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सरकारी कागजों में सिमटा 14 लाख रु. का काम, ना तालाब बना और ना खेल का मैदान

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Published : Dec 1, 2019, 9:11 PM IST

विकास के लिए सरकार लाखों रुपए खर्च कर देती है लेकिन असलियत में काम कितना हुआ है ये जांच के बाद पता चलता है. मुरैना के एक गांव में ऐसी ही तस्वीर देखने को मिला.

Lakhs of rupees spent in government records,
कागजों में निपटा सरकारी काम, हुआ कुछ नहीं

मुरैना। सरकारी काम और सरकारी रिकॉर्ड अक्सर सवालों के घेरे में रहते हैं. खिडोरा गांव के विकास के लिए सरकारी फाइलों में तो लाखों खर्च किए गए लेकिन हुआ कुछ नहीं है.

सरकारी कागजों में सिमटा 14 लाख रु. का काम
गांव के लिए 4 तालाब, एक खेल का मैदान और मुक्तिधाम बनना था, सरकारी रिकॉर्ड में ये बन भी गए हैं. लेकिन जहां तालाब होना चाहिए था वहां गड्ढा खुदा पड़ा है और खेल का मैदान तो कहीं दिखाई नहीं देता.

विकास के लिए दिए गए थे 14 लाख रु.

खिडोरा गांव के विकास के लिए पंचायत के खाते में 14 लाख रुपए डाले गए थे, जिसके तहत 4 तालाब, खेल का मैदान और मुक्तिधाम बनाया जाना था. लेकिन हकीकत सरकारी आंकडों से बिल्कुल अलग है. ना तालाब, ना खेल का मैदान, मुक्तिधाम में ना बाउंड्री वॉल है और ना ही कोई टीनशेड. आप खुद सोचिए अगर बारिश के दिनों में किसी का अंतिम संस्कार करना हो तो क्या हालात होंगे. इसका मतलब साफ है कि विकास सिर्फ कागजों में ही सिमटकर रह गया है.

कलेक्टर का सरकारी जवाब

मुरैना कलेक्टर प्रियंका दास कहना है कि इस मामले में जांच के आदेश दिए गए हैं, जिसके बाद उचित कार्रवाई की जाएगी. हालांकि प्रियंका दास ने चुनाव प्रक्रिया की एक बहुत ही कमजोर कड़ी को उठाते हुए कहा है कि अशिक्षित जनप्रतिनिधि जब होते हैं तो कई दबंग उनका गलत फायदा उठा लेते हैं.

मुरैना। सरकारी काम और सरकारी रिकॉर्ड अक्सर सवालों के घेरे में रहते हैं. खिडोरा गांव के विकास के लिए सरकारी फाइलों में तो लाखों खर्च किए गए लेकिन हुआ कुछ नहीं है.

सरकारी कागजों में सिमटा 14 लाख रु. का काम
गांव के लिए 4 तालाब, एक खेल का मैदान और मुक्तिधाम बनना था, सरकारी रिकॉर्ड में ये बन भी गए हैं. लेकिन जहां तालाब होना चाहिए था वहां गड्ढा खुदा पड़ा है और खेल का मैदान तो कहीं दिखाई नहीं देता.

विकास के लिए दिए गए थे 14 लाख रु.

खिडोरा गांव के विकास के लिए पंचायत के खाते में 14 लाख रुपए डाले गए थे, जिसके तहत 4 तालाब, खेल का मैदान और मुक्तिधाम बनाया जाना था. लेकिन हकीकत सरकारी आंकडों से बिल्कुल अलग है. ना तालाब, ना खेल का मैदान, मुक्तिधाम में ना बाउंड्री वॉल है और ना ही कोई टीनशेड. आप खुद सोचिए अगर बारिश के दिनों में किसी का अंतिम संस्कार करना हो तो क्या हालात होंगे. इसका मतलब साफ है कि विकास सिर्फ कागजों में ही सिमटकर रह गया है.

कलेक्टर का सरकारी जवाब

मुरैना कलेक्टर प्रियंका दास कहना है कि इस मामले में जांच के आदेश दिए गए हैं, जिसके बाद उचित कार्रवाई की जाएगी. हालांकि प्रियंका दास ने चुनाव प्रक्रिया की एक बहुत ही कमजोर कड़ी को उठाते हुए कहा है कि अशिक्षित जनप्रतिनिधि जब होते हैं तो कई दबंग उनका गलत फायदा उठा लेते हैं.

