मुरैना। 13वीं शताब्दी में कच्छप राजाओं के समय बनाया गया चौंसठ योगिनी मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला के लिए देश-विदेश में पहचाना जाता है. इस मंदिर में तंत्र विद्या की पढ़ाई की जाती थी, इसलिए इसे तांत्रिक विश्वविद्यालय कहा जाता था. इस मंदिर की वास्तुकला की तर्ज पर ही संसद भवन का निर्माण कराया था.
मुरैना से 40 किलोमीटर दूर मितावली की पहाड़ी पर चौंसठ योगिनी मंदिर है. गोलाकार आकृति में बने इस मंदिर को तंत्र विद्या की पढ़ाई के लिए बनाया गया था. देश में प्रचीन काल के बने चौसठ योगिनी मंदिरों में सबसे अच्छे हालात में यही मंदिर बचा हुआ है. इस मंदिर में शिव और योगिनी की मूर्तियां बनी हुई थी. जिसे पुरातत्व विभाग ने दिल्ली के संग्रहालय में रखवा दिया है.
इस तांत्रिक विश्वविद्यालय में दुनिया भर के लोग तंत्र साधना का प्रयास करते थे. जहां शिव का साधना कर योगिनीयों को जागृत किया जाता था. स्थानीयों का मानना है कि तंत्र कवच के चलते आज भी दिन ढलने के बाद किसी को भी इस मंदिर में रुकने की अनुमति नहीं दी जाती है.
अद्भुत है मंदिर की वास्तुकला
इस मंदिर की वास्तुकला को देखते हुए मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग ने इसे अपने अधीन लिया है, जिसे पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है. वहीं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में इसे प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया है. ये मंदिर गोलाकार रुप में बना हुआ है जिसके अंदर एक गोलाकार मुख्य मंदिर बना हुआ है, इस मंदिर में शिव और योगिनी विराजित है.
कुल 101 खंभों के साथ बने इस मंदिर पर छोटे-छोटे बरामदे बने हुए है, हर बरामदे में शिव और योगिनी की प्रतिमाएं हुआ करती थी जहां बैठकर लोग अपनी साधना करते थे. हर बरामदे की ऊंचाई 6.30 फीट पर है, लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि यहां 4 फीट लंबाई का आदमी भी इसे झुक कर पार करता है. इस विशालकाय मंदिर में पानी निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है बावजूद इसके यहां पानी की एक बूंद भी नहीं टिकती है.
मंदिर के तर्ज पर है संसद भवन
ये मंदिर जैसे बाहर से दिखता है वैसे ही संसद भवन की बनावट है. अंग्रेजों के शासनकाल के समय ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने मुरैना आकर इस मंदिर का दौरा किया था. जिसके बाद दिल्ली में संसद भवन का नक्शा बनाया था. हालांकि इसका कोई प्रमाण अब तक नहीं मिले है. लेकिन हुबहु मिलते आर्किटेक्ट को देखकर ये कहा जा सकता है कि संसद भवन इसे देखकर ही बनाया गया है.