नरसिंहपुर। संस्कृत विश्व की दूसरी भाषाओं की जननी कही जाती है. पूरी दुनिया में संस्कृत सबसे शुद्ध भाषा मानी जाती है, लेकिन आज आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी इस धरोहर को भूलते जा रहे हैं. ऐसे में नरसिंहपुर जिले का मोहद गांव देश के लिए एक मिसाल बनकर उभर रहा है. यहां संस्कृत को जनसामान्य की भाषा बनाने की कोशिश की जा रही है और इसे पुनर्जीवित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.
आज हम आधुनिकता की चकाचौंध में भले ही अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे हैं, लेकिन मोहद ने अपनी प्राचीनतम भाषा संस्कृत को जीवित रखा है. यहां घर-घर में संस्कृत में ही बातचीत की जाती है. सबसे खास बात ये है कि यहां के ग्रामीण अपनी आगामी पीढ़ी को भी संस्कृतमयी करने के लिए इस भाषा का अध्ययन करा रहे हैं, ताकि भारत की भाषायी धरोहर को पुनर्जीवित किया जा सके. चाहे बुजुर्गों की चौपाल हो या घर में आपसी बातचीत या फिर राह चलते दुआ सलाम, सबकुछ संस्कृत में ही होता है.
ग्रामीणों के मुताबिक स्कूलों में अंग्रेजी भाषा को विशेष महत्व दिया जाता है और इसके लिए हिंदी को ही दरकिनार कर दिया जाता है. वहीं गांव के हर स्कूल में संस्कृत को सर्वोच्च भाषा मानकर उसका अध्ययन कराया जाता है और मंत्रोच्चारण के बाद ही यहां स्कूली शिक्षा की शुरुआत होती है.
आज संस्कृत भाषा इस गांव की पहचान बन गई है और सामान्य ज्ञान की पुस्तकों में भी इसका उल्लेख देखने को मिल जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि संस्कृत भाषा को जितना जटिल समझा जाता है, वो उतनी ही सरल है और धाराप्रवाह बोली जा सकती है. गांव का यही प्रयास है कि आने वाली पीढ़ी के नैतिक जीवन में आदर्श आचरण संहिता को अगर स्थापित करना है, तो वो संस्कृत भाषा के ज्ञान और आपसी बोलचाल से ही संभव है. संस्कृत से ही समाज को दिशा दी जा सकती है.
अपनी संस्कृति और विरासत को बचाने और विचारों में उत्कृष्टता लाने में मोहद गांव लोगों को नई दिशा देने का काम कर रही है. जरूरत है इस गांव के संदेश को समझने और उसे स्वीकार करने की, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी को अपनी इस प्राचीनतम भारतीय विरासत के रूप में रू-ब-रू करा सकें.