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मुरैना लोकसभा सीट पर नरेंद्र सिंह तोमर की उम्मीदवारी से रोचक हुआ मुकाबला, जानें क्या हैं सियासी समीकरण

ग्वालियर अंचल की मुरैना लोकसभा सीट पिछले 28 साल से बीजेपी का गढ़ बनी हुई है. आगामी लोकसभा में बीजेपी ने अपने इस गढ़ से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पर दाव लगया है. नरेंद्र सिंह तोमर ने भी ग्वालियर और मुरैना सीट से बीजेपी की जीत का दावा किया है.

मुरैना लोकसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प
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Published : Mar 30, 2019, 3:11 PM IST

ग्वालियर। ग्वालियर अंचल की मुरैना लोकसभा सीट पिछले 28 साल से बीजेपी का गढ़बनी हुई है. साल 1991 के बाद से कांग्रेस को इस सीट से हमेशा शिकस्त ही मिली है. लेकिन, विधानसभा चुनाव में मुरैना जिले की 6 में से 6 सीट जीतने के बाद कांग्रेसका उत्साह बढ़ गया है. इसलिए कांग्रेस लोकसभा चुनाव में इस सीट पर जीत हासिल करने का दावा कर रही है.

बीजेपी ने कांग्रेस से अपने गढ़ को बचाने के लिए लोकसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को इस सीट से उतारा है. वहीं कांग्रेस बीजेपी के इस गढ़ को भेदने के लिए दमदार उम्मीदवार की तलाश कर रही है. इस सीट पर जीत हासिल करना केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के लिए आसान नहीं होगा. विधानसभा में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन, अपनों की नाराजगी और एट्रोसिटी एक्ट यह तीनों मसले बीजेपी की जीत की राह में रोड़ा बन सकते हैं.

मुरैना लोकसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प

मुरैना लोकसभा सीट के लिए नरेंद्र सिंह तोमर नए नहीं हैं, जहां नरेंद्र सिंह तोमर का पैतृक गांव आरोठी इसी लोकसभा में पड़ता है तो वहीं साल 2009 में उन्होंने इसी सीट से चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के रामनिवास रावत को लगभग एक लाख 29 हजार वोट से शिकस्त दी थी. इसके बाद नरेंद्र सिंह तोमर ने ग्वालियर का रुख किया, 2014 में मोदी लहर होने के बावजूद अनूप मिश्रा इस सीट से महज 29 हजार वोटों से ही जीत पाए थे.

कांग्रेस ने केंद्रिय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की सीट बदले जाने पर तंज कसा है. कांग्रेस का कहना है कि अभी तो वो मुरैना आए हैं. वो इतने डरे हुए हैं कि आने वाले समय में इस सीट को भी छोड़कर कहीं और चले जाएंगे. वहीं नरेंद्र सिंह तोमर का इस बारे में कहना है कि पार्टी ने निर्णय लिया है कि उन्हें मुरैना से लड़ना है. उन्होंने दावा किया है कि इस मुरैना और ग्वालियर लोकसभा सीट से बीजेपी की जीत पक्की है.

ग्वालियर। ग्वालियर अंचल की मुरैना लोकसभा सीट पिछले 28 साल से बीजेपी का गढ़बनी हुई है. साल 1991 के बाद से कांग्रेस को इस सीट से हमेशा शिकस्त ही मिली है. लेकिन, विधानसभा चुनाव में मुरैना जिले की 6 में से 6 सीट जीतने के बाद कांग्रेसका उत्साह बढ़ गया है. इसलिए कांग्रेस लोकसभा चुनाव में इस सीट पर जीत हासिल करने का दावा कर रही है.

बीजेपी ने कांग्रेस से अपने गढ़ को बचाने के लिए लोकसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को इस सीट से उतारा है. वहीं कांग्रेस बीजेपी के इस गढ़ को भेदने के लिए दमदार उम्मीदवार की तलाश कर रही है. इस सीट पर जीत हासिल करना केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के लिए आसान नहीं होगा. विधानसभा में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन, अपनों की नाराजगी और एट्रोसिटी एक्ट यह तीनों मसले बीजेपी की जीत की राह में रोड़ा बन सकते हैं.

मुरैना लोकसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प

मुरैना लोकसभा सीट के लिए नरेंद्र सिंह तोमर नए नहीं हैं, जहां नरेंद्र सिंह तोमर का पैतृक गांव आरोठी इसी लोकसभा में पड़ता है तो वहीं साल 2009 में उन्होंने इसी सीट से चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के रामनिवास रावत को लगभग एक लाख 29 हजार वोट से शिकस्त दी थी. इसके बाद नरेंद्र सिंह तोमर ने ग्वालियर का रुख किया, 2014 में मोदी लहर होने के बावजूद अनूप मिश्रा इस सीट से महज 29 हजार वोटों से ही जीत पाए थे.

कांग्रेस ने केंद्रिय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की सीट बदले जाने पर तंज कसा है. कांग्रेस का कहना है कि अभी तो वो मुरैना आए हैं. वो इतने डरे हुए हैं कि आने वाले समय में इस सीट को भी छोड़कर कहीं और चले जाएंगे. वहीं नरेंद्र सिंह तोमर का इस बारे में कहना है कि पार्टी ने निर्णय लिया है कि उन्हें मुरैना से लड़ना है. उन्होंने दावा किया है कि इस मुरैना और ग्वालियर लोकसभा सीट से बीजेपी की जीत पक्की है.

