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10 साल बाद फिर आमने-सामने सियासी दुश्मन, बचेगा गढ़, या खत्म होगा सियासी वनवास?

मुरैना संसदीय क्षेत्र में दस साल बाद पुराने प्रतिद्वंदी फिर आमने-सामने हैं, लेकिन इस बार का सियासी समीकरण बिल्कुल उलट है. बीजेपी के सामने जहां अपना गढ़ बचाये रखने की चुनौती है, वहीं कांग्रेस सियासी वनवास खत्म करने के लिए बेताब दिख रही है.

तोमर vs रावत
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Published : May 11, 2019, 12:45 AM IST

मुरैना। चंबल अंचल का मुरैना शहर देश-विदेश में जितना गजक के लिए जाना जाता है, उतना ही रूतबा इसका सूबे की सियासत में भी माना जाता है. यहां से निकले नेताओं की धमक आज भी प्रदेश और देश की सियासत में देखने को मिलती है. बीजेपी का मजबूत गढ़ मानी जाने वाली मुरैना लोकसभा सीट पर बीजेपी-कांग्रेस के दो पुराने प्रतिद्वंदी आमने-सामने हैं. बीजेपी की तरफ से जहां नरेंद्र सिंह तोमर मैदान में हैं, तो कांग्रेस ने यहां रामनिवास रावत पर भरोसा जताया है. 2009 के आम चुनाव में नरेंद्र सिंह तोमर ने राम निवास रावत को चित किया था.

मुरैना लोकसभा सीट

मुरैना संसदीय क्षेत्र में मुरैना और श्योपुर 2 जिले आते हैं. भौगोलिक स्थिति के अनुसार मुरैना संसदीय सीट उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमा से सटी है. इसके अलावा भिंड, ग्वालियर और शिवपुरी सीट मुरैना संसदीय क्षेत्र की सीमा को छूती है. मुरैना संसदीय क्षेत्र में 20 लाख 39 हजार 176 वोटर हैं, 9 लाख 85 हजार 901 पुरुष मतदाता और 8 लाख 34 हजार 573 महिला मतदाता शामिल हैं, जबकि 78 थर्ड जेंडर मतदाता हैं, जो 25 उम्मीदवारों के सियासी भाग्य का फैसला करेंगे.

2009 में बीजेपी-कांग्रेस के उम्मीदवार रहे तोमर-रावत 2019 में भी आमने-सामने हैं, लेकिन चुनावी समीकरण 2009 के मुकाबले 2019 में अलग हैं. तब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी और मुरैना क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में 4 पर बीजेपी, 2 पर बसपा और 2 पर कांग्रेस काबिज थी, लेकिन 2019 में राज्य में कांग्रेस की सरकार है और 8 विधानसभा सीटों में से 7 पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि सिर्फ एक पर ही बीजेपी का कमल खिला है. ऐसे में सियासी समीकरण कांग्रेस के पक्ष में हैं और बीजेपी के लिए अपना गढ़ बचाने की चुनौती है.

मुरैना सीट पर अब तक 13 आम चुनाव हुए हैं. जिसमें कांग्रेस सिर्फ जीत की हैट्रिक ही लगा पायी है, जबकि 7 बार बीजेपी और एक एक बार जन संघ, भारतीय लोक दल के प्रत्याशी ने परचम लहराया है तो पहले आम चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार ने झंडा बुलंद किया था. अब इस चुनाव में बीजेपी अपना गढ़ बचाने में सफल होती है या कांग्रेस विधानसभा चुनाव की तरह अप्रत्याशित परिणाम देकर मुरैना में दो दशक से अधिक का वनवास खत्म करती है.

मुरैना। चंबल अंचल का मुरैना शहर देश-विदेश में जितना गजक के लिए जाना जाता है, उतना ही रूतबा इसका सूबे की सियासत में भी माना जाता है. यहां से निकले नेताओं की धमक आज भी प्रदेश और देश की सियासत में देखने को मिलती है. बीजेपी का मजबूत गढ़ मानी जाने वाली मुरैना लोकसभा सीट पर बीजेपी-कांग्रेस के दो पुराने प्रतिद्वंदी आमने-सामने हैं. बीजेपी की तरफ से जहां नरेंद्र सिंह तोमर मैदान में हैं, तो कांग्रेस ने यहां रामनिवास रावत पर भरोसा जताया है. 2009 के आम चुनाव में नरेंद्र सिंह तोमर ने राम निवास रावत को चित किया था.

