मुरैना। चंबल अंचल की जलवायु में होने वाली फसलों से मिलने वाले फ्लोरा ने चंबल अंचल को शहद उत्पादन का केंद्र बना दिया है. यही कारण है कि वर्तमान में मुरैना जिले में 350 से 400 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन हुआ है, जिससे किसानों को 30 करोड़ से अधिक की आय हो रही है, लेकिन किसानों को यहां सहज के लिए उचित बाजार उपलब्ध नहीं है. जिससे उन्हें पूरा मूल्य नहीं मिल पा रहा सरकार के प्रयास भी इस दिशा में हैं लेकिन वह धरातल पर किसानों की उम्मीदों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं.
चंबल अंचल की मुख्य फसल के रूप में सरसों और बरसीम है. इन दोनों ही फसलों में पर्याप्त फ्लोरा होता है. इसलिए उचित समय के अंतराल के कारण इन फसलों के सिलोरा का उपयोग मधुमक्खी पालक के साथ पर्याप्त समय तक करते हैं, जो शहद उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. हालांकि मुरैना जिले के किसान चंबल अंचल से बाहर ग्वालियर,गुना और शिवपुरी की मधुमक्खी की कॉलोनियों को लेकर माइग्रेट करने लगे हैं और जिसका लाभ उन्हें लगातार मिल रहा है और अंचल के शहद उत्पादन में आमूलचूल वृद्धि हो रही है.
10 हजार किसान जुड़े हैं शहद उत्पादन और मधुमक्खी पालन के काम से
मुरैना जिले और आसपास के चंबल क्षेत्र से मधुमक्खी पालन अंचल के किसान अब गंभीरता से लेने लगे हैं और इसे कैश क्रॉप के रूप में स्वीकार किया जा रहा है. वर्तमान में मुरैना जिले में लगभग 10 हजार किसान इस काम से जुड़े हैं. कई किसान ऐसे हैं जिनके पास मधुमक्खियों की 100 कॉलोनियां ( बॉक्स) है और कई किसान ऐसे हैं जो 500-1000 से लेकर 3000 कॉलोनियां तक रखते हुए मधुमक्खी का पालन करते हैं. इनमें एक हजार से अधिक बॉक्स रखने वाले जो किसान हैं वह एफपीओ (फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन ) माध्यम से समूह बनाकर मधुमक्खी पालन का काम करते हैं. व्यापक स्तर पर शहद का उत्पादन करते हैं यही कारण है कि मुरैना जिले में धीरे धीरे कर 10,000 किसान और मधुमक्खी पालन का काम करने लगे हैं, जो शहद उत्पादन के माध्यम से अपनी आमदनी बढ़ाने की ओर अग्रसर हैं.
350 से 400 मिट्रिक टन होता है 1 वर्ष में शहद का उत्पादन
मुरैना जिला और आसपास के आंचल में 1 वर्ष में 350 से 400 मेट्रिक टन शहद का उत्पादन होता है, क्योंकि यहां 10 हजार किसानों के पास लगभग 80 हाजर कॉलोनियां में मधुमक्खी पालन कर शहद उत्पादन किया जा रहा है. कृषि वैज्ञानिक डॉ. अशोक यादव ने बताया कि मधुमक्खी की एक कॉलोनी यानी कि एक बॉक्स से लगभग 4 से 5 केजी शहद एक सीजन में मिलता है और अगर कॉलोनी को किसी फ्लोरा वाले फसल पर ऑक्सीजन में भी माइग्रेट किया जाए तो उत्पादन और बढ़ जाता है. लागत कम हो जाती है ,क्योंकि अगर ऑक्सीजन में माइग्रेट नहीं करेंगे तो उन्हें शक्कर का घोल बनाकर भोजन के रूप में देना पड़ता है. जिससे किसान को मधुमक्खी को जीवित रखने के लिए काफी खर्च करना पड़ता है. बेहतर यही होता है कि किसान आसपास के अंचल में अलग-अलग मौसम की अलग-अलग फ्लोरा वाली फसलों पर माइग्रेट करें. जिससे उत्पादन भी बढ़ेगा और खर्चा भी बचेगा. हालांकि वर्तमान में किसान गुना शिवपुरी और अशोक नगर की तरफ होने वाले धनिया और अन्य फ्लोरा वाली फसलों पर माइग्रेट कर कॉलोनियों को ले जाया करते हैं.
50 करोड़ तक होती है किसानों की आय
सरसों और वसीम की फसल पर मधुमक्खी की कॉलोनी रखने पर 300 से 400 मिट्रिक टन शहद का उत्पादन होता है, जो किसानों को मुरैना जिले और आसपास के क्षेत्र में ही मिल जाया करती हैं. अगर किसान इनके अलावा गर्मियों में सूरजमुखी और अन्य फूलों वाली खेती करने लगे या मधुमक्खी कॉलोनियों को माइग्रेट करने लगे तो यह उत्पादन 400 से बढ़कर 500 मेट्रिक टन तक पहुंच सकता है. जिससे किसानों की आय 30 करोड़ से बढ़कर 50 करोड़ पर पहुंच सकती है.
किसानों के शहद का नहीं मिलता उचित दाम
मुरैना जिले में 350 से 400 मेट्रिक टन शहद का उत्पादन होता है. किसान से 80 से 100 रुपए प्रति किलो खरीदा जाता है. जबकि यही शहर के बाजार में 250 से 300 प्रति किलो कंपनियों द्वारा बेचा जाता है. किसानों द्वारा सरकार से यह उम्मीद लगाई है कि मुरैना जिले को स्थानीय स्तर पर बड़ी कंपनियां और बड़े व्यवसायियों द्वारा सहित खरीदने की व्यवस्था की जावे ताकि किसानों को उचित मूल्य मिले और वह पूरा मुनाफा कमा सकें.
मुरैना में तीन शहद शोधन इकाई भी लगी हैं
अंचल के किसान शहद का उचित मूल्य प्राप्त कर सकें. इसके लिए शहद को शुद्ध करने की आवश्यकता भी होती है. जिसके लिए मुरैना जिले में शासन द्वारा तीन शहद शोधन इकाई भी स्थापित की गई हैं. यह इकाई गांधी सेवा आश्रम जौरा में लगी है, तो दूसरी इकाई कृषि विज्ञान केंद्र मुरैना मैं संचालित है. जहां किसान निर्धारित शुल्क देकर न केवल अपना शहर शोधन करा सकते हैं. बल्कि उसे अपने ब्रांड नेम के साथ पैकेजिंग भी कराया जा सकता है. इसके अलावा तीसरी शहद शोधन इकाई इफको द्वारा लगाई गई है. लेकिन ज्यादातर किसान अपने शहर को ना शोधन करा पाते हैं और अगर शोधन कराने के बाद स्मॉल पैकेजिंग के बाद उसे बाजार उपलब्ध नहीं करा पाते जिससे उन्हें उचित लाभ नहीं मिलता. नए वर्ष में किसानों को यह उम्मीद है कि सरकार स्थानीय स्तर पर उचित मूल्य दिलाने के लिए उचित बाजार उपलब्ध कराएगी और इसी उम्मीद के साथ शहद के उत्पादन का काम भी 30 करोड़ से 50 करोड़ होने की संभावना है.