मुरैना। चंबल अंचल का मुरैना शहर देश-विदेश में जितना गजक के लिए जाना जाता है, उतना ही रूतबा इसका सूबे की सियासत में भी माना जाता है. यहां से निकले नेताओं की धमक आज भी प्रदेश और देश की सियासत में देखने को मिलती है. बीजेपी का मजबूत गढ़ मानी जाने वाली मुरैना लोकसभा सीट पर बीजेपी-कांग्रेस के दो पुराने प्रतिद्वंदी आमने-सामने हैं. बीजेपी की तरफ से जहां नरेंद्र सिंह तोमर मैदान में हैं, तो कांग्रेस ने यहां रामनिवास रावत पर भरोसा जताया है. 2009 के आम चुनाव में नरेंद्र सिंह तोमर ने राम निवास रावत को चित किया था.
मुरैना संसदीय क्षेत्र में मुरैना और श्योपुर 2 जिले आते हैं. भौगोलिक स्थिति के अनुसार मुरैना संसदीय सीट उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमा से सटी है. इसके अलावा भिंड, ग्वालियर और शिवपुरी सीट मुरैना संसदीय क्षेत्र की सीमा को छूती है. मुरैना संसदीय क्षेत्र में 20 लाख 39 हजार 176 वोटर हैं, 9 लाख 85 हजार 901 पुरुष मतदाता और 8 लाख 34 हजार 573 महिला मतदाता शामिल हैं, जबकि 78 थर्ड जेंडर मतदाता हैं, जो 25 उम्मीदवारों के सियासी भाग्य का फैसला करेंगे.
2009 में बीजेपी-कांग्रेस के उम्मीदवार रहे तोमर-रावत 2019 में भी आमने-सामने हैं, लेकिन चुनावी समीकरण 2009 के मुकाबले 2019 में अलग हैं. तब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी और मुरैना क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में 4 पर बीजेपी, 2 पर बसपा और 2 पर कांग्रेस काबिज थी, लेकिन 2019 में राज्य में कांग्रेस की सरकार है और 8 विधानसभा सीटों में से 7 पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि सिर्फ एक पर ही बीजेपी का कमल खिला है. ऐसे में सियासी समीकरण कांग्रेस के पक्ष में हैं और बीजेपी के लिए अपना गढ़ बचाने की चुनौती है.
मुरैना सीट पर अब तक 13 आम चुनाव हुए हैं. जिसमें कांग्रेस सिर्फ जीत की हैट्रिक ही लगा पायी है, जबकि 7 बार बीजेपी और एक एक बार जन संघ, भारतीय लोक दल के प्रत्याशी ने परचम लहराया है तो पहले आम चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार ने झंडा बुलंद किया था. अब इस चुनाव में बीजेपी अपना गढ़ बचाने में सफल होती है या कांग्रेस विधानसभा चुनाव की तरह अप्रत्याशित परिणाम देकर मुरैना में दो दशक से अधिक का वनवास खत्म करती है.