मुरैना लोकसभा सीट

मुरैना संसदीय क्षेत्र में मुरैना और श्योपुर 2 जिले आते हैं. भौगोलिक स्थिति के अनुसार मुरैना संसदीय सीट उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमा से सटी है. इसके अलावा भिंड, ग्वालियर और शिवपुरी सीट मुरैना संसदीय क्षेत्र की सीमा को छूती है. मुरैना संसदीय क्षेत्र में 20 लाख 39 हजार 176 वोटर हैं, 9 लाख 85 हजार 901 पुरुष मतदाता और 8 लाख 34 हजार 573 महिला मतदाता शामिल हैं, जबकि 78 थर्ड जेंडर मतदाता हैं, जो 25 उम्मीदवारों के सियासी भाग्य का फैसला करेंगे.

2009 में बीजेपी-कांग्रेस के उम्मीदवार रहे तोमर-रावत 2019 में भी आमने-सामने हैं, लेकिन चुनावी समीकरण 2009 के मुकाबले 2019 में अलग हैं. तब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी और मुरैना क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में 4 पर बीजेपी, 2 पर बसपा और 2 पर कांग्रेस काबिज थी, लेकिन 2019 में राज्य में कांग्रेस की सरकार है और 8 विधानसभा सीटों में से 7 पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि सिर्फ एक पर ही बीजेपी का कमल खिला है. ऐसे में सियासी समीकरण कांग्रेस के पक्ष में हैं और बीजेपी के लिए अपना गढ़ बचाने की चुनौती है.

मुरैना सीट पर अब तक 13 आम चुनाव हुए हैं. जिसमें कांग्रेस सिर्फ जीत की हैट्रिक ही लगा पायी है, जबकि 7 बार बीजेपी और एक एक बार जन संघ, भारतीय लोक दल के प्रत्याशी ने परचम लहराया है तो पहले आम चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार ने झंडा बुलंद किया था. अब इस चुनाव में बीजेपी अपना गढ़ बचाने में सफल होती है या कांग्रेस विधानसभा चुनाव की तरह अप्रत्याशित परिणाम देकर मुरैना में दो दशक से अधिक का वनवास खत्म करती है.

Intro:मुरैना संसदीय क्षेत्र के लिए अभी तक 13 चुनाव हो चुके हैं और 14वी बार चुनाव आगामी 12 मई को आने वाला है अभी तक हुए चुनावों में कांग्रेस को सिर्फ तीन बार सफलता मिली है । भारतीय जनता पार्टी , जनसंघ और भारतीय लोक दल को 9 वार सफलता मिली तो एक बार निर्दलीय उम्मीदवार ने संसदीय सीट पर अपना परचम लहराया । आगामी चुनाव में भाजपा अपनी सुरक्षित सीट को बचाने में सफल होती है या कांग्रेस विधानसभा की तरह अप्रत्याशित परिणाम देकर मुरैना संसदीय सीट पर दो दसक से अधिक समय से काट रहै बनवास को ख़त्म कर वापसी करने का प्रयास होगी ।

वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर मुरैना संसदीय सीट से उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में हैं , वहीं कांग्रेस से पूर्व मंत्री रामनिवास रावत अपना भाग्य आजमा रहे हैं , तो बहुजन समाज पार्टी ने हरियाणा सरकार में मंत्री रहे करतार सिंह भडाना पर अपना दांव लगाया है । अब देखते हैं कि संसदीय सीटें के 20 लाख 39 हजार मतदाता किसे मुरैना का नेतृत्व सौप कर लोकतंत्र के मंदिर यानी संसद में दिल्ली भेजेंगे ।

