीय जनता पार्टी का पल्ला भारी नजर आ रहा है.
गाडरवारा में कितना विकास: गाडरवारा विधानसभा क्षेत्र का कचहरी इलाका संपन्न किसानों और व्यापारियों का है. ग्रामीण इलाकों में बड़े किसान तो संपन्न हैं लेकिन छोटे किसानों और किसान मजदूरों को गरीबी में अपना जीवन यापन करना पड़ रहा है. शासन की योजनाएं इस दूरदराज इलाके में अच्छे से काम नहीं कर पाती हैं. पहाड़ी इलाके में बसे हुए जनजाति समाज के लोगों के लिए विकास अभी भी दूर की कौड़ी है. अब देखना यह है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में दालों के लिए मशहूर गाडरवारा में किसकी दाल गलती है.
सट्टा जुआ और नशा: गाडरवारा विधानसभा क्षेत्र में कानून व्यवस्था भी एक बड़ी समस्या है यहां बड़े पैमाने पर जुआ और सट्टे का कारोबार है. लोग नशे के आदी हैं और यहां पर भी पाउडर के नाम से स्मैक भेजी जा रही है हालांकि गाडरवारा में एक एसडीएम और एसडीओपी की पोस्टिंग है लेकिन इसके बावजूद इस इलाके में नशे के कारोबारी और जुए सट्टे के कारोबारी बड़े पैमाने पर गैरकानूनी धंधे कर रहे हैं. इसके साथ ही चीचली साले चौका जैसे बड़े कस्बों में भी अस्पतालों में डॉक्टर नहीं है और स्कूलों में स्थाई शिक्षक नहीं है.