मुरैना। एमपी पॉलिटिकल क्राइसिस यानी सिंधिया सत्ता पलट देश की राजनीति का ऐसा पहलू है, जिसे आने वाले कई वर्षों तक याद रखा जाएगा. इसी सत्ता पलट की साक्षी और हिस्सा मुरैना की सुमावली विधानसभा भी है. अब इस वर्ष मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव है, जनता मतदान को तैयार है, लेकिन इस बार हालत किसके पक्ष में इस बात का मंथन जारी है. बीजेपी अपना प्रत्याशी घोषित कर चुकी है. अब कांग्रेस की बारी है. लेकिन चुनाव की घोषणा से पहले ही ETV Bharat अपनी खास सीरीज सीट स्कैन में प्रदेश की सभी 230 विधानसभाओं का सीट स्कैन कर सियासी समीकरणों को जानकारी दे रहा है. एक नजर मुरैना जिले की सुमावली विधानसभा क्षेत्र के पर
विधानसभा क्षेत्र की खासियत: मध्यप्रदेश निर्वाचन क्षेत्र क्रमांक 05 सुमावली अपने आप में बहुत खास है. यह क्षेत्र अपने अनोखे कालीन कारीगरी के लिए जाना जाता है. सुमावली में क्षेत्र में बीते कई वर्षों से बेहतरीन और सुंदर कालीन निर्माण का काम होता आया है. यहां तैयार कालीन मुंबई, दिल्ली, भोपाल जैसे कई बड़े शहरों में बिकते हैं. कालीन व्यापार इस क्षेत्र की पहचान और आय का मुख्य जरिया है. इसके साथ-साथ यह क्षेत्र पीले सोने यानी सरसों के लिए भी प्रसिद्ध है. माना जाता है कि इस क्षेत्र की उपजाऊ भूमि अच्छी क्वालिटी की सरसों पैदा करती है. जिसकी वजह यहां खेती में सरसों की फसल किसानों के लिए कमाई का अच्छा साधन है. हाल ही में सरकार ने धमकन पुल की सौगात दी है. इस पुल के निर्माण से अब जनता को जौरा क्षेत्र से सीधी कनेक्टिविटी मिली है. जिसका इस क्षेत्र के व्यापारियों को बहुत लाभ मिलने वाला है.
विधानसभा का पॉलिटिकल सिनेरियो: मध्य प्रदेश की सुमावली विधानसभा प्रदेश के मुरैना जिले में आती है. ये सीट उन निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है, जो 2020 में हुए सिंधिया सत्ता पलट का हिस्सा थी. तत्कालीन चार बार के विधायक और कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे ऐदल सिंह कंसाना ने पद त्याग तो दिया था और सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हुए. बतौर इनाम उन्हें पीएचई मंत्री भी बनाया गया था, लेकिन जनता ने उन्हें उपचुनाव में दोबारा मौका नहीं दिया था.
साल 2020 का चुनाव दलबदलुओं के बीच हुआ था. जहां बीजेपी के प्रत्याशी थे, तो वहीं उनके प्रतिद्वंदी रहे कांग्रेस के अजब सिंह कुशवाह भी बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस में आए थे और उपचुनाव में कांग्रेस ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया था. जिन्हें जनता ने जिताया और विधायक बना दिया. इस सीट पर हमेशा त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है. हालांकि अब तक बसपा को यह सीट 2 बार लगातार 1993 और 1998 में मिली थी, लेकिन तब भी विधायक ऐदल सिंह कंसाना ही थे. बाद में वे कांग्रेस के टिकट पर 2008 में तीसरी बार विधायक बने थे.
वर्तमान स्थिति की बात करें तो 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी अभी से कमर कस चुकी है. उपचुनाव में हार के बाद भी एक बार फिर सिंधिया समर्थक ऐदल सिंह कंसाना पर भरोसा जताते हुए उन्हें सुमावली विधानसभा से अपना प्रत्याशी घोषित भी कर दिया है. हालांकि कांग्रेस का सस्पेंस बरकरार है या कहें अभी से घोषणा कर दावेदारों की नाराजगी का रिस्क नहीं लेना चाहती है, क्योंकि इस सीट पर कांग्रेस के पास दो बड़े चेहरे दावेदारी कर रहे हैं. जिनमें पहले अजब सिंह कुशवाह जो सुमावली में कांग्रेस के वर्तमान विधायक हैं और दूसरा कुलदीप सिकरवार जो दो बार से कांग्रेस के युवा पार्षद है. यह क्षेत्र में अच्छी पकड़ रखते हैं, टिकट की उम्मीद में कुलदीप सिकरवार लगातार क्षेत्र में जनसंपर्क में जुटे हुए हैं. ऐसे में कांग्रेस के किए इन दोनों दावेदारों में से किसी को चुनना और दूसरे को साधना बड़ी चुनौती साबित हो रहा है.