मुरैना संसदीय सीट में वर्तमान में मुरैना और श्योपुर 2 जिले आते हैं । मुरैना की भौगोलिक स्थिति के अनुसार मुरैना संसदीय सीट उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमा सटी है। राजस्थान की 2 संसदीय सीट कोटा और धौलपुर सीमा से लगती है तो उत्तर प्रदेश के आगरा ग्रामीण सीमावर्ती संसदीय सीटें हैं इसके अलावा मध्य प्रदेश की भिंड , ग्वालियर और शिवपुरी मुरैना संसदीय क्षेत्र छूती हैं ।

मुरैना का नाम मोर रैना यानी मयूर वन होने के कारण अपभ्रंश होते होते मुरैना हो गया और यहां आज भी अत्यधिक संख्या में राष्ट्रीय पक्षी मोर पाए जाते हैं । क्षेत्र की सीमा रेखा चम्बल नदी 400 किलोमीटर मध्यप्रदेश , राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सीमा के रूप चंबल नदी गुजरती है जो मध्य प्रदेश राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सीमा रेखा भी है । चंबल नदी के कारण दुर्दांत बीहड़ , खूंखार डकैतों की शरण स्थानी के रूप में देश और दुनिया मे बदनाम रही । तो दूसरी ओर चंबल नदी में यहां पल रहे वाले जलीय जीव घड़ियाल , मगर , और डॉल्फिन और अन्य जालीय जीवो पालन पोषण के लिए देश और दुनिया में पहचाने जाता है ।

मुरैना संसदीय सीट पर 20 लाख 39 हजार 176 वोटर है । 9 लाख 85 हजार 901 पुरुष मतदाता और 8लाख 34 हजार 573 महिला मतदाता और 78 थर्ड जेंडर मतदाता है । जो आगामी लोकसभा के लिए चुनवीं मैदान में उतरे 25उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला 12 मई को ईवीएम में बंद करेंगे ।

मुरैना संसदीय सीट के लिए सबसे पहला चुनाव सन 1967 में हुआ था जिसमें आत्मादास निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मुरैना संसदीय सीट से चुनकर संसद पहुंचे । सन 1971 में भारतीय जनसंघ से हुकुमचंद कछवाहा चुनाव जीते, सन 1977 में भारतीय लोकदल से छविराम अर्गल सांसद चुने तो सन 1980 पहली बार कांग्रेस को सफलता मिली और बाबूलाल सोलंकी को विजय हासिल हुई । 1984 में कांग्रेस के कम्मोदी लाल जाटव को चुनाव जीते । 1989 में भारतीय जनता पार्टी की के नेतृत्व वाली छविराम अर्गल को विजय मिली । 1991 में कांग्रेस के बारेलाल जाटव चुनाव जीते । 1996 में भारतीय जनता पार्टी के अशोक अर्गल पहली बार सांसद बने और इसके बाद से इस सीट पर भाजपा का कब्जा हो गया कांग्रेस आज तक वापसी नहीं कर पाई । 1998 अशोक अर्गल दूसरी बार सांसद बने, 1999 में भाजपा के अशोक अर्गल तीसरी बार और 2004 में भाजपा के अशोक अर्गल लगातार चौथी बार सांसद बने । यह सीट आरक्षित सीट थी लेकिन 2009 सामान्य हो गई और यहां से भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश के अध्यक्ष और प्रदेश सरकार में मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर चुनावी मैदान में आए और उन्होंने कांग्रेस के रामनिवास रावत को एक लाख से अधिक मतों से चुनावी से शिकस्त दी । 2014 में नरेंद्र सिंह तोमर ने क्षेत्र बदल कर ग्वालियर से चुनाव लड़ा और मुरैना से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के भांजे अनूप मिश्रा को मुरैना से उम्मीदवार बनाया और उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के वृंदावन सिंह सिकरवार 1लाख 32हजार मतो से परास्त किया । लेकिन इस बार अनु मिश्रा का टिकट काट दिया गया और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पुनः मुरैना से उम्मीदवार बनाया गया ।


