मुरैना। तत्कालीन करौली रियासत के राजा के यहां सरदार के पद पर काम करने वाले सबल सिंह गुर्जर के नाम पर बसे सबलगढ़ के प्राचीन दुर्ग कई राजवंशों की कहानी बयां करता है. सबसे पहले सबलगढ़ के दुर्ग को करौली नरेश के सरदार सबल सिंह गुर्जर द्वारा बनवाया गया. उसके बाद इस पर जाट राजा कक्षपघात राजाओं और सिंधिया रियासत का आधिपत्य रहा.
मुरैना जिले से 70 किलोमीटर दूर सबलगढ़ नगर है. आठवीं सदी से 12 वीं सदी के बीच इस क्षेत्र पर गुर्जर, प्रतिहार, चंदेल और कक्षपघात वंश के राजाओं ने शासन किया. मुगलों के आने से पूर्व ये क्षेत्र ऐसाह एवं ग्वालियर के तोमर राजाओं के अधीन रहा. अकबर के शासन काल में ये क्षेत्र आगरा सूबे के अंतर्गत मंडरायल सरकार के अधीन था. 17वीं सदी के अंतिम दशक में यहां नरवर के प्रधानमंत्री और सेनापति खंडेराव के नवल सिंह खंडेराव का शासन रहा. 18वीं सदी के आरंभ में ये सिकरवारों के अधीन था. सबलगढ़ को सबला गुर्जर ने बसाया था, लेकिन मौजूदा किले का निर्माण करौली के राजा गोपाल सिंह द्वारा कराया गया. सन 1750 ईसवीं में यूरोपियन यात्री ट्रीफन थ्रेलर यहां से होकर गुजरा उसने अपने यात्रा वृतांत में सबलगढ़ किले को एक मजबूत किला होने का उल्लेख किया है.
वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा इसे पुरातत्व विभाग के अधीन कर संरक्षित घोषित किया गया है. पर्यटन विभाग भी इसे पर्यटकों के लिए विकसित करने की बात कर रहा है, लेकिन जिस तरह सबलगढ़ का मजबूत दुर्ग खंडार होकर रह गया. ऐसे में यहां किसी का ध्यान नहीं है और ना ही उसे पर्यटन के क्षेत्र में विकसित करने के लिए यहां सुविधाएं जुटाई जा रही हैं. किले के नीचे बने विशाल तालाब में वर्ष भर पानी रहता है. यदि इसे पर्यटन की दृष्टि से डिवलप किया जाए तो यहां जल विहार भी पर्यटकों के लिए एक विशेष आकर्षण का केंद्र होगा.