Intro:एंकर - सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार किस कदर दीमक की तरह हमारे देश को खोखला कर रहा है इसका ताजा उदाहरण मुरैना में एक बार फिर से देखने को मिल रहा है। मुरैना के खिडोरा गांव में सरकार के लाखों रुपए लगाकर 4 तालाब 1 खेल मैदान और मुक्तिधाम बनवाया गया। पर जमीनी हकीकत देखी जाए तो मौके पर तालाब की जगह गड्ढे खुदे पड़े हैं वही खेल मैदान तो कहीं आपको दिखाई देगा ही नहीं। पर उसके बाद भी सरकारी महकमों के अधिकारियों ने पूरा पैसा सरपंच और सचिव के खातों में डाल दिया। इस मामले की शिकायत कई बार ग्रामीणों ने अधिकारियों से की पर पूरे कुएं में भांग मिले होने से मामले को दबा दिया जाता रहा।


Body:वीओ1 - मुरैना जिले के पहाड़गढ़ ब्लॉक का खिडोरा गांव में ये जो गड्ढे दिखाई दे रहे हैं इनको करने में भी 14 लाख की राशि खर्च हो गई और ऐसा 1 नहीं 4 तालाब बनाए हैं। तालाब सुनकर आपको लग रहा होगा कि शायद मैं गलती से बोल गया। जी नहीं ये तालाब ही है और ये हम नहीं कह रहे यह तो सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है। इसी तरह के 4 तालाबों को बनाने के लिए 14 - 14 लाख की राशि खर्च की गई है। वहीं ये है खेल मैदान जब चंबल संभाग में खेल मैदान बनाई गए है, तो चंबल के बीहड़ों की तरह ऊंचे नीचे नहीं होंगे तो कैसे काम चलेगा। शायद इसी लिए इसको भी ऐसा ही रखा गया है और इसमें भी लाखों खर्च हुए हैं। इसके साथ साथ खिडोरा गाँव के मुक्तिधाम का हाल भी देख लीजिए आज के समय ऐसा मुक्तिधाम शायद ही देखा हो जिसमें न बाउंड्रीवाल है और न ही कोई टीनशेड इसको देखने से तो ऐसा लग रहा है जैसे कोई बीहड़ की जमीन हो।ग्रामीणों के अनुसार बारिश के दिनों में अंतिम संस्कार करने में बहुत परेशानी आती है।कभी कभी बारिश में तिरपाल लगाकर अंतिम संस्कार करना पड़ता है।

बाइट1 - रामबीर सिंह सिकरवार - ग्रामीण।
बाइट2 - मनोज सिंह - ग्रामीण।
(लाल टीशर्ट पहने हुए है)
बाइट3 - लला सिकरवार - ग्रामीण।
(सफेद शर्ट पहने हुए है)

वीओ2 - अब आपको मिलवाते हैं उन जिम्मेदार अधिकारियों से जिन्होंने अपनी मेहनत और जागरूक रहकर अपना काम किया और सरकार मंशा को गलत साबित करते हुए इन सब कार्यों को पूरा किया या उन्हें दिया। हालांकि इस बात को लेकर वो जांच करने और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की बात कह रहे हैं। पर अगर ऐसा ही होता तो अभी तक ये क्या कर रहे थे।

बाइट4 - अजय वर्मा - सीईओ पहाडग़ढ़।


वीओ3 - यह जिलाधिकारी महोदया जिन्होंने भी इस मामले में जांच करने और उसके बाद उचित कार्रवाई की बात कही है। हालांकि कलेक्टर प्रियंका दास महोदया ने चुनाव प्रक्रिया की एक बहुत ही कमजोर कड़ी को यहां उठाते हुए कहा है कि अशिक्षित जनप्रतिनिधि जब होते हैं तो कई दबंग लोग उनका गलत फायदा उठा लेते हैं।

बाइट5 - प्रियंका दास - कलेक्टर मुरैना।


Conclusion:वीओ4 - ये बात तो बहुत ही सही है और इस पर चुनाव आयोग को विचार भी करना चाहिए, कि क्या वाकई अशिक्षित जनप्रतिनिधियों के सहारे गांव, शहर और देश का विकास हो सकता है।

फैक्ट फाइल......
1.- खिडोरा पंचायत गाँव की 5000 की आबादी है।
2.- खिडोरा गाँव की वोटिंग 3500 है।
3.- 24 लाख की लागत से बनने थे तीन तालाब।
4.- 8 लाख की लागत से बनना था एक तालाब।
5.- 10 माह में ही क्षतिग्रस्त हो गए तालाब।
6.- ढाई लाख में बनना था मुक्तिधाम।
7.- ढाई लाख में बनाया गया खेल मैदान।
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