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चुनाव सिर पर और मतदाता मौन, सन्नाटा बनी इस चुप्पी के क्या हैं संकेत? - लोकसभा चुनाव

साल 2018 के अंत में हुये एससी-एसटी आंदोलन और सवर्ण आंदोलनों ने विधानसभा चुनाव में खासा प्रभाव छोड़ा था, इसी का नतीजा रहा कि एमपी में तख्ता पलट हुआ. अब लोकसभा में भी एससी-एसटी वर्ग और अल्पसंख्यकों की एकजुटता बदलाव के संकेत दे रही है.

सीएम कमलना, राकेश सिंह
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Published : Mar 27, 2019, 3:50 PM IST

भोपाल। लोकतंत्र के महापर्व यानी लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है, लेकिन मतदाताओं ने चुप्पी ओढ़ रखी है. मतदाता ही वो जादूगर हैं जो चुनाव के वक्त सियासी दलों की कश्ती को डुबोते और पार लगाते हैं. बात अगर मध्यप्रदेश की करें तो यहां भी मतदाता मौन है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो प्रदेश के मतदाताओं की ये चुप्पी राजनीति में आने वाले किसी बड़े बदलाव का संकेत दे रही है.

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पिछले साल हुए एससी-एसटी आंदोलन और सवर्ण आंदोलनों ने विधानसभा चुनाव में खासा प्रभाव छोड़ा था, इसी का नतीजा रहा कि एमपी में तख्ता पलट हुआ. अब लोकसभा में भी एससी-एसटी वर्ग और अल्पसंख्यकों की एकजुटता बदलाव के संकेत दे रही है. जानकार मानते हैं कि इस बार एमपी में कांग्रेस के अच्छी स्थित में होने के बावजूद मोदी फैक्टर नकारा नहीं जा सकता.

राजनीतिक विषयों के जानकार डॉक्टर कमल दीक्षित कहते हैं कि किसान, मजदूर, युवा, व्यापारी शांत हैं, लेकिन ऐसी शांति एक अलग तरह का रिएक्शन डेवलप करती है, अगर ये रिएक्शन वोटों में तब्दील हुआ तो बदलाव जरूर होगा. उन्होंने कहा कि ये अकेले मध्यप्रदेश में नहीं पूरे देश में लागू होता है क्योंकि पूर्व में मतदाताओं की चुप्पी बदलाव की सुनामी ला चुकी है.

ये बात ग्वालियर चंबल के संदर्भ में इसलिये भी अहम हो जाती है, क्योंकि एससी-एसटी और सवर्ण आंदोलन की आग यहीं से उठी थी. ऐसे में देखना होगा कि मौन मतदाता मौन ही रहेंगे या फिर किसी बड़ी सुनामी के साथ नतीजे बदलेंगे.

भोपाल। लोकतंत्र के महापर्व यानी लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है, लेकिन मतदाताओं ने चुप्पी ओढ़ रखी है. मतदाता ही वो जादूगर हैं जो चुनाव के वक्त सियासी दलों की कश्ती को डुबोते और पार लगाते हैं. बात अगर मध्यप्रदेश की करें तो यहां भी मतदाता मौन है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो प्रदेश के मतदाताओं की ये चुप्पी राजनीति में आने वाले किसी बड़े बदलाव का संकेत दे रही है.

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पिछले साल हुए एससी-एसटी आंदोलन और सवर्ण आंदोलनों ने विधानसभा चुनाव में खासा प्रभाव छोड़ा था, इसी का नतीजा रहा कि एमपी में तख्ता पलट हुआ. अब लोकसभा में भी एससी-एसटी वर्ग और अल्पसंख्यकों की एकजुटता बदलाव के संकेत दे रही है. जानकार मानते हैं कि इस बार एमपी में कांग्रेस के अच्छी स्थित में होने के बावजूद मोदी फैक्टर नकारा नहीं जा सकता.

राजनीतिक विषयों के जानकार डॉक्टर कमल दीक्षित कहते हैं कि किसान, मजदूर, युवा, व्यापारी शांत हैं, लेकिन ऐसी शांति एक अलग तरह का रिएक्शन डेवलप करती है, अगर ये रिएक्शन वोटों में तब्दील हुआ तो बदलाव जरूर होगा. उन्होंने कहा कि ये अकेले मध्यप्रदेश में नहीं पूरे देश में लागू होता है क्योंकि पूर्व में मतदाताओं की चुप्पी बदलाव की सुनामी ला चुकी है.

ये बात ग्वालियर चंबल के संदर्भ में इसलिये भी अहम हो जाती है, क्योंकि एससी-एसटी और सवर्ण आंदोलन की आग यहीं से उठी थी. ऐसे में देखना होगा कि मौन मतदाता मौन ही रहेंगे या फिर किसी बड़ी सुनामी के साथ नतीजे बदलेंगे.
Intro:लोकसभा चुनाव भले ही देश व्यापी योजनाओ की केंद्र में रख कर होते है , भले ही राष्ट्र की रक्षा, सुरक्षा और विकास प्रमुख मुद्दा रहता हो। और इन्ही मुद्दों को लेकर एक वातावरण बनता है ,जो आने वाली सरकारों का संकेत देता है । लेकिन इस बार चुनावो में माहौल कुछ बदला बदला है । मतदाता की चुप्पी राजनीति में किसी आने वाली सुनामी की ओर संकेत दे रही है ।इस बार दलित और मुश्लिम संगठित होता नजर आ रहा है । हालांकि वो चुप है । ये चुप्पी अगर वोट में परिवर्तित हुई तो राजनीति में अप्रत्याशित बदलाव होंगे ।


Body:2019 में होने जा रहे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र यानी हिदुस्तान के आम चुनाव की बात कर रहे है । चुनाव सिर पर है , लेकिन आम मतदाता मौन है । जो चुनाव एक वातावरण पर निर्भर करता है । जो चुनाव देश के आवाम की और देश की दिशा और दसा बदलने का निर्णय करता है । उस आम चुनाव का मतदाता मौन है । मतलब राजनीति में किसी का अस्तित्व मिटने और किसी की अस्मिता देश और दुनिया के मानचित्र पर और उभर के आने का निर्णय करने वाला है , ये संकेत मतदाता की चुप्पी से समझ मे आता है । यह बात राजनीतिक मामलो के जानकारो का मानना है ।कि जब जब देश के मतदाता मौन हुआ है तब तब देश की राजनीति में बड़े बदलाब आये है ।


Conclusion:राजनीति जानकारों की माने तो इसके कई कारण है जो देश की राजनीतिक दिशा और दसा तय करने वाले है । पहला कारण ये है कि स्थानीय जन प्रतिनिधियों से जनता संतुष्ठ नहीं है, लेकिन देश मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फेक्टर अभी चल रहा है , मोदी लहर बरकार है । दूसरा लोग स्थानीय मुद्दों पर अपने को केंद्रित न करते हुए देश के विकास और रोजगार के सृजन पर जोर दे रहे है । और तीसरा सबसे महपूर्ण कारण है वर्तमान राजनीति में दलित और मुश्लिम का संगठित होना । हालांकि दलित और मिश्लिम अपनी अपनी विचार धारा वाले राजनीतिक दल को वोट करेगा या फिर किसी एक दल को , इस मामले में वो अभी चुप है । यह चुप्पी है देश की राजनीति में बड़े बदलाव लाती रही है और इस बार भी ला सकती है ।
बाईट - प्रो डॉ कमल दीक्षित - राजीनीति मामले के जानकार एवं माखनलाल चतुर्वेदी पत्रिकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल के प्राध्यापक है
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