विधानसभा क्षेत्र के जातिगत समीकरण: सुमावली विधानसभा क्षेत्र का चुनाव विकास नहीं बल्कि जातिगत आधारित रहता है. यहां कुशवाह क्षत्रिय और दलित समाज के मतदाता प्रत्याशियों का भाग्य तय करते हैं. सुमावली विधानसभा सबसे अधिक वोटर कुशवाह समाज से हैं. इनकी 40 हजार की वोटिंग है, क्षत्रिय समाज भी 30 हजार वोटर, दलित समाज से करीब 35 हजार मतदाता हैं. वहीं 15 हजार से अधिक ब्राह्मण वोटर हैं. गुर्जर समाज भी 20 हजार से अधिक वोट के साथ निर्णनायक भूमिका में रहता है.
विधानसभा उपचुनाव 2020 के नतीजे: मध्यप्रदेश में 2018 के चुनाव में चौथी बार विधायक बने ऐदल सिंह कंसाना 2020 में सिंधिया के समर्थन में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले 22 विधायकों में शामिल थे. उनके इस्तीफा देने से सुमावली विधानसभा सीट मार्च में खाली हुई और उसी साल उपचुनाव कराए गए. जिसमें बीजेपी ने बतौर प्रत्याशी उन्हें चुनाव में उतारा, तो वहीं बीजेपी से कांग्रेस में गए अजब सिंह कुशवाह को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार घोषित किया था. उपचुनाव में सुमावली की जनता ने पूर्व विधायक और तत्कालीन मंत्री ऐदल सिंह कंसाना को 75,962 वोट दिए. जबकि उनके खिलाफ चुनाव लड़े कांग्रेस के अजब सिंह कुशवाह को 86,909 मत हासिल हुए और वे विधायक चुने गए.
विधानसभा चुनाव 2018 के नतीजे: विधानसभा 2018 में चुनाव चंबल में कांग्रेस के पक्ष में था. सुमावली सीट पर बीजेपी ने बसपा से बीजेपी में आए अजब सिंह कुशवाह को दोबारा टिकट दिया था. इस चुनाव में उन्हें 52,142 वोट मिले थे. जबकि उनके खिलाफ चुनाव लड़े, कांग्रेस के पूर्व विधायक ऐदल सिंह कंसाना को जनता ने 65455 वोट दिए थे. वे इस चुनाव में क्षेत्र से विधायक चुने गए. यहां जीत का मार्जिन 13313 वोट रहा था.
विधानसभा चुनाव 2013 के नतीजे: 2013 के चुनाव में मुकाबला त्रिकोणीय था. इस चुनाव में बीजेपी की टक्कर कांग्रेस से नहीं, बल्कि बसपा से थी. बीजेपी ने सत्यपाल सिंह को प्रत्याशी बनाया था. जिन्हें 61,557 वोट मिले, दूसरे नंबर पर निकटतम प्रत्याशी बहुजन समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अजब सिंह कुशवाह को 47,481 वोट हासिल हुए थे. वहीं कांग्रेस के ऐदल सिंह कंसाना 41,189 वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे. इस चुनाव में जीत का मार्जिन 14076 वोट का था.
विधानसभा चुनाव 2008 के नतीजे: 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में सुमावली विधानसभा सीट कांग्रेस के खाते में थी. इस सीट पर बहुजन समाजवादी पार्टी से कांग्रेस में शामिल हुए ऐदल सिंह कंसाना को पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित किया था. चुनाव में उन्हें 46,490 वोट मिले थे, वहीं बसपा के अजब सिंह कुशवाह दूसरे नंबर पर रहे थे. उन्हें 36,839 वोट हासिल हुए थे. जबकि भाजपा प्रत्याशी गिर्राज सिंह सिकरवार तीसरे स्थान पर रहे थे. उन्हें 31,688 वोट मिले थे. इस चुनाव में ऐदल सिंह कंसाना तीसरी बार विधायक चुने गये थे. जीत का मार्जिन 9,651 वोट का था.
विधानसभा क्षेत्र के स्थानीय मुद्दे: सुमावली विधानसभा क्षेत्र में भी सरकारों की अनदेखी बड़ी समस्या रही है. यहां आज भी बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है. इस क्षेत्र के युवा स्थानीय तौर पर रोजगार की ज़्यादा व्यवस्था ना होने से जीवन यापन के लिए दिल्ली अहमदाबाद जैसे बड़े शहरों में पलायन कर जाते हैं. दूसरी बड़ी समस्या इस क्षेत्र में सक्रिय रेत माफिया है. चंबल नदी में खनन पर बैन होने के बावजूद इस क्षेत्र से माफिया चम्बल को चीर कर रेत चुराते रहे हैं. अब तक इन पर लगाम नहीं कस सकी है. बेलगाम रेत से भरे ट्रैक्टर दौड़ने से सड़कों को भारी नुकसान होता है और जिसकी वजह से आए दिन राहगीर और वाहन सवार यात्री हादसों का शिकार होते हैं. बदहाल शिक्षा व्यवस्था भी बड़ी परेशानी है. सरकार का पूरा फोकस सीएम राइज पर है, लेकिन अन्य सरकारी स्कूलों की हालत भी खस्ता नजर आती है. अच्छे स्कूल कॉलेज ना होने से इस क्षेत्र के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए ग्वालियर, इंदौर भोपाल या दिल्ली का रूख करना पड़ता है.