Body: 2009 में भाजपा और कांग्रेस के वीरवार थे वही उम्मीदवार 2019 में भी आमने सामने हैं । लेकिन चुनावी समीकरण 2009 से 2019 में विपरीत है ।पिछली बार प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और मुरैना संसदीय क्षेत्र की 8 विधानसभा से 4 विधान सभा पर भाजपा , दो पर बसपा और 2 विधानसभा पर कांग्रेस के विधायक आसीन थे । लेकिन 2019 में राजनीतिक समीकरण विपरीत है और राज्य में कांग्रेस की सरकार है संसदीय क्षेत्र की 8 विधानसभाओं में से 7 विधानसभाओ में कांग्रेस के विधायक हैं, और एक पर भाजपा के विधायक चुनाव जीत सके । ऐसे में सियासी समीकरण कांग्रेस के पक्ष में हैं और भाजपा के लिए अपनी सीट को बचाए रखना बड़ी चुनौती है ।

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का पार्टी के अंदर और क्षत्रिय समाज सहित अन्य समाजो में भी बेहद विरोध हो रहा है लेकिन उन्हें मोदी लहर का फायदा भी मिल रहा है । तो दूसरी तरफ नरेंद्र सिंह के विरोध का फायदा जहां कांग्रेस को होता दिख रहा है , वहीं प्रदेश की सरकार ने पिछले 5 महीने में अपने किए हुए वादों को पूरा नहीं किया इसका असर भी लोकसभा चुनावों पर पड़ सकता है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के उम्मीदवार रामनिवास रावत जनता के संपर्क में न रहने के कारण अभी हाल ही में अपनी गविधानसभा विजयपुर से चुनाव हार चुके हैं ।तो दूसरी श्योपुर, विजयपुर और सबलगढ़ विधानसभाओ में रावत समाज के लोगों सहित अन्य समाजों द्वारा रामनिवास रावत के लगातार 5 विधानसभा चुनाव लड़ने के कारण उनका विरोध किया जा रहा है जिस कारण इन्हें चुनावी मैदान में खासी परेशानी का सामना करना पड़ा है ।

भारतीय जनता पार्टी में कई दिग्गज नेता जो हाल ही में चुनाव हारे या फिर जिनके टिकट काट दिए गए वह अपनी हार और टिकट काटने के लिए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को जिम्मेदार मानते हैं, असंतुष्ट पार्टी नेता भितरघात कर उन्हें हराने का प्रयास कर सकते हैं तो वही कांग्रेस में भी राजा और महाराजा को लेकर अंतर्द्वंद सार्वजनिक रूप से देखा जाता है जिसका नुकसान रामनिवास रावत को उठाना पड़ेगा ।

चंबल अंचल से सेना सहित देश के विभिन्न अर्ध सैनिक बल और फोर्सेस में जाने वाले युवाओं की संख्या अत्यधिक है यहां राम प्रसाद बिस्मिल ने आजादी की लड़ाई से लेकर और पुलवामा हमले तक शहीदों की लंबी कतार है ऐसे में नरेंद्र मोदी के आतंकवाद के खिलाफ एयर स्ट्रायक पर की जाने वाली सख्त कार्रवाई का लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा । कांग्रेस एयर स्ट्राइक को फर्जी बता कर भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है ।
ऐतिहासिक और पुरात्तव की धरोहरों से काफी समृद्ध शाली है क्षेत्र , इस क्षेत्र में महाभारत के पांडवों की मां कुंती का गांव कुन्तल पुर है यहां समाज की लोकलाज से बचने कुंती ने अपने पुत्र कर्ण की नदी में बहाया वो स्थान भी इतिहास की कहानी गुनगुनाता है ।दुनिया का एकमात्र रामायण कालीन शनि मंदिर मुरैना के एती पर्वत पर स्थित है ।साहित्य के क्षेत्र में कृष्ण भक्ति के कवि सूरदास रसखान के समान विशाल और पुष्टिमार्गीय साहित्य के कवि महाकवि बल्लभदास दंडोतिया की जन्मस्थली और पुस्तकालय भी है ।तो पुरातत्व महत्व के स्थल ककनमठ मितावली, पडावली ,नरेश्वर ,बटेश्वर लिखीछाज जैसे अमित ऐतिहासिक स्थल है जो 7वीं शताब्दी से लेकर 13वीं शताब्दी तक का इतिहास प्रदर्शित करते हैं । भारत की संसद जिस नक्शे पर बनी है उसआकृति वाली चौसठ योगिनी मंदिर मुरैना के पडावली में स्थित है ,जो कभी तांत्रिक विश्वविद्यालय के रूप पहचाना जाता था । पहाड़गढ़ के जंगलों में पहाड़ों की कंदराओं में हजारों बर्ष पूर्व की चित्रकला है जो अपनी चमक के लिए प्रासंगिक है ,मानो कुछ दिन पहले ही चित्रकारी की गई है । जिसकी चमक लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि इतनी पुरानी कैसे संभव है ।


