मुरैना। शिक्षक संतोषी लाल शर्मा भले ही रिटायर हो गए हो लेकिन रिटायरमेंट के बाद भी संस्कृत, संस्कार और संस्कृति के लिए स्कूल जाकर छात्रों को पढ़ाते हैं साथ ही नशे के दुष्परिणामों से छात्रों को अवगत कराते हुए नशा मुक्ति का संकल्प भी दिला रहे हैं. वो 70 वर्ष की उम्र में भी अपना संस्कार रथ लेकर छात्रों के पढ़ाने जाते हैं.
कहीं खो न जाए संस्कृत, इसलिए रिटायरमेंट के बाद भी छात्रों को पढ़ाते हैं संस्कृत - teacher teaches sanskrit after retiremen
संस्कृत को लोकप्रिय बनाने के लिए रिटायर्ड शिक्षक संतोषी लाल शर्मा संस्कृत के व्याकरण को पहले सूत्रों में संकलित करके फिर उन्हें गीतों में पिरोकर छात्रों को पढ़ाते हैं.
रिटायरमेंट के बाद भी छात्रों को पढ़ाते हैं संस्कृत
मुरैना। शिक्षक संतोषी लाल शर्मा भले ही रिटायर हो गए हो लेकिन रिटायरमेंट के बाद भी संस्कृत, संस्कार और संस्कृति के लिए स्कूल जाकर छात्रों को पढ़ाते हैं साथ ही नशे के दुष्परिणामों से छात्रों को अवगत कराते हुए नशा मुक्ति का संकल्प भी दिला रहे हैं. वो 70 वर्ष की उम्र में भी अपना संस्कार रथ लेकर छात्रों के पढ़ाने जाते हैं.
Intro:सरकार ने शिक्षक संतोषी लाल शर्मा को भले ही रिटायर कर दिया हो लेकिन संतोषी लाल रिटायरमेंट के बाद सही संस्कार रक्त लेकर संस्कृत संस्कार और संस्कृति के लिए स्कूल स्कूल जाकर छात्रों में जाग्रति ला रहे हैं । साथी नशा के दुष्परिणामों से छात्रों को अवगत कराते हुए नशा मुक्ति का संकल्प भी दिला रहे हैं शिक्षक संतोषी लाल शर्मा ने सेवानिवृत्ति के बाद सन 2011 से अभी तक लगभग 575 से अधिक स्कूलों में अपने अनोखे तरीके से छात्रों को संस्कृत पढ़ाने के साथ-साथ संस्कृत के गुर भी सिखाए हैं लगभग 7000 छात्रों को नशा मुक्ति का संकल्प दिलाया चुके हैं संस्कृत के व्याकरण को पहले सूत्रों में संकलित किया फिर उन्हें गीतों में पिरोया और अब छात्रों के लिए संस्कृत भाषा को सरस बनाकर पढ़ा रहे हैं साथ ही संस्कृत से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए व्हाट्सएप पर हेल्पलाइन नंबर 900 95 25 657 जारी कर हर समय संस्कृत से जुड़ी सब किसी भी समस्या के समाधान के लिए तत्पर रहते हैं ।
Body:
संतोषी लाल शर्मा शिक्षकों कर शासकीय सेवा में लगभग 30 वर्ष संस्कृत पढ़ाई और मई सन 2011में सेवानिवृत्ति के बाद बढ़ते पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव और अंग्रेजी भाषा के प्रति लोगों के रुझान के दौर में गुमनाम होती संस्कृत को जीवंत करने का बीड़ा उठाया जब तक शासकीय सेवा में रहे तब तक अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए संस्कृत का बखूबी अध्ययन कराया और उसके बाद सेवानिवृत्ति के तत्काल बाद से ही विद्यालय विद्यालय जाकर संस्कृत की कक्षाएं लेना प्रारंभ कर दिया साथ ही आने वाली पीढ़ी यानी कि छात्रों को नशा के दुष्परिणामों से अवगत कराते हुए न केवल छात्र वर्ग के उनके परिजन और रिश्तेदारों को भी नशे की लत से दूर रखने की सलाह देते हुए 5000 से अधिक छात्रों से संकल्प पत्र भरवाए जा चुके हैं संतोषी लाल शर्मा ने अपने इस विधा को निरंतर जारी रखा है और अपने स्वयं के व्यय पर विद्यालय विद्यालय जाकर निशुल्क संस्कृत का अध्ययन कर आते हैं संस्कृत कैसे लोकप्रिय हो और छात्रों के लिए कैसे सरस्वत मधुर भाषा बने इसके लिए उन्होंने इसे गीतों का रूप भी दिया है व्याकरण को गीतों के माध्यम से न केवल सरल रूप से परिभाषित किया बल्कि छात्रों की दिल और दिमाग पर संस्कृत की छाप बनी रहे इसका निरंतर प्रयास किया