Intro:ग्वालियर- ग्वालियर अंचल की मुरैना लोकसभा सीट पिछले 28 साल से बीजेपी के लिए अजय गढ़ बनी हुई है साल 1991 के बाद से इस सीट पर कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ रही है लेकिन हाल के विधानसभा चुनाव में मुरैना जिले की 6 में से 6 सीट जीतने के बाद से कांग्रेश काफी उत्साहित है और वह इस बार जीत का दावा कर रही है हालांकि इस सीट पर बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को उतार कर अपना अजय गढ़ बचाने की कोशिश की है वहीं नरेंद्र सिंह तोमर की सीट से प्रत्याशी घोषित हो जाने से कांग्रे सभी इस मंथन में जुटी हुई है कि किस प्रत्याशी को मैदान में उतारा जाए जो भी पी का गढ़ बन चुकी इस सीट पर अपनी हार का सिलसिला तोड़ सके।


Body:लिहाजा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के लिए इस सीट पर जीत की राह आसान नहीं है एक तो कांग्रेस का विधानसभा में बेहतर प्रदर्शन होना और अपनों की नाराजगी और एस्ट्रोसिटी एक्ट यह तीनों मसले बीजेपी के लिए जीत की राह में रोड़ा बन सकती है। नरेंद्र सिंह मुरैना के लिए नए कंडिडेट नहीं है एक तो नरेंद्र सिंह तोमर का पैतृक गांव आरोठी इसी लोकसभा में पड़ता है और साल 2009 में नरेंद्र सिंह तोमर ने इसी सीट पर चुनाव लड़ा था तब नरेंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेस की रामनिवास रावत को लगभग एक लाख 29 हजार वोट से शिकस्त दी थी फिर अचानक नरेंद्र सिंह तोमर ग्वालियर रुख कर गए । जहां मोदी लहर होने के बावजूद भी महज 29000 वोटों से जीत पाए थे शायद पिछली जीत के अंतर और ग्वालियर में भितरघात की आशंका के चलते एक बार फिर मुरैना पहुंचे हैं। कांग्रेसी नरेंद्र सिंह तोमर की सीट बदले जाने पर सवाल उठा रही है कि जब नरेंद्र सिंह ने ग्वालियर में 10 हजार करोड़ के विकास कार्य कराए हैं फिर क्यों हार के डर से मुरैना भाग गये। यदि जन्म स्थान होने से मुरैना से मुंह है तो वह उसे छोड़कर क्यों आए थे। लिहाजा जनता सब समझती है इस बार जनता होने बार-बार सीट बदलने को लेकर जवाब मांगेगी । कांग्रेस का तो यहां तक दावा है जनता होने घर बैठा देगी ।वहीं नरेंद्र सिंह का कहना है कि पार्टी ने निर्णय लिया है कि उन्हें मुरैना से लड़ना है पूरे कार्यकर्ता दमदारी से लग गए हैं मुरैना में बीजेपी की जीत सुनिश्चित है ।


Conclusion:मुरैना लोकसभा में कुल 8 विधानसभा सीटें हैं साल 2009 में जब नरेंद्र सिंह तोमर ने चुनाव लड़ा था तब तीन सीट बीजेपी की सीट कांग्रेसी और 2 सीट बसपा के पास थी। और वर्तमान की बात करें तो 7 सीट कांग्रेस के पास महज 1 सीट बीजेपी के पास है वही टिकट न मिलने से सांसद अनुप मिश्रा , मुरैना महापौर अशोक अर्गल और पूर्व विधायक गजराज सिंह सहित कुछ अन्य नेता नाराज बताई जा रहे है उन्हें यदि समय रहते नहीं मनाया गया तो यह लोग बीजेपी की जीत में परेशानी खड़ी कर सकते है। और सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा एस्ट्रोसिटी एक्ट है जिस तरह से 2 अप्रैल को इस इलाके में हिंसा हुई थी उसके बाद बीजेपी को इस अंचल में भारी खामियाजा भुगतना पड़ा था। इतना ही नहीं नरेंद्र सिंह के पैतृक गांव वाली सीट अंबाह पर नाराज सवर्ण और पिछड़ा वर्ग के लोगों ने नेहा किन्नर को अपना प्रत्याशी बना कर खडा कर दिया था उसे बैठने के लिए खुद नरेंद्र सिंह तोमर ने प्रयास किए थे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली थी जिसके फलस्वरूप सीट बीजेपी को गंवानी पड़ी थी। पिछली बार बीजेपी की टक्कर बसपा प्रत्याशी से ही हुई थी । कांग्रेस को तीसरा स्थान मिला था इस बार भी बसपा ने बीजेपी के पूर्व सांसद राम लखन सिंह को मैदान में उतारा है हालांकि चुनाव अभी बहुत दूर है और कांग्रेसी अपना प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा है कांग्रेस का प्रत्याशी मैदान में आने के बाद कुछ साफ होगा कि इस सीट पर इसी जीत मिलेगी और किसको हार।

बाईट- नरेंद्र सिंह तोमर , केंद्रीय मंत्री

बाईट- आर पी सिंह , कॉंग्रेस प्रवक्ता
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