मुरैना। भारतीय सेना के जवान राजू सिंह सिकरवार ने कारगिल युद्ध के दौरान प्रतिकूल जलवायु में अदम साहस की परिचय दिया. जवान राजू सिंह सिकरवार उस जगह अपनी वीरता का प्रदर्शन कर रहे थे जहां ना तो पर्याप्त ऑक्सीजन थी और ना खाने पीने का कोई सामान. ऐसे में कारगिल की चोटियों पर वो बर्फ के सहारे प्यास बुझाते हुए उन्होंने 4 दिन 4 रात तक लगातार युद्ध किया और भारतीय सेना को कारगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन विजय की पहली सफलता द्रास सेक्टर में दिलाई. जिनकी मदद से मेटाईन चोटी को पाकिस्तानी सेना से मुक्त कराते हुए भारतीय सेना के कब्जे में लिया. इस दौरान भारतीय सेना ने पहली ही सफलता में हासिल करते हुए पाकिस्तान के 17 सैनिकों अपनी गिरफ्त में लिया. 108 इंजीनियरिंग रेजीमेंट के सपोर्ट के साथ ही दो से तीन ट्रक हथियार और बारूद कब्जे में लेकर अधिकारियों की मदद की. काररिल युद्ध की सफलता में भारतीय सेना की सेकंड राजपूताना राइफल्स के चार ऑफिसर, दो सूबेदार और 16 जवान शहीद हुए थे.
युद्ध में वीरता का दिया परिचय
जवान राजू सिंह सिकरवार कारगिल युद्ध में 2 माह 2 सप्ताह 2 दिन तक चले विषम परिस्थितियों वाले युद्ध में पूरे समय युद्ध क्षेत्र में रहे और अपने अदम्य साहस एवं शौर्य का परिचय देते हुए सैनिक के रूप में अपनी सीमा और मातृभूमि की सुरक्षा के लिए निरंतर लड़ते रहे. राजू सिंह सिकरवार वर्तमान में भी सेना में पदस्थ हैं और 21 वर्ष बाद भी कारगिल युद्ध के हर पल को अपने दिल में रखे हुए हैं . यही नहीं राजू सिंह, चीन की सीमा पर चल रहे विवाद में भी युद्ध करने के लिए तैयार हैं. वह कुछ समय के लिए छुट्टी पर अपने घर आए थे. इस दौरान कारगिल विजय दिवस पर आयोजित शहीद स्मारक पर शहीदों को देने वाली श्रद्धांजलि कार्यक्रम में शामिल हुए और इसी दौरान उन्होंने ईटीवी भारत से अपने 21 साल पुराने अनुभव को साझा किया.
जलवायु और भौगोलिक परिस्थिति विपरीत
12 जून 1999 को भारतीय थल सेना की सेकंड राजपूताना राइफल्स के जवान राजू सिंह सहित पूरी कंपनी ने कारगिल क्षेत्र की टोरोलीन चोटी पर अटैक कर दिया. इससे पहले भी भारतीय सेना की कई टुकड़ियों ने पाकिस्तानी सेना पर अटैक किए थे. लेकिन उसमें भारतीय सेना को भौगोलिक और जलवायु की परिस्थितियां विपरीत होने के कारण सफलता नहीं मिली. लेकिन राजपूताना राइफल्स को 24 घंटे के अंदर पहली सफलता मिली और पाकिस्तानी सेना द्वारा बनाए गए 7 से 8 बंकर जो टोरोलीन चोटी पर थे. उन्हें तबाह करते हुए पाकिस्तानी सेना के बड़ी संख्या में जवानों को मौत के घाट उतारते हुए अपने अदम्य साहस और पराक्रम का लोहा बनवाते हुए 24 घण्टे में सफलता हासिल की. पाकिस्तानी जवानों के पास से उनके हथियार,बारूद,युद्ध का सामान अपने कब्जे में लेकर चोटी से नीचे पड़ाव डाले हुए 108 इंजीनियरिंग रेजिमेंट को दिए.
ऊंचे पहाड़ों से जमीन पर लाए जाते थे शव
पाकिस्तानी सेना और सरकार इस युद्ध को तो लड़ रही थी लेकिन इसे स्वीकार नहीं करती थी और इस बात को साबित करने के लिए भारतीय सेना द्वारा उनके मारे गए सैनिकों के शवों को हजारों फीट ऊंचाई से नीचे लाया जाता था और सेना के अधिकारियों के माध्यम से पाकिस्तानी सेना को सौंप दिया जाता था, जिसके बाद ये सौंपे गए शव एक सबूत का काम करते थे और पाकिस्तानी सेना को अघोषित युद्ध में शामिल होने और अनाधिकृत रूप से कारगिल सेक्टर की चोटियों पर कब्जा करने की बात को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाता था.