मुरैना। जिले के काजी बसई गांव में हर घर से कोई न कोई देश की सेवा में तैनात है. पूरे जिले में यह अकेला ऐसा गांव है जहां पिछले 105 सालों से युवाओं की पहली पसंद देश की सेना में भर्ती होना रहा है. इस गांव का कोई ऐसा घर नहीं है जिसमे सेना के जवान न हों.
प्रथम विश्व युद्ध से लेकर कारगिल वॉर तक इस गांव के जवानों ने मनवाया लोहा, घर- घर से है सेना का नाता - कारगिल वॉर
मुरैना के काजी बसई गांव के एक ही परिवार की चार पीढ़ी देश की सेवा कर रही है. इस गांव के कई युवा तीनों सेनाओं में भर्ती होकर देश की सेवा कर रहे है.
काजी बसई गांव के एक ही परिवार की चार पीढ़ी कर रही देश की सेवा
मुरैना। जिले के काजी बसई गांव में हर घर से कोई न कोई देश की सेवा में तैनात है. पूरे जिले में यह अकेला ऐसा गांव है जहां पिछले 105 सालों से युवाओं की पहली पसंद देश की सेना में भर्ती होना रहा है. इस गांव का कोई ऐसा घर नहीं है जिसमे सेना के जवान न हों.
Intro:एंकर - 15 अगस्त को पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा है, देश के हर नागरिक में इस त्यौहार को लेकर उत्साह और उमंग की एक अलग की लहर दौड़ती है। बॉर्डर पर तैनात सिपाही हमारी इस आजादी की रक्षा का प्रण लेकर हर पल अपनी जान को दांव पर लगाए हुए हैं। पर इन सिपाहियों के साथ साथ वह परिवार भी देश की सुरक्षा में सहभागी है जिनके बच्चे, भाई पति बॉर्डर पर तैनात हैं। आजादी के इस पावन पर्व पर हम आपको हिंदुस्तान के ऐसे गांव से रूबरू कराते हैं जिसने प्रथम विश्व युद्ध से लेकर आज कश्मीर में तैनात सेना में सहभागिता निभाई है। 105 साल के इस इतिहास को बनाने वाला मुरैना जिले का गांव है काजी बसई। जहां हर घर का सदस्य देश की सेवा कर रहा है।
Body:वीओ1 - सामने बैठा यह शख्स 81 साल की उम्र में भी अपनी पुरानी यादों को कुरेद कर वह बातें हमारे सामने ला रहे हैं जिन्हें सुनकर आप भी चौंक जाएंगे। काजी बसई गांव जिसमें आज भी 246 ऐसे जवान है जो अलग-अलग सेनाओं में रहकर देश की सेवा कर रहे हैं। राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त मोहम्मद रफीक की चार पीढ़ियां देश सेवा कर रही हैं। आजादी से पहले प्रथम विश्व युद्ध में भी इस गांव से सिपाही को जाने का मौका मिला। जिसके बाद दूसरे विश्व युद्ध में 16 जवान गए और उसके बाद देश की हर जंग में गांव के जवानों में देश की रक्षा की। 1965 की लड़ाई में तो मोहम्मद रफीक ही जंग का हिस्सा रहे।
बाइट - मोहम्मद रफीक - रिटायर्ड सब इंस्पेक्टर बीएसएफ काजी बसई।
Conclusion:वीओ2 - यादों के झरोखे में जाकर रफीक बताते हैं कि किस तरह से उनकी बटालियन ने 1965 की लड़ाई में सहभागिता निभाई। उनके पिता ने भी बीएसएफ के जरिए देश सेवा कि, उनका बेटा मोहम्मद शफीक सीआरपीएफ में रहकर देश सेवा कर चुके हैं, और आज उनकी चौथी पीढ़ी भी सीआरपीएफ में रहकर देश की सेवा कर रहा है। काजी बसई गांव सर्वाधिक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है पर उसे सबसे अधिक बच्चियां, सबसे अधिक साक्षरता, सबसे अधिक स्वच्छता का खिताब मिला हुआ है।
Body:वीओ1 - सामने बैठा यह शख्स 81 साल की उम्र में भी अपनी पुरानी यादों को कुरेद कर वह बातें हमारे सामने ला रहे हैं जिन्हें सुनकर आप भी चौंक जाएंगे। काजी बसई गांव जिसमें आज भी 246 ऐसे जवान है जो अलग-अलग सेनाओं में रहकर देश की सेवा कर रहे हैं। राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त मोहम्मद रफीक की चार पीढ़ियां देश सेवा कर रही हैं। आजादी से पहले प्रथम विश्व युद्ध में भी इस गांव से सिपाही को जाने का मौका मिला। जिसके बाद दूसरे विश्व युद्ध में 16 जवान गए और उसके बाद देश की हर जंग में गांव के जवानों में देश की रक्षा की। 1965 की लड़ाई में तो मोहम्मद रफीक ही जंग का हिस्सा रहे।
बाइट - मोहम्मद रफीक - रिटायर्ड सब इंस्पेक्टर बीएसएफ काजी बसई।
Conclusion:वीओ2 - यादों के झरोखे में जाकर रफीक बताते हैं कि किस तरह से उनकी बटालियन ने 1965 की लड़ाई में सहभागिता निभाई। उनके पिता ने भी बीएसएफ के जरिए देश सेवा कि, उनका बेटा मोहम्मद शफीक सीआरपीएफ में रहकर देश सेवा कर चुके हैं, और आज उनकी चौथी पीढ़ी भी सीआरपीएफ में रहकर देश की सेवा कर रहा है। काजी बसई गांव सर्वाधिक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है पर उसे सबसे अधिक बच्चियां, सबसे अधिक साक्षरता, सबसे अधिक स्वच्छता का खिताब मिला हुआ है।