भोपाल। गांधीवादी विचारक डॉ. सुब्बाराव का बुधवार को राजस्थान में निधन हो गया था. गुरुवार को उनका अंतिम संस्कार मुरैना में किया जाएगा. इस दौरान कांग्रेस के बड़े नेता शामिल होंगे, लेकिन बीजेपी का कोई बड़ा नेता शामिल नहीं होगा. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी अंतिम संस्कार में आने की खबर दे चुके है, लेकिन बीजेपी की ओर से किसी भी बड़े नेता ने अंतिम संस्कार में आने की खबर सामने नहीं आई है. हालांकि बीजेपी के क्षेत्रीय नेता अंतिम संस्कार में पहुंचे है.
सत्ताधारी पार्टी ने अंतिम संस्कार से बनाई दूरी
चंबल अंचल के लिए शांतिदूत बने सुब्बाराव बड़ी हस्ती है. उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से भी नवाजा है. लेकिन सत्ताधारी पार्टी बीजेपी सुब्बाराव के अंतिम संस्कार से दूरी बनाने की कोशिश कर रही है. वहीं कांग्रेस के बड़े नेता सुब्बाराव के अंतिम संस्कार में पहुंचेंगे.
अंतिम दर्शन के लिए नहीं पहुंचे केंद्रीय कृषि मंत्री
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर मुरैना से ही सांसद हैं, लेकिन वे भी सुब्बाराव के अंतिम दर्शन करने नहीं पहुंचे. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह हो या मुरैना से नाता रखने वाले वीडी शर्मा कोई भी नेता सुब्बाराव के अंतिम दर्शन करने के लिए नहीं पहुंचा. गुरुवार शाम सुब्बाराव का अंतिम संस्कार होना है, इस कार्यक्रम में भी बीजेपी के किसी भी बड़े नेता के शामिल होने की सूचना नहीं है. हालांकि बुधवार शाम बीजेपी ने प्रेस नोट और सीएम चौहान ने ट्वीट कर सुब्बाराव को श्रद्धांजलि दी है.
'शांतिदूत' सुब्बाराव का 4 बजे होगा अंतिम संस्कार, राजस्थान के सीएम सहित कई हस्तियां होंगी शामिल
पंडित जवाहरलाल नेहरू के सलाहकार थे सुब्बाराव
डॉक्टर एसएन सुब्बाराव जवाहरलाल नेहरू के सलाहकार के रूप में काम करते थे और उनके बहुत नजदीक थे. 60 के दशक में सुब्बाराव कांग्रेस के राष्ट्रीय सेवा दल के को-ऑर्डिनेटर भी थे. नेहरू जी के सलाहकार होने के नाते चंबल अंचल में सिंचाई के लिए शुरू की जाने वाली नहर परियोजना का अवलोकन करने मुरैना जिले में आए थे. इसी दौरान उन्होंने चंबल अंचल की समस्या को जाना और समझा तथा उसके निराकरण के लिए काम करना शुरू किया. राहुल गांधी ने भी उनके निधन पर दुख जताया.
डकैतों को समर्पण के लिए किया था प्रेरित
डॉक्टर एसएन सुब्बाराव ने जौरा में नहर परियोजना के अवलोकन के समय समाज के लोगों के साथ 10 समस्या के उन्मूलन के लिए विचार-विमर्श शुरू किया. इस दौरान उन्होंने डकैतों से भी प्रत्यक्ष रूप से संबंध स्थापित किए. डकैतों को समाज की मुख्यधारा में वापस लौटने के लिए प्रेरित किया. इसके साथ उन्होंने डकैतों को शासन और प्रशासन से हर संभव मदद दिलाने का काम किया. उसका परिणाम ये हुआ कि सन 1972 में दो चरणों में 672 इनामी डकैतों का आत्मसमर्पण कर लिया.
डकैतों के लिए की गांधी आश्रम की स्थापना
आत्मसमर्पण करने वाले 672 डकैतों और उनके परिवारीजनों को समाज सम्मान की दृष्टि से देखें और वह बिना किसी भय के अपने परिवार का पालन पोषण कर सकें, इसके लिए उन्हें रोजगार देने की व्यवस्था की गई. कुछ डकैतों पर कानूनी क्षेत्रों के कारण सजा हुई, उन्हें जेल जाना पड़ा. ऐसे डकैतों के परिजनों के रहने और और रोजगार के लिए गांधी आश्रम की स्थापना की गई. जिसमें उनके परिजनों को रोजगार मुहैया कराया गया जो आज भी निरंतर काम कर रहा है.