Conclusion:
मुरैना शहर के वार्ड क्रमांक 1 मुड़ियाखेरा में निवास करने वाले संतोषी लाल शर्मा लगभग 70 वर्ष की उम्र में भी अपना संस्कार रथ लेकर नियमित रूप से घर से निकलते हैं और विभिन्न विद्यालयों में जाकर संस्कृत की कक्षाएं लेते हुए अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं साथ ही समाज संस्कृत संस्कार और संस्कृति के प्रति सजग हो और उसे संजोए रखें इसके लिए उनके प्रयास आज समाज में सराहनीय नहीं बल्कि अनुकरणीय भी हैं ।
बाईट - सन्तोषीलाल शर्मा - सेवा निवृत्त संस्कृत शिक्षक निवासी मुड़ियाखेरा मुरैना
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संतोषी लाल शर्मा शिक्षकों कर शासकीय सेवा में लगभग 30 वर्ष संस्कृत पढ़ाई और मई सन 2011में सेवानिवृत्ति के बाद बढ़ते पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव और अंग्रेजी भाषा के प्रति लोगों के रुझान के दौर में गुमनाम होती संस्कृत को जीवंत करने का बीड़ा उठाया जब तक शासकीय सेवा में रहे तब तक अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए संस्कृत का बखूबी अध्ययन कराया और उसके बाद सेवानिवृत्ति के तत्काल बाद से ही विद्यालय विद्यालय जाकर संस्कृत की कक्षाएं लेना प्रारंभ कर दिया साथ ही आने वाली पीढ़ी यानी कि छात्रों को नशा के दुष्परिणामों से अवगत कराते हुए न केवल छात्र वर्ग के उनके परिजन और रिश्तेदारों को भी नशे की लत से दूर रखने की सलाह देते हुए 5000 से अधिक छात्रों से संकल्प पत्र भरवाए जा चुके हैं संतोषी लाल शर्मा ने अपने इस विधा को निरंतर जारी रखा है और अपने स्वयं के व्यय पर विद्यालय विद्यालय जाकर निशुल्क संस्कृत का अध्ययन कर आते हैं संस्कृत कैसे लोकप्रिय हो और छात्रों के लिए कैसे सरस्वत मधुर भाषा बने इसके लिए उन्होंने इसे गीतों का रूप भी दिया है व्याकरण को गीतों के माध्यम से न केवल सरल रूप से परिभाषित किया बल्कि छात्रों की दिल और दिमाग पर संस्कृत की छाप बनी रहे इसका निरंतर प्रयास किया
Conclusion:
मुरैना शहर के वार्ड क्रमांक 1 मुड़ियाखेरा में निवास करने वाले संतोषी लाल शर्मा लगभग 70 वर्ष की उम्र में भी अपना संस्कार रथ लेकर नियमित रूप से घर से निकलते हैं और विभिन्न विद्यालयों में जाकर संस्कृत की कक्षाएं लेते हुए अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं साथ ही समाज संस्कृत संस्कार और संस्कृति के प्रति सजग हो और उसे संजोए रखें इसके लिए उनके प्रयास आज समाज में सराहनीय नहीं बल्कि अनुकरणीय भी हैं ।
बाईट - सन्तोषीलाल शर्मा - सेवा निवृत्त संस्कृत शिक्षक निवासी मुड़ियाखेरा मुरैना
Last Updated : Jan 24, 2020, 12:28 PM IST