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64 योगिनी मंदिर: वास्तुकला का अद्भुत नमूना, तंत्र साधना से शिव होते थे प्रसन्न

मुरैना मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम मितावली में 300 फिट ऊंचाई वाली पहाड़ी पर स्थित वृत्ताकार से मंदिर है. जिसकी भीतरी सतह में 64 कच्छ बने हुए हैं और एक बरामदा भी है प्रत्येक कक्ष में 1-1 शिवलिंग और उनके साथ एक-एक योगिनी स्थापित थे और मंदिर के मध्य चौक में वृत्ताकार व समान आकृति में एक गर्भ ग्रह है जिसमें मुख्य शिवलिंग और योगिनी स्थापित है.

64 Yogini temple
64 योगिनी मंदिर
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Published : Jul 20, 2020, 3:24 AM IST

Updated : Jul 23, 2020, 2:22 PM IST

मुरैना। वास्तु शास्त्र की दृष्टि से बना यह शिव मंदिर दुनिया के अद्भुत मंदिरों में से एक माना जाता है. यह शिव साधना का प्राचीन केंद्र है. इसके अलावा यहां तंत्र क्रिया के माध्यम से शिव की आराधना कर शक्तियां हासिल करने का महत्वपूर्ण स्थान आदि काल से रहा है. सावन के महीने में यहां से आराधना करने से और तंत्र किया करने से सिद्धिया अति शीघ्र मिलती है. मुरैना के मितावली स्थित 64 योगिनी मंदिर या 71 महादेव मंदिर के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध है. स्थान तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र ही नही विश्व विद्यालय माना जाता है.

मुरैना का 64 योगिनी मंदिर

शिव उपासक का स्थान

मुरैना मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम मितावली में 300 फिट ऊंचाई वाली पहाड़ी पर स्थित वृत्ताकार से मंदिर है. जिसकी भीतरी सतह में 64 कच्छ बने हुए हैं और एक बरामदा भी है प्रत्येक कक्ष में 1-1 शिवलिंग और उनके साथ एक-एक योगिनी स्थापित थे और मंदिर के मध्य चौक में वृत्ताकार व समान आकृति में एक गर्भ ग्रह है जिसमें मुख्य शिवलिंग और योगिनी स्थापित है.

आदिकाल में भगवान शिव को प्रसन्न कर सिद्धियां प्राप्त करने के लिए यहां सामूहिक रूप से तंत्र प्रिया की जाती थी प्रत्येक कक्ष या परकोटे में एक साधना करने वाला बैठा करता था और इस तरह 64 कक्षा में एक साथ 64 लोग साधना के लिए बैठते थे. मध्य में बने गर्भ ग्रह में एक मुख्य आचार्य बैठकर तंत्र साधना के क्रिया को संपन्न कर आता था.

चोरी हो गई योगिनियों की मूर्ति

धीरे-धीरे कर इस शिव मंदिर से योगिनी या तो चोरी हो गई या फिर बनाएं अन्यत्र स्थापित कर दिया हो. अब इन कक्षा में सिर्फ शिवलिंग ही शेष रह गए हैं. जबकि मुख्य गर्भ ग्रह में आज भी बड़े शिवलिंग के साथ योगिनी स्थापित है और जहां नियमित रूप से पूजा आराधना होती है.

इक्तेश्वर महादेव मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से दुनिया में अद्भुत है यह अक्षांश और देशांतर रेखाओं के अनुरूप बनाया गया है. जिससे यहां ओम का उच्चारण करने से एक विशेष प्रकार की ना केवल आवाज का गुंजन होता है बल्कि उच्चारण करने वाले व्यक्ति के शरीर में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा का संचार होता है जिससे उसे स्वयं में शिव की शक्ति होने किया प्रमाण मिलता है. यही कारण है कि यहां तंत्र साधना में लोगों को जल्द ही सफलता मिलती थी.

64 योगिनी मंदिर का ऐतिहासिकता

11वीं शताब्दी से 13वी शताब्दी के बीच बने 64 योगिनी मंदिर को वर्तमान में पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित तो किया गया है और पर्यटन की दृष्टि से यहां सुविधाओं का विकास भी करने का दावा किया जा रहा है लेकिन इस 64 योगिनी अथवा इक्तेश्वर महादेव मंदिर का धार्मिक महत्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा है.

कभी यह दुनिया का तांत्रिक विश्वविद्यालय माना जाता था जो आज सिर्फ अतीत के पन्नों में सिमट कर रह गया है. शासन प्रशासन और पर्यटन विभाग द्वारा भी आने वाले पर्यटकों को इसके धार्मिक महत्व को नहीं बताया जाता और यह यह एक ऐतिहासिक इमारत के रूप में बनी रह गई है.