Conclusion:चंबल क्षेत्र मुख्य रूप से कृषि प्रधान क्षेत्र है यहां सरसों का उत्पादन अत्यधिक होता है इसलिए चंबल अंचल देश पीला सोना कही जाने वाली नकदी फसल के उत्पादन वाला क्षेत्र में माना जाता है । देश भर में सरसों तेल के कुल उत्पादन 70 फ़ीसदी उत्पादन केवल चंबल अंचल में होता है । कोई बड़े उद्योग यहां नही होने से रोजगार के लिए लोगों को पलायन कर बाहर राज्यों में जाना क्षेत्र की बड़ी समस्या है । शिक्षा के क्षेत्र में व्यवसायिक एजुकेशन सेंटर ना होना , प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग संस्थान ना होना, सेना में जाने वाले युवाओं के लिए फिजिकल ट्रेनिंग सेंटर ना होना लंबित मांगे हैं । जो पिछले एक दशक से युवाओं द्वारा लगातार की जा रही है पर जनप्रतिनिधियों और सरकार का ध्यान इस ओर नही है ।चंबल से पीने का पानी लाना, नैरोगेज ट्रेन को ब्रॉडगेज में बदलना मुरैना-श्योपुर जिले की प्रमुख मांग है , क्षेत्र में एकमात्र शुगर मिल सहकारी शक्कर कारखाना कैलारस 15 वर्षों से बंद का है जिसे चालू करने की प्रमुख मांग है । भाजपा और कांग्रेस कोई भी इस ओर ध्यान नही दे रही ,जिससे किसानों की माली हालत खराब होती जा रही है । दोनो प्रमुख राजनीतिक दल के नेता इस ओर उदासीनता है और जिसका असर विधानसभा चुनाव में देखने को मिला जहां काफी संख्या में वोट नोटा को गया ।

जातिगत आधार वोट डालने यहां के मतदाता की पहली प्राथमिकता होती है । मुरैना संसदीय क्षेत्र सबसे अधिक वोट बैंक दलित वर्ग का है जो 4लाख 50 हजार के करीब है जो अक्सर बहुजन समाज पार्टी का हुआ करता था लेकिन एससी एसटी एक्ट को लेकर हुए आंदोलन के बाद यह दलित वोट बसपा छोड़ कांग्रेस के पक्ष में ज्यादा ज्यादा नजर आ रहा है । इसी तरह लगभग 70- 80 हजार मुस्लिम समुदाय का वोट है जो कांग्रेस को जा नजर आ रहा है , बड़े वोट बैंक का कांग्रेस के पक्ष में जाना कहीं ना कहीं भाजपा के लिए संकट खड़े कर सकते हैं ।
तो दूसरी संख्या में क्षत्रिय समाज और ब्राह्मण समाज है राष्ट्रवाद और मोदी लहर के नाम पर भाजपा के पक्ष में तो है लेकिन नरेंद्र सिंह तोमर के पार्टी के अंदर राजनीतिक विरोध के कारण वह विरोध में जा सकता है जो भाजपा की 1996 से आरक्षित सीट को कांग्रेस की झोली में पहुचा सकती है । अब देखना ये कि मुरैना संसदीय सीट पर भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर एक बार फिर जीत दर्ज कराते हुए कब्जा बरकरार रखगे या कांग्रेस के रामनिवास रावत कांग्रेस का लगभग तीन दसक का बनवास खत्म कर मुरेना की ओर से कांग्रेस का झंडा संसद में लहरायेंगे , ये आने वाला समय ही बताएगा ।
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