मुरैना। ऐतिहासिक शहर मुरैना अपने अंदर इतिहास के कई साक्ष्य समेटे हुए है. सबलगढ़ तहसील में स्थित ''सबलगढ़ का किला'' मुरैना से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर है. मध्यकाल में बना ये किला एक पहाड़ी के शिखर पर बना हुआ है. जो भी इस किले को देखने आता है इसकी विशालता को देखकर हतप्रभ हो जाता है.
इस किले की नींव सबला गुर्जर ने डाली थी, जबकि करौली के तत्कालीन महाराजा गोपाल सिंह ने 18वीं शताब्दी में इसे पूरा करवाया था. इस दौरान किला कुछ समय बाद सिंकदर लोधी के अधीन चला गया था, लेकिन बाद में करौली के राजा ने मराठों की मदद से इस पर दोबारा अधिकार कर लिया. किले के पीछे सिंधिया काल में बना एक बांध है, जहां की सुंदरता देखते ही बनती है. सबलगढ़ का किला अत्यंत सुन्दर और मनमोहक है.
महाभारत में है इस किले का उल्लेख
सबलगढ़ का इतिहास अत्यंत प्राचीन है. महाभारत काल में " चेदि" राजा के अधीन रहा प्राचीन भारत का ये किला अलग-अलग कालखंडों में मौर्य, कुषाण और गुप्त राजाओं के अधीन रहा था.
गुर्जर, प्रतिहार, चंदेल और कक्षपघात वंश के रहा अधीन
8वीं से 12वीं सदी के बीच इस पर गुर्जर, प्रतिहार, चंदेल और कक्षपघात वंश के राजाओं ने शासन किया. अकबर के शासन काल में ये क्षेत्र आगरा सूबा के मंडरायल (करोली) सरकार के अधीन रहा.
ग्वालियर गजेटियर में है किले की जानकारी
ग्वालियर गजेटियर के मुताबिक सबलगढ़ को सबला गुर्जर ने बसाया था, लेकिन मौजूदा किले का निर्माण करौली के महाराजा गोपाल सिंह ने कराया था.
यूरोपियन यात्री के वृतांत में जिक्र
1750 में यूरोपियन यात्री ट्रीफन थ्रेलर यहां से होकर गुजरा, उसने अपने यात्रा वृतांत में सबलगढ़ किले को एक मजबूत किला होने का उल्लेख किया है.
सबलगढ़ किले को राज्य पुरातत्व विभाग के अधीन कर संरक्षित घोषित किया गया है. पर्यटन विभाग भी इसे पर्यटकों के लिए विकसित करने पर जोर दे रहा है.
पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा: पुरातत्व विभाग
सबलगढ़ का दुर्ग खंडहर हो रहा है. किले की तरफ न तो पुरातत्व विभाग ध्यान दे रहा है और न ही राज्य सरकार. हालांकि राज्य सरकार किले को पर्यटन के क्षेत्र में विकसित करने की बात कह रही है.