जब मंदिर में पहुंचते थे ब्रिटिश आर्किटेक्ट लुटियन

इस शिव मंदिर के नक्शे पर ब्रिटिश शासन काल में आए आर्किटेक्ट और वास्तुशास्त्री लुटियन द्वारा इसी के नक्शे के आधार पर भारतीय संसद के भवन अथवा लोकतंत्र के मंदिर का निर्माण कराया था.

मुरैना। वास्तु शास्त्र की दृष्टि से बना यह शिव मंदिर दुनिया के अद्भुत मंदिरों में से एक माना जाता है. यह शिव साधना का प्राचीन केंद्र है. इसके अलावा यहां तंत्र क्रिया के माध्यम से शिव की आराधना कर शक्तियां हासिल करने का महत्वपूर्ण स्थान आदि काल से रहा है. सावन के महीने में यहां से आराधना करने से और तंत्र किया करने से सिद्धिया अति शीघ्र मिलती है. मुरैना के मितावली स्थित 64 योगिनी मंदिर या 71 महादेव मंदिर के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध है. स्थान तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र ही नही विश्व विद्यालय माना जाता है.

मुरैना का 64 योगिनी मंदिर

शिव उपासक का स्थान

मुरैना मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम मितावली में 300 फिट ऊंचाई वाली पहाड़ी पर स्थित वृत्ताकार से मंदिर है. जिसकी भीतरी सतह में 64 कच्छ बने हुए हैं और एक बरामदा भी है प्रत्येक कक्ष में 1-1 शिवलिंग और उनके साथ एक-एक योगिनी स्थापित थे और मंदिर के मध्य चौक में वृत्ताकार व समान आकृति में एक गर्भ ग्रह है जिसमें मुख्य शिवलिंग और योगिनी स्थापित है.

आदिकाल में भगवान शिव को प्रसन्न कर सिद्धियां प्राप्त करने के लिए यहां सामूहिक रूप से तंत्र प्रिया की जाती थी प्रत्येक कक्ष या परकोटे में एक साधना करने वाला बैठा करता था और इस तरह 64 कक्षा में एक साथ 64 लोग साधना के लिए बैठते थे. मध्य में बने गर्भ ग्रह में एक मुख्य आचार्य बैठकर तंत्र साधना के क्रिया को संपन्न कर आता था.

चोरी हो गई योगिनियों की मूर्ति

धीरे-धीरे कर इस शिव मंदिर से योगिनी या तो चोरी हो गई या फिर बनाएं अन्यत्र स्थापित कर दिया हो. अब इन कक्षा में सिर्फ शिवलिंग ही शेष रह गए हैं. जबकि मुख्य गर्भ ग्रह में आज भी बड़े शिवलिंग के साथ योगिनी स्थापित है और जहां नियमित रूप से पूजा आराधना होती है.

इक्तेश्वर महादेव मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से दुनिया में अद्भुत है यह अक्षांश और देशांतर रेखाओं के अनुरूप बनाया गया है. जिससे यहां ओम का उच्चारण करने से एक विशेष प्रकार की ना केवल आवाज का गुंजन होता है बल्कि उच्चारण करने वाले व्यक्ति के शरीर में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा का संचार होता है जिससे उसे स्वयं में शिव की शक्ति होने किया प्रमाण मिलता है. यही कारण है कि यहां तंत्र साधना में लोगों को जल्द ही सफलता मिलती थी.

64 योगिनी मंदिर का ऐतिहासिकता

11वीं शताब्दी से 13वी शताब्दी के बीच बने 64 योगिनी मंदिर को वर्तमान में पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित तो किया गया है और पर्यटन की दृष्टि से यहां सुविधाओं का विकास भी करने का दावा किया जा रहा है लेकिन इस 64 योगिनी अथवा इक्तेश्वर महादेव मंदिर का धार्मिक महत्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा है.

कभी यह दुनिया का तांत्रिक विश्वविद्यालय माना जाता था जो आज सिर्फ अतीत के पन्नों में सिमट कर रह गया है. शासन प्रशासन और पर्यटन विभाग द्वारा भी आने वाले पर्यटकों को इसके धार्मिक महत्व को नहीं बताया जाता और यह यह एक ऐतिहासिक इमारत के रूप में बनी रह गई है.

जब मंदिर में पहुंचते थे ब्रिटिश आर्किटेक्ट लुटियन

इस शिव मंदिर के नक्शे पर ब्रिटिश शासन काल में आए आर्किटेक्ट और वास्तुशास्त्री लुटियन द्वारा इसी के नक्शे के आधार पर भारतीय संसद के भवन अथवा लोकतंत्र के मंदिर का निर्माण कराया था.

Last Updated : Jul 23, 2020, 2:22 